शख्सियत

डी के शिवकुमार का इंटरव्यू: 'कर्नाटक भी कर रहा है सौतेले व्यवहार का सामना'

सूर्य को उगना है और फिर अस्त होना है। यही बात हर राजनीतिक दल पर लागू होती है। एक समय था जब संसद में केवल दो भाजपा नेता थे- वाजपेयी और आडवाणी। आज भाजपा के 240 सांसद हैं। ऐसे ही एक दिन आएगा जब लोकसभा में कांग्रेस की संख्या और भी अधिक होगी।

कर्नाटक के डिप्टी सीएम डी के शिवकुमार (फोटो : Getty Images)
कर्नाटक के डिप्टी सीएम डी के शिवकुमार (फोटो : Getty Images) Hindustan Times
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार कई भूमिकाएं निभाते हैं। पिछले पांच साल से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं और उनके पास बेंगलुरु विकास और जल संसाधन मंत्रालय का भी प्रभार है। डीके के नाम से मशहूर 62 वर्षीय शिवकुमार ने अपनी दावेदारी को लेकर खुलकर बात की है लेकिन वह पार्टी के प्रति वफादारी को व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से ऊपर रखते हैं। वह साफ कहते हैंः मेरे लिए पार्टी पहले है, बाकी सब कुछ उसके बाद- अगर पार्टी है, तो हम सब हैं। आठ बार विधायक रहे शिवकुमार ने नाहिद अताउल्ला से कांग्रेस की गारंटी, केन्द्र से धन के हस्तांतरण, एनईपी और भाजपा की ओर से मिले प्रस्तावों के बारे में बात की। बेंगलुरु में उनसे हुई बातचीत के अंश:

राज्य में कांग्रेस सरकार का कार्यकाल आधा बीत चुका है। आप सरकार के प्रदर्शन को कैसे आंकते हैं?

हमने अपने घोषणापत्र में जो भी वादा किया था, उसे हम एक-एक करके पूरा कर रहे हैं। अब भी बहुत सारे मुद्दों पर ध्यान दिया जाना बाकी है। राज्य के बजट में  पांच गारंटियों के लिए 56,000 करोड़ रुपये की राशि निर्धारित की गई है। औसतन, अगर 225 विधानसभा क्षेत्रों में 200 करोड़ रुपये दिए जाते हैं, तो हम लोगों को सशक्त बना सकेंगे। किसी भी किसान की आत्महत्या की खबर नहीं आ रही है और हमें बहुत सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं क्योंकि प्रत्येक परिवार ‘गृहलक्ष्मी’ (परिवार की महिला मुखिया को 2,000 रुपये प्रति माह) और ‘गृहज्योति’ (200 यूनिट तक मुफ्त बिजली) के माध्यम से 4,000 से 5,000 रुपये प्रति माह बचा रहा है। मुफ्त चावल की मात्रा 5 किलोग्राम से बढ़ाकर 10 किलोग्राम प्रति माह कर दी गई है। सरकार ने कभी भी किसी को भूखा नहीं रहने दिया। 

जबकि महाराष्ट्र जैसे भाजपा शासित राज्य चुनावी वादों को पूरा करने में विफल रहे हैं, कर्नाटक ने अभी तक कोई कसर नहीं छोड़ी है। हालांकि कुछ शिकायतें हैं कि पांच गारंटियों के लिए निर्धारित 56,000 करोड़ रुपये ने कर्नाटक के अन्य विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न की है।

अन्य क्षेत्रों के लिए भी धन जारी किया जा रहा है- चाहे वह लोक निर्माण विभाग हो या शहरी विकास, सिंचाई या सामाजिक कल्याण। उदाहरण के लिए, सिंचाई के लिए 16,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं। पंचायत राज और शहरी स्थानीय निकाय अधिनियम संशोधनों के तहत, पैसा सीधे पंचायतों को भेजा जाता है। सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती। 

क्या मुख्यमंत्री को आवंटन फिर से करना चाहिए? 

हम गारंटी नहीं रोक सकते और रोकेंगे भी नहीं। हमने उन्हें पहले ही पाइपलाइन में डाल दिया है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो लोग आर्थिक रूप से मजबूत हैं, वे इनका लाभ न उठाएं। 

अन्य चिंताएं क्या हैं? 

