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आकार पटेल का लेख: फर्क है कोरोना काल में बिहार और अमेरिकी चुनाव में, क्या चुनाव आयोग ले सकता है कुछ सबक

बिहार में चुनाव हो रहे हैं, और आने वाले वक्त में बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी चुनाव होने हैं। ऐसे में हमें सोचना होगा कि हम क्या उपाय करें कि मौजूदा हालात में कोरोना संक्रमण का खतरा कम से कम हो। अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया एक उदाहरण हो सकती है।

अमेरिका और भारत में मतदान की प्रक्रिया - फोटो : Getty Images
अमेरिका और भारत में मतदान की प्रक्रिया - फोटो : Getty Images 

चुनाव आयोग द्वारा नियंत्रित भारत की चुनाव प्रणाली या प्रक्रिया दुनिया के आश्चर्यों में से एक है। यह बहुत पहले की बात नहीं है (दरअसल हममें से बहुत से उसे आज भी याद करते हैं) जब बिहार के चुनाव हिंसा और बूथ कैप्चरिंग से जुड़े थे। टीएन शेषन और उनके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त बने एमएस गिल की कोशिशों से और चुनावी प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए उठाए गए कई कदमों से हिंसा में काफी कमी आई। इसके अलावा वोटिंग को सुचारू रूप से आयोजित कराने और वोटों की गिनती जल्दी पूरी कराने के लिए मशीनों का इस्तेमाल भी इसमें से एक कदम है।

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भारत के लोकतांत्रिक परिदृश्य बहुत सी चीजें बदल गई हैं लेकिन फिर भी सभी दल भरोसा करते हैं या मानते हैं कि दिल्ली में 300 अधिकारियों द्वारा संचालित चुनाव आयोग स्वायत्त है और सरकारी नियंत्रण से मुक्त है। चुनाव आयोग ने अपनी उपलब्धियों से अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा कमाई है और रूस, श्रीलंका, नेपाल, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, बांग्लादेश, थाईलैंड, नाइजीरिया, नामीबिया, भूटान, ऑस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान और यहां तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकारी भी यहां आकर देखते हैं कि वे कैसे अपने यहां की चुनावी प्रक्रिया को बेहतर बना सकते हैं।

पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदान प्रणाली की एक परंपरा रही है और सरकार और मतदान करने वाले नागरिक के दृष्टिकोण से दोनों को बदलना मुश्किल है। यह इस कारण से है कि भारत में व्यापक और त्वरित सुधार और उनकी व्यापक स्वीकृति भी उल्लेखनीय है।

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यह सब स्वीकार करने के बाद यह पूछा जाना चाहिए कि क्या हम इस प्रक्रिया में और सुधार नहीं कर सकते हैं और उन प्रथाओं से भी सीख सकते हैं जो अन्य राष्ट्रों में अपनाई जाती हैं। बिहार में 28 अक्टूबर से 7 नवंबर के बीच तीन चरणों में चुनाव हो रहे हैं। कई चरण में मतदान कराने का मकसद है कि इस दौरान सरकारी मशीनरी को अपने संसाधनों का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी। मसलन सुरक्षाकर्मियों का बेहतर इस्तेमाल होगा और चुनाव आयोग पर भार कम होगा। हालांकि चरण-वार मतदान कराने से कोरोना संक्रमण का खतरा कम नहीं होगा। किसी भी मतदान केंद्र पर मतदान करने के लिए कतार में खड़े लोगों की संख्या समान रहेगी।

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क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे इस आशंका को कम किया जा सके? हम अमेरिकी चुनाव को देख सकते हैं जहां 3 नवंबर को राष्ट्रपति का चुनाव होने जा रहा है। 24 अक्टूबर तक, लगभग 5.5 करोड़ अमेरिकी मतदान कर चुके हैं। यह 2016 में राष्ट्रपति चुनाव के लिए हुए कुल वोटों का 40% है। इसका मतलब है कि ये 40% लोगों को 3 नवंबर को कतार में नहीं दिखाना होगा। और इससे कोरोना के संक्रमण का खतरा कम होगा।

ऐसा अनुमान है कि चुनाव का दिन आने तक और 30 फीसदी या अधिक लोग इसी तरह वोट दे चुके होंगे, इससे मतदान केंद्रों पर तैनात चुनाव अधिकारियों और मतदाताओं का जोखिम और तनाव दोनों कम होगा। अमेरिका में मतदान राज्य का नियम है, और संघीय विषय नहीं है । इसलिए सभी 50 अमेरिकी राज्यों का मतदान को लेकर अपना नियम है। वे डाक द्वारा मतदान करने की अनुमति देते हैं (मतदाताओं को मेल-इन मतपत्र के लिए अनुरोध करना पड़ता है जो उन्हें भेजा जाता है और जिसे वे फिर से पोस्ट कर सकते हैं) या आधिकारिक वोटिंग दिन से तीन सप्ताह पहले नामित मतदान केंद्र पर व्यक्तिगत रूप से मतदान करते हैं।

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मतों की गिनती अंतिम दिन तक शुरू नहीं होती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि एक पक्ष का कोई लाभ या धारणा नहीं बनती है जो शुरुआती मतदान में इतना आगे है कि दूसरे पक्ष के मतदाताओं को दिखाने से हतोत्साहित करता हो। हालांकि यह एक नई प्रणाली नहीं है और कई वर्षों से अपनाई जा रही है। निस्संदेह इससे अमेरिकी मतदाताओं और चुनाव अधिकारियों को कोरोना संक्रमण रोकने में मदद मिलेगी, जबकि बिहार में इसके विपरीत प्रणाली अपनाई जा रही है।

इस वर्ष के अमेरिकी चुनाव में रिकॉर्ड संख्या में लोगों के वोट देने की उम्मीद है। और इसमें कोई विवाद या संदेह नहीं है कि मेल-इन बैलट और इन-पर्सन एडवांस वोटिंग सिस्टम से अमेरिका को काफी फायदा होता है। दरअसल, मतदान प्रक्रिया की सुरक्षा भी एक कारण है कि मतदान करने वालों की संख्या इतनी अधिक है।

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उम्मीद यह है कि बिहार चुनाव भी सुरक्षित रूप से गुजर जाएगा, लेकिन जल्द ही हम काफी लंबे चुनावी मौसम में प्रवेश कर रहे हैं, जब बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में चुनाव होगा। भारत को कुछ ऐसे तरीकों के बारे में सोचना होगा, और यह मानते हुए उपाय करने होंगे कि कोरोना की वैक्सीन अभी नहीं है और अगर आएगी भी तो सभी को मिल जाने तक कैसे चुनावी प्रक्रिया को सुरक्षित बनाया जाए। ऐसे सभी दलों की सहमति से किया जाना चाहिए, लेकिन इस पर विचार करने की आवश्यकता है। यह उन चीजों में से एक है जो अमेरिका बेहतर करता है और उसे देखा जा सकता है।

बेशक हमारी चुनावी प्रणाली कुछ मायनों में सबसे बेहतर है। दुनिया के एक हिस्से में जहां स्थानीय चुनावी हिंसा और संघर्ष हो रहे थे, लेकिन फिर भी वोटों की गिनती आसानी से निपट गई। लेकिन हम जिस दौर में हैं ऐसे में हमें आम लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अपनी प्रणाली में थोड़ा लचीलापन लाना होगा।

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