जयंती विशेष: यूं ही नहीं सिनेमा के चॉकलेटी ब्वॉय कहलाते थे ऋषि कपूर, किसी भी किरदार में आसानी से हो जाते थे फिट

ऋषि कपूर हिंदी सिनेमा के एक ऐसे अभिनेता थे। जिन्होंने सिल्वर स्क्रीन पर जिस भी किरदार को निभाया, उस किरदार को उन्होंने अपने अभिनय से असल में जीवंत कर दिया।

फोटो: सोशल मीडिया
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अतहर मसूद

आज हिंदी सिनेमा के क़ामयाब और दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर की 71वीं जयंती है। ऋषि कपूर हिंदी सिनेमा के एक ऐसे अभिनेता थे। जिन्होंने सिल्वर स्क्रीन पर जिस भी किरदार को निभाया, उस किरदार को उन्होंने अपने अभिनय से असल में जीवंत कर दिया। वह कपूर ख़ानदान की तीसरी पीढ़ी के अभिनेता थे। ऐसे तो उनके करियर में बहुत सारी हिट फ़िल्मों का ज़खीरा है। जैसे बॉबी से लेकर मुल्क़ तक के उनके फ़िल्मी सफ़र को अगर देखें तो उन्होंने एक से बढ़कर एक किरदार निभाए। उन्होंने अपने अभिनय से हर किरदार में जान फूंक दी।

ऋषि कपूर का जन्म आज ही के दिन यानी 4 सितम्बर 1952 को बंबई के चेंबूर में हुआ था। ऋषि कपूर बॉलीवुड के शो-मैन यानी राजकपूर के मंझले बेटे थे। हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता पृथ्वीराज कपूर उनके दादा थे। उनकी मां का नाम कृष्णा राज कपूर था। उनका निक नेम चिंटू था। उनके बड़े भाई रणधीर कपूर और छोटे भाई राजीव कपूर भी हिंदी फ़िल्मों के जाने-माने अभिनेता थे। उनकी शादी मशहूर अभिनेत्री नीतू सिंह से हुई थी। उनका बेटा रणबीर कपूर भी अपने पिता ऋषि कपूर की तरह ही बॉलीवुड का चॉकलेटी हीरो है। ऋषि कपूर की बेटी रिधिमा का विवाह बिज़नेसमैन भरत साहनी से हुआ है। बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्रीयां करिश्मा कपूर और करीना कपूर उनकी भतीजीयां है।


ऋषि कपूर ने अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई अपने भाईयों के साथ बंबई के कैंपियन स्कूल और उसके बाद आगे की पढ़ाई अजमेर के मेयो कॉलेज से पूरी की। फ़िल्मी परिवार से होने की वजह से ऋषि कपूर भी हमेशा से ही फ़िल्मों में एक्टिंग करने का शौक़ रखते थे। ऋषि कपूर ने 1970 में अपने पिता राजकपूर की फ़िल्म मेरा नाम जोकर से बाल अभिनेता के तौर पर अभिनय की शुरुआत की थी। इस फ़िल्म में उन्होंने अपने पिता राजकपूर के बचपन का किरदार निभाया था।

साल 1973 में राजकपूर नें ऋषि कपूर को फ़िल्म बॉबी से बड़े पर्दे पर लॉन्च किया। इस फ़िल्म में उनकी हीरोइन डिंपल कपाड़िया थीं। फ़िल्म बॉबी की अपार सफलता ने उन्हें हिंदी सिनेमा का चॉकलेटी एक्टर बना दिया। बॉबी के बाद ऋषि कपूर नें 1975 में खेल खेल में, 1976 में कभी-कभी, 1977 में अमर अक़बर एन्थोनी, 1979 में सरगम और 1980 में क़र्ज़ जैसी सुपरहिट फ़िल्में हिंदी सिनेमा को दीं। अपने करियर के शुरूआती दिनों में उनकी जोड़ी अभिनेत्री नीतू सिंह के साथ ख़ूब जमी।

1982 में रिलीज़ हुई उनकी फ़िल्म प्रेम रोग कई मायनों में उनके लिए ख़ास रही। उनकी इस फ़िल्म में तत्कालीन समाज के विधवा विवाह जैसे ज्वलंत मुद्दे को पुरज़ोर तरीके से उठाया गया। आर.के. बैनर तले बनी इस फ़िल्म के निर्माता और निर्देशक कोई और नहीं बल्कि शो-मैन आफ़ दा मिलेनियम कहे जाने वाले अभिनेता और ऋषी कपूर के पिता राज कपूर थे।