शिक्षा बड़ी चिंता है और कर्नाटक इसे सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है। हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) से संतुष्ट नहीं हैं और इसमें बदलाव कर रहे हैं। इसी तरह, हम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के मसौदा नियमों का विरोध करते हैं जो कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यों की शक्तियों को छीनना चाहते हैं। ज्यादातर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज दक्षिण भारत में स्थित हैं, इसलिए उत्तर भारत से छात्र यहां आते हैं। हालांकि हम राष्ट्रीय भाषा के पक्ष में नहीं हैं और अपने बच्चों को स्थानीय भाषा में शिक्षा देना पसंद करते हैं, फिर भी हम अपने छात्रों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार करने के लिए अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को बढ़ावा दे रहे हैं।

दक्षिणी राज्य केन्द्र के हाथों सौतेले व्यवहार की शिकायत करते रहे हैं, खासकर वित्तीय मामलों में। कर्नाटक का अनुभव क्या है? 

कर्नाटक भी सौतेले व्यवहार का सामना कर रहा है। केन्द्र को पता होना चाहिए कि वह कर्नाटक की जितनी मदद करेगा, उतना ही भारत को वैश्विक स्तर पर लाभ होगा। कर्नाटक की पूरी दुनिया में धाक है। अगर भारत मजबूत होना चाहता है, तो उसे कर्नाटक की मदद करनी चाहिए। 

आपके भाई, पूर्व सांसद डी.के. सुरेश ने कहा था कि अगर इसी तरह सब चलता रहा तो दक्षिणी राज्य अलग देश की मांग कर सकते हैं? 

मेरे भाई ने धन के हस्तांतरण के बारे में चिंता जताई थी। बेंगलुरु में ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट (11 फरवरी 2025) के उद्घाटन के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्वीकार किया कि कर्नाटक ऐसा राज्य है जहां लोगों को इसकी तकनीक, नवाचार और मानव संसाधनों के कारण निवेश करना चाहिए। 

बेंगलुरु के प्रभारी मंत्री के रूप में शहर को वैश्विक गंतव्य, एक प्रौद्योगिकी केन्द्र और एक प्रमुख आर्थिक केन्द्र के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से आपकी 'ब्रांड बेंगलुरु' पहल पर क्या प्रगति हुई है?

मुझे नहीं लगता कि मैं पूरी तरह सफल हो पाया हूं। चूंकि बेंगलुरु योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया शहर नहीं है, इसलिए इसके लिए बहुत सारे फंड की जरूरत है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लगभग 40,000 करोड़ रुपये की गारंटी देने पर सहमति जताई है। हम इस साल मेट्रो रेल, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, सड़कों की सुरंग, फ्लाईओवर और व्यावसायिक गलियारों के लिए एक लाख करोड़ रुपये निवेश करने की योजना बना रहे हैं।

बेंगलुरू के लिए आपकी पसंदीदा परियोजनाएं- हेब्बल से सेंट्रल सिल्क बोर्ड तक प्रस्तावित 18.5 किलोमीटर लंबी सुरंग सड़क, एनआईसीई रोड के पास एक स्काईडेक, मेट्रो-कम-रोड फ्लाईओवर, बेंगलुरु मेट्रो का इसके बाहरी इलाकों तक विस्तार, मंड्या में के आरएस बांध के पास एक डिज्नीलैंड जैसा पार्क बनाना- ये सारी परियोजनाएं दिक्कतों का सामना कर रही हैं...

इनमें कोई बाधा नहीं है। मैं स्काईडेक को रोक रहा हूं क्योंकि दूसरे हवाई अड्डे के लिए जगह को अब तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने कहा है कि दूसरा हवाई अड्डा स्काईडेक से 20 किलोमीटर दूर होना चाहिए। इसके लिए हमने बेंगलुरु ग्रामीण में एमके पुरा की पहचान की है।

आपने पहले भी भाजपा की ओर से पाला बदलने के प्रस्तावों की बात की है... क्या आप कभी डगमगाए?

मैं इस पर चर्चा नहीं करना चाहता। मैं कांग्रेस और गांधी परिवार के प्रति प्रतिबद्ध हूं।

आपने यह भी कहा कि आप (मुख्यमंत्री बनने के लिए) अपनी बारी का इंतजार करेंगे। आप कब तक इंतजार करने को तैयार हैं?

आप ही उन वरिष्ठों की सूची बनाएं जो मुख्यमंत्री बनने के योग्य हैं। मेरा नंबर आने दें।

आपका नंबर कब आएगा?

