राजनीति

झारखंड बीजेपी पर ‘खरमास’ का साया! बगैर नेता चुने अपने विधायकों को भेजा विधानसभा

झारखंड बीजेपी के लिए यह सर्वाधिक बुरी स्थिति है। विधानसभा सत्र के दौरान यह पहला मौका है जब सदन विपक्ष के नेता के बगैर चला। चुनावों के दौरान 65 पार का नारा देने वाली बीजेपी, दरअसल, अपनी हार के सदमे से नहीं उबर सकी है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

झारखंड बीजेपी पर ‘खरमास’ का साया मंडरा रहा है। हाल तक सत्ता में रही यह पार्टी अब किस नेता के भरोसे राज्य की सियासत करेगी, इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है। नवगठित विधानसभा में अपने 25 विधायकों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की हैसियत रखने वाली बीजेपी वैसी इकलौती पार्टी बन गई है जिसने विधायक दल का नेता चुने बगैर अपने विधायकों को विधानसभा सत्र में हिस्सा लेने के लिए भेज दिया। वह अपने नेता का चुनाव नहीं कर सकी। चुनावों में मिली करारी हार के बाद पुराने प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा के इस्तीफे के बावजूद पार्टी ने न तो अपना नया प्रदेश अध्यक्ष चुना है और न नेता प्रतिपक्ष। झारखंड बीजेपी के लिए यह सर्वाधिक बुरी स्थिति है। विधानसभा सत्र के दौरान यह पहला मौका है जब सदन विपक्ष के नेता के बगैर चला। चुनावों के दौरान 65 पार का नारा देने वाली बीजेपी, दरअसल, अपनी हार के सदमे से नहीं उबर सकी है।

Published: undefined

पूर्व मंत्री और बीजेपी विधायक रणधीर सिंह इस बाबत तर्क देते हैं कि खरमास में नए काम का शुभारभ नहीं होता है। इस कारण हमने अपने विधायक दल के नेता का चुनाव नहीं किया। विधानसभा सत्र के दौरान पार्टी विधायकों को दिशा-निर्देश देने के लिए तीन विधायकों की एक कमेटी बना दी गई। हमने इस रणनीति पर काम किया, तो किसी को क्या आपत्ति है? बकौल रणधीर सिंह, पार्टी का स्टैंड क्लीयर है और हमारे कार्यकर्ता कत्तई हताश नहीं हैं। तो क्या बहुमत के आंकड़े को पाने के बाद भी बीजेपी मुख्यमंत्री पद की शपथ के लिए खरमास के हटने का इंतजार करती, रणधीर सिंह इस सवाल का जवाब नहीं देते। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि 14 जनवरी के बाद आपको इस सवाल का जवाब मिल जाएगा।

Published: undefined

असली वजह प्रदेश कार्यसमिति में शामिल एक बीजेपी नेता ने बताई। उन्होंने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर कहा कि पार्टी दरअसल यह तय नहीं कर पा रही है कि वह आदिवासी चेहरे के साथ जाए या फिर गैर आदिवासी के। रघुवर दास और लक्ष्मण गिलुवा के चुनाव हार जाने के कारण नेता का चुनाव और पेचीदा हो गया है। अगर इन दोनों में से कोई भी जीत गया होता, तो बीजेपी यह बहाने नहीं बना रही होती। उनके मुताबिक, नेतृत्व का यह संकट अगर जल्दी हल नहीं किया गया, तो पार्टी को आने वाले दिनों में और दिक्कत होगी।

Published: undefined

क्या होगी दिक्कत

अगले कुछ महीने में झारखंड से राज्यसभा की दो सीटें खाली होने वाली हैं। इनमें एक आरजेडी के प्रेमचंद गुप्ता की सीट है तो दूसरी निर्दलीय परिमल नाथवानी की। परिमल नाथवानी मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इडंस्ट्रीज के बड़े अधिकारी भी हैं। वहीं, प्रेमचंद गुप्ता आरजेडी प्रमुख लालू यादव के करीबी। अब बीजेपी के पास नंबर भी नहीं है और उन्हें अपने नेता तक के चुनाव में असमंजस है। दूसरी ओर, हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चल रही नई सरकार को कुल 55 विधायकों का समर्थन हासिल है। ऐसे में, राज्यसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को एक और झटका मिल सकता है।

Published: undefined

वरिष्ठ पत्रकार मधुकर कहते हैं कि यह दौर बीजेपी के लिए सर्वाधिक बुरा है। हालांकि, बीजेपी के पास अभी 25 विधायक हैं। बीजेपी के पास इससे कम विधायकों के साथ भी राजनीति करने का अनुभव रहा है। इसके बावजूद कभी ऐसी हालत नहीं हुई कि प्रदेश अध्यक्ष के इस्तीफे के बावजूद नया प्रदेश प्रमुख चुनने में इतना विलंब हुआ हो या फिर विधायक दल का नेता चुने बगैर विधायक सदन की कार्यवाही में शामिल हुए हों। बकौल मधुकर, इससे पार्टी की आतंरिक कमजोरी अब सार्वजनिक चर्चा में शामिल हो गई है। इससे बीजेपी को और घाटा होगा। उनके मुताबिक, खरमास सिर्फ एक बहाना भर है। बहरहाल, 14 जनवरी के बाद बीजेपी किसे विधायक दल का नेता बनाती है और किसे प्रदेश अध्यक्ष, यह देखने वाली बात होगी। इससे ही तय होगा कि अगले पांच साल तक पार्टी कितनी मजबूती या कमजोरी के साथ झारखंड की सियासत करने वाली है।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined