कोरोना वायरस के वजह से पूरी दुनिया में कोहराम मचा है। अमेरिका जैसी महाशक्ति ने भी इस वायरस के आगे घुटने टेक दिए हैं। COVID 19 से दुनिया में अब तक 1.65 लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। वहीं 24 लाख से ज्यादा इस वायरस से संक्रमित हैं। वहीं इसकी उत्पत्ति को लेकर भी बहस जारी है। कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि यह चमगादड़ों से इंसानों में आया। जबकि, कुछ लोग कह रहे हैं कि इसे प्रयोगशाला में बनाया गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी खोज बहुत पहले ही हो गई थी? आज हम आपको बताते हैं कि इंसानों में सबसे पहले कोरोना वायरस की खोज किसने की थी और कैसे पता चला था इस वायरस का?
Published: 20 Apr 2020, 1:58 PM IST
आजतक के मुताबिक कोरोना वायरस की खोज 56 साल पहले ही हो गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक आज से 56 साल पहले 1964 में एक महिला वैज्ञानिक अपने इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप में देख रही थी। तभी उन्हें एक वायरस दिखा जो आकार में गोल था और उसके चारों तरफ कांटे निकले हुए थे। जैसे सूर्य का कोरोना। इसके बाद इस वायरस का नाम रखा गया कोरोना वायरस। इसे खोजने वाली महिला का नाम है डॉ. जून अल्मीडा।
कोरोना वायरस की खोज का श्रेय डॉ. जून अल्मीडा को ही जाता है। उन्होंने इस वायरस की खोज 34 साल की उम्र में की थी। 1930 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित एक बस्ती में रहने वाले बेहद साधारण परिवार में जून का जन्म हुआ। अल्मीडा के पिता बस ड्राइवर थे। घर आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से जून अल्मीडा को 16 साल की उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा था।
Published: 20 Apr 2020, 1:58 PM IST
16 साल की उम्र में ही उन्हें ग्लासगो रॉयल इन्फर्मरी में लैब टेक्नीशियन की नौकरी मिल गई। धीरे-धीरे काम में मन लगने लगा। फिर इसी को अपना करियर बना लिया। कुछ महीनों के बाद ज्यादा पैसे कमाने के लिए वे लंदन आईं और सेंट बार्थोलोमियूज हॉस्पिटल में बतौर लैब टेक्नीशियन काम करने लगीं। वर्ष 1954 में उन्होंने वेनेजुएला के कलाकार एनरीक अल्मीडा से शादी कर ली। इसके बाद दोनों कनाडा चले गए। इसके बाद टोरंटो शहर के ओंटारियो कैंसर इंस्टीट्यूट में जून अल्मीडा को लैब टेक्नीशियन से ऊपर का पद मिला। उन्हें इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी टेक्नीशियन बनाया गया। ब्रिटेन में उनके काम की अहमियत को समझा गया। 1964 में लंदन के सेंट थॉमस मेडिकल स्कूल ने उन्हें नौकरी का ऑफर दिया।
Published: 20 Apr 2020, 1:58 PM IST
लंदन आने के बाद डॉ. जून अल्मीडा ने डॉ. डेविड टायरेल के साथ रिसर्च करना शुरू किया। उन दिनों यूके के विल्टशायर इलाके के सेलिस्बरी क्षेत्र में डॉ. टायरेल और उनकी टीम सामान्य सर्दी-जुकाम पर शोध ककर रही थी। डॉ. टायरेल ने बी-814 नाम के फ्लू जैसे वायरस के सैंपल सर्दी-जुकाम से पीड़ित लोगों से जमा किए थे। लेकिन प्रयोगशाला में उसे कल्टीवेट करने में काफी दिक्कत आ रही थी। जिसके बाद परेशान डॉ. टायरेल ने ये सैंपल जांचने के लिए जून अल्मीडा के पास भेजा। अल्मीडा ने वायरस की इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप से तस्वीर निकाली। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी बताया कि हमें दो एक जैसे वायरस मिले हैं। पहला मुर्गे के ब्रोकांइटिस में और दूसरा चूहे के लिवर में। उन्होंने एक शोधपत्र भी लिखा, लेकिन वह रिजेक्ट हो गया। अन्य वैज्ञानिकों ने कहा कि तस्वीरे बेहद धुंधली हैं।
Published: 20 Apr 2020, 1:58 PM IST
लेकिन, डॉ. अल्मीडा और डॉ. टायरेल को पता था कि वो एक प्रजाति के वायरस के साथ काम कर रहे हैं। फिर इसी दौरान एक दिन अल्मीडा ने कोरोना वायरस को खोजा। सूर्य के कोरोना की तरह कंटीला और गोल। उस दिन इस वायरस का नाम रखा गया कोरोना वायरस। ये बात थी साल 1964 की। उस समय कहा गया था कि ये वायरस इनफ्लूएंजा की तरह दिखता तो है, पर ये वो नहीं, बल्कि उससे कुछ अलग है। डॉ. जून अल्मीडा का निधन 2007 में 77 साल की उम्र में हुआ। लेकिन उससे पहले वो सेंट थॉमस में बतौर सलाहकार वैज्ञानिक काम करती रहीं। उन्होंने ही एड्स जैसी भयावह बीमारी करने वाले एचाआईवी वायरस की पहली हाई-क्वालिटी इमेज बनाने में मदद की थी।
Published: 20 Apr 2020, 1:58 PM IST
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Published: 20 Apr 2020, 1:58 PM IST