राजनीति

राजस्थान चुनाव: दो गुजराती बनाम एक मारवाड़ी, बीजेपी ने कोई कसर नहीं छोड़ी ध्रुवीकरण करने में, लेकिन...

राजस्थान में कल वोट डाले जाएंगे। लेकिन इस बार के चुनावों में जहां बीजेपी ने वोटों के ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलतो और कांग्रेस ने अपना फोकस सिर्फ काम और 7 गारंटियों पर ही रखा।

राजस्थान चुनाव के दौरान सरदारपुरा में प्रचार करते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (फोटो सौजन्य -
राजस्थान चुनाव के दौरान सरदारपुरा में प्रचार करते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (फोटो सौजन्य -  

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चुनावी रैलियों में ‘जय श्रीराम’ के नारे, लोगों को याद दिलाना कि नरेंद्र मोदी की वजह से ‘रामराज्य’ की वापसी हुई है, लोगों को अयोध्या दर्शन की मुफ्त व्यवस्था और उदयपुर में पिछले साल हुई एक दर्दी की हत्या का बार-बार जिक्र करना...यह कुछ सुर्खियां हैं जो राजस्थान में बीजेपी के चुनाव प्रचार का लब्बोलुआब रहा है। राजस्थान में कल 25 नवंबर 2023 को मतदान होना है।

ध्यान रहे कि राजस्थान के दो पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत और वसुंधरा राजे ने हमेशा वाजपेयी वाला रुख अपनाया और बीजेपी में रहते हुए भी उदार चेहरा दिखाते रहे। दोनों को अच्छी तरह मालूम था कि सांप्रदायिकता राजस्थान के डीएनए में नहीं है। दोनों यह भी अच्छी तरह समझते थे कि समुदायों और जातियों को कैसे जोड़े रखना है। इनके बरअक्स बीजेपी को दो कट्टर नेता गुलाब चंद कटारिया और ललित कुमार चतुर्वेदी पार्टी के भीतर ही भीतर हमेशा वसुंधरा और शेखावत का विरोध करते रहे, लेकिन तमाम तिकड़में भिड़ाने के बाद भी इन दोनों को सीएम की कुर्सी नहीं मिल सकी।

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तो क्या माना जाए कि बीजेपी ने इस बार (2023 के विधान सभा चुनाव में) राजस्थान में प्रचार के दौरान सांप्रदायिकता का तड़का लगाकर गलती की है? इसमें किसी को कोई संदेह भी नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो खुद ही उदयपुर में पिछले साल हुई एक दर्जी कन्हैया लाल की हत्या का मामला उठाया। हालांकि इस हत्याकांड के आरोपी वारदात के चंद घंटों में ही गिरफ्तार कर लिए गए थे और मामले को आगे की जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया गया था, लेकिन केंद्र सरकार के मातहत काम करने वाली एनआईए ने अभी तक इसकी चार्जशीट दाखिल नहीं की है।

पूरे प्रचार अभियान क दौरान प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह इस मुद्दे को उठाते रहे कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार के शासन में अपराध बढ़े हैं। इस बात को इतनी बार और इतने जोर से उठाया गया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को खुथ सामेन आकर बताना पड़ा कि इस हत्याकांड के दोनों आरोपियों की राजस्थान के बीजेपी नेताओं, जिनमें उदयपुर क मेयर भी शामिल हैं, के साथ नजदीकियां हैं। उन्होंने बताया कि उदयपुर के बीजेपी के मेयर ने तो इन दोनों आरोपियों को हत्या से कुछ सप्ताह पहले ही एक अन्य मामले में पुलिस से छुड़वाया था।

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लेकिन इससे बीजेपी विचलित नहीं हुई और इस बात पर गुरुवार को अपना प्रचार अभियान खत्म किया कि अगर कांग्रेस को वोट दिया तो समझो आतंकवादियों को वोट दिया। बताने की जरूरत नहीं कि बीजेपी ने राजस्थान में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है। हालांकि वसुंधरा सरकार में दो बार मंत्री रहे यूनुस खान को भी टिकट देने से इनकार कर दिया गया। इसी तरह बीजेपी अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष और अजमेर दरगाह कमेटी के प्रमुख अमीन पठान को भी टिकट के नाम पर ठेंगा दिखा दिया गया। इसी से कुपित होकर उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया और कहा कि बीजेपी के पास अल्पसंख्यकों के लिए कोई कार्यक्रम नहीं है।

बीजेपी नेता इस दौरान लगातार कांग्रेस नेताओं पर हमले करते रहे कि वे वोट बैंक की राजनीति करते हैं। साथ ही आरोप लगाया कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण करती है। गौरतलब है कि राजस्थान की कुल करीब 7 करोड़ आबादी में मुस्लिमों की संख्या करीब 70 लाख है, लेकिन कम से कम 36 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट निर्णायक साबित होते हैं। इसकी काट के लिए बीजेपी ने मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए तीन संत किस्म के लोगों को मैदान में उतारा है। 

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राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव कहते हैं कि “यह एक अजूबा ही है कि बीजेपी द्वारा ध्रुवीकरण की लगातार कोशिशों के बावजूद राज्य में कहीं कोई सांप्रदायिक तनाव और गड़बड़ नहीं हुई।” वे इसके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को श्रेय देते हैं कि उकसावे के बावजूद प्रशासन ने किसी भी अप्रिय घटना को नहीं होने दिया।

राजस्थान में बीते कुछ महीनों के दौरान प्रधानमंत्री ने 13 दौरे किए और इस दौरान उन्होंने जितने संभव हो सकते थे उतने मंदिरों के दर्शन किए। उन्होंने अपने भाषणों में देवी-देवताओं के नाम लिए कहा कि बीजेपी को वोट देकर ‘उन्हें’ सबक सिखाओ। यहां तक कि वे शब्दों की मर्यादा भूलते हुए यहां तक कह बैठे कि ईवीएम का बटन इतनी जोर से दबाना जैसे ‘उन्हें’ फांसी दे रहे हो। लेकिन इस बात में कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि चुनाव आयोग ने इस भड़काऊ भाषण का कोई संज्ञान नहीं लिया।

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दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने न सिर्फ शब्दों की मर्यादा का ध्यान रखा बल्कि अपने आचरण से भी लोगों के बीच जाकर सिर्फ काम के आधार पर वोट मांगा। उन्होंने राजस्थान में कांग्रेस सरकार द्वारा शुरु की गई कल्याणकारी योजनाएं गिनाईं। इससे चिढ़े बीजेपी नेताओं ने कहना शुरु किया कि इन दोनों के बीच तो अनबन रहती है और वे साथ में काम नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री तो एक कदम आगे बढ़ गए और उन्होंने यहां तक कह दिया कि गूर्जरों का अपमान करते हुए कांग्रेस ने स्वर्गीय राजेश पायलट को वह मुकाम पर नहीं पहुंचने दिया जिसके वह हकदार थे।

मतदाताओं को अब 25 नवंबर शनिवार को अपना फैसला देना है। मतदाताओं को चुनना है सांप्रदायिकता और कल्याणकारी योजनाएं में से, उन्हें चुनना है काम करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और नरेंद्र मोदी में से जो सिर्फ और सिर्फ अपना ही गुणगान करते रहे।

लेकिन प्रचार के आखिरी दिन अशोक गहलोत ने एक शानदार किस्सा सुना दिया। उन्होंने कहा कि जब वे गुजरात में कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे थे तो प्रधानमंत्री कहते फिर रहे थे कि एक मारवाड़ी आ गया है राजस्थान से उन्हें हराने, मैं तो गुजराती हूं, अगर वह जीत गया को मैं कहा जाऊंगा...गहलोत ने कहा कि क्या अब मैं भी उन्हीं के अंदाज़ में कहूं कि दो गुजराती आ गए हैं राजस्थान में, अगर वे जीत गए तो मैं तो आपके बीच का हूं, राजस्थान का हूं. मैं कहां जाऊंगा....।

वोटों की गिनती 3 दिसंबर को होनी है, तो स्पष्ट हो जाएगा कि राजस्थान में किसकी जीत होती है।

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