यह तो मुझे अपने पार्टी अध्यक्ष से पूछना होगा। 

इस साल के अंत में नेतृत्व परिवर्तन और कुछ असंतुष्ट जेडीएस और भाजपा विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें हैं?

केवल जेडीएस विधायक ही नहीं, बल्कि उनके पार्टी कार्यकर्ता भी महसूस करते हैं कि उन्हें एक राष्ट्रीय संगठन के साथ जुड़ना चाहिए। केवल वे ही जेडीएस में हैं जिनके पास कांग्रेस या भाजपा में जगह नहीं है। कुछ जेडीएस नेताओं ने अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए भाजपा के साथ पहचान बनाई है- मैं उनका नाम नहीं लूंगा।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पिछले पांच सालों में क्या आप कांग्रेस को कैडर-आधारित पार्टी में बदलने में सक्षम रहे हैं?

मैं सफल नहीं हुआ। मैंने हाल ही में युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की और उनसे कहा कि मुझे बधाई, माला या शॉल नहीं चाहिए। मैंने उनसे हर बूथ डिजिटल बूथ बनाने को कहा। उनसे कहा कि पंचायत स्तर पर ऐसी समितियां बनाएं जिसमें समाज के सभी वर्ग शामिल हों और उसके नेता स्थानीय हों। 73वें और 74वें संविधान संशोधन का पैटर्न कांग्रेस पार्टी के लिए आदर्श होना चाहिए। 

अगर कांग्रेस का ‘एक व्यक्ति, एक पद’ का नियम लागू होता है, तो आप अपनी तीन में से कौन सी जिम्मेदारी रखेंगे? 

मैं इसका फैसला पार्टी हाईकमान पर छोड़ दूंगा। मेरी एक इच्छा है: पूरे राज्य में 100 कांग्रेस कार्यालय बनाना और मैं ऐसा करने की प्रक्रिया में हूं। मार्च तक मैं जगहों की पहचान कर लूंगा और उनकी नींव रखूंगा। हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए ये मंदिर की तरह होंगे। 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी जाति जनगणना की जरूरत पर जोर देते हैं, लेकिन कर्नाटक में एक दशक पहले किए गए जाति सर्वेक्षण के नतीजे जारी करने से आप लोगों को कुछ तो रोक रहा है। क्या आपको लगता है कि यह सर्वेक्षण वैज्ञानिक नहीं था? 

कर्नाटक में जो किया गया, वह सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण था। राहुल गांधी जाति जनगणना चाहते हैं, जो केन्द्र को करना है। सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण वैज्ञानिक तरीके से किया गया था। हमने इसे करने के लिए 150 करोड़ रुपये खर्च किए और हम इसे सार्वजनिक करने की प्रक्रिया में हैं। 

एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता के तौर पर क्या इंडिया ब्लॉक भागीदारों के बीच अधिक सामंजस्य और बेहतर समन्वय का कोई फॉर्मूला है? 

हालांकि इंडिया ब्लॉक का जन्म बेंगलुरु में हुआ था लेकिन हम सिर्फ मेजबान थे। सब कुछ कांग्रेस नेतृत्व के हाथ में है। इस विषय पर कांग्रेस कार्यसमिति में चर्चा होनी चाहिए। 

राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक घटनाक्रम को आप किस तरह देखते हैं- एनडीए बनाम कांग्रेस?

सूर्य को उगना है और फिर अस्त होना है। यह प्रकृति का नियम है और यही बात हर राजनीतिक दल पर लागू होती है। एक समय था जब संसद में केवल दो भाजपा नेता- वाजपेयी और आडवाणी- थे। आज भाजपा के 240 सांसद हैं। ऐसे ही एक दिन ऐसा आएगा जब लोकसभा में कांग्रेस की संख्या और भी अधिक होगी। कांग्रेस के उत्तर और दक्षिण भारत में विभाजित होने के कारण क्षेत्रीय दलों ने हमारा वोट शेयर झटक लिया। यह एक झटका था। यहां तक ​​कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी हमने अपना हिस्सा खो दिया। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है।

आपकी क्या खासियत है जिसके कारण कांग्रेस आलाकमान मुश्किल समय में आप पर भरोसा करता है?

वफादारी। दूसरा, काम को अंजाम देना और विरोधियों से सीधे भिड़ना। मेरे लिए पार्टी पहले आती है और बाकी सब उसके बाद- अगर पार्टी है, तो हम सब हैं।

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