
बिहार में आजादी के बाद अपनी पहली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के साथ कांग्रेस ने अति पिछड़ा न्याय संकल्प पत्र जारी कर सत्ताधारी नीतीश-बीजेपी गठबंधन को हलकान कर दिया है। सूबे की सियासत में 36 प्रतिशत आबादी वाले समूह के वोट पर दावा ठोंक कर कांग्रेस ने जता दिया है कि आने वाले दिनों में उसकी राजनीति किधर जाएगी। और यही दांव नीतीश कुमार और बीजेपी के लिए चुनौती बन गया है। अति पिछड़ा और महादलित की सियासत करने वाले नीतीश कुमार की राजनीति का सूरज अस्ताचल है और कांग्रेस खुद को नए सिरे से खड़ा करने में जुटी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में 9 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल करने वाली कांग्रेस अगर अति पिछड़ों के वोट में सेंध लगाने में कामयाब रहती है तो यह चुनाव जेडीयू का मर्सिया लिख सकता है। बिहार की जनता जानती है कि नीतीश कुमार शासन और सेहत के मोर्च पर कमजोर हो रहे हैं और राज्य का प्रशासन हिचकोले खा रहा है। ऐसे में न्याय की बात कैसे होगी? यह स्थिति आगामी चुनाव में आरजेडी-कांग्रेस की अगुवाई वाले महागठबंधन के लिए बड़ा अवसर पैदा कर रही है।
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