फिल्म में एक विधवा को समाज में क्या क्या दुख झेलना पड़ता है। क्या क्या उलाहना दिया जाता है, किस तरह उसे अपनी ज़िन्दगी बितानी पड़ती है, इन सब को बहुत ही मार्मिक और दिल को झकझोर देने वाले तरीके से दिखाया गया है। किस तरह तत्कालीन समाज विधवा विवाह को एक पाप समझता था। उसे भी इस फ़िल्म में दिखाया गया। चूंकि राज कपूर उस समय समाज में व्याप्त कुछ ऐसी कुरीतियों पर फ़िल्में बनाया करते थे। इसलिए उन्होंने इस विषय पर भी फ़िल्म प्रेम रोग बनाई थी।


फिल्म में अभिनेत्री के तौर पर उन्होंने पद्मिनी कोल्हापुरी को लिया था। जिन्होंने फिल्म में एक विधवा के किरदार को बख़ूबी अंजाम दिया। ऐसे तो फिल्म में ऋषी कपूर का रोल सीमित था। फिर भी उनका जितना रोल था, उसे उन्होने ऐसे निभाया की फ़िल्म ने सफलताओं के सारे आयाम को तोड़ दिया था।

इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान का एक क़िस्सा ख़ुद पद्मिनी कोल्हापुरी बताती हैं कि फ़िल्म के एक दृश्य में उन्हे ऋषी कपूर को थप्पड़ मारना था। वह इतने धीरे से ऋषि कपूर को थप्पड़ मार रही थी, कि दृश्य ओके नहीं हो रहा था। तब राजकपूर ने उन्हे ज़ोर से डांट लगाई और ऋषी को एक ज़ोर का थप्पड़ मार कर बताया कि ऐसे मारो। राजकपूर ने उनसे कहा तुम ये मत सोचो की तुम जिसे थप्पड़ मार रही हो वह राज कपूर का बेटा है, बल्कि ये सोचो की वह तुम्हारी फ़िल्म का किरदार है। तब जाकर वह सीन ओके हुआ।

ऋषि कपूर ने अपने करियर में 1973 से 2000 तक 92 फ़िल्मों में रोमांटिक हीरो का किरदार निभाया। उन्होंने बतौर लीड अभिनेता 51 फ़िल्मों में अभिनय किया। ऋषि कपूर का शुमार उस ज़माने के चॉकलेटी हीरोज़ में किया जाता था। उन्होने हिंदी सिनेमा को कई रोमांटिक हिट फ़िल्में दी। ऋषि कपूर ने अपनी पत्नी नीतू सिंह के साथ 12 फ़िल्मों में काम किया। 80 और 90 के दशक में अभिनेत्री श्रीदेवी और जूही चावला के साथ उनकी जोड़ी को ख़ूब पसंद किया गया।

2000 के दशक में ऋषि कपूर ने साल 2004 में हम तुम, 2006 में फ़ना, 2007 में नमस्ते लंदन, 2009 में लव आज कल, 2012 में अग्निपथ और हाउसफुल 2 जैसी फ़िल्मों में चरित्र भूमिकाएँ निभाईं। उन्होंने साल 2013 में शुद्ध देसी रोमांस, 2018 में 102 नॉट आउट और मुल्क़ जैसी फ़िल्मों में अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज करवाई।

अभिनय की दुनिया में नाम कमाने के बाद ऋषि कपूर ने निर्देशन की दुनिया में भी अपना क़दम रखा था। उन्होंने 1998 में अक्षय खन्ना और ऐश्वर्या राय बच्चन को लेकर अपने पिता के बैनर आर.के. बैनर के तले फ़िल्म आ अब लौट चले बनाई। ऋषि कपूर ने पर्दे पर हमेशा ही रोमांटिक किरदार को निभाया था, लेकिन 2012 में रिलीज़ हुई ऋतिक रौशन की फ़िल्म अग्निपथ में उनकी खलनायक की भूमिका को देखकर सभी हैरान हो गए। ऋषि कपूर को फ़िल्म अग्निपथ के लिए आईफ़ा नें बेस्ट नेगेटिव रोल अवार्ड से भी नवाज़ा।


ऋषि कपूर को मिले अवार्ड्स की बात की जाए तो उन्हें 1970 में फ़िल्म मेरा नाम जोकर के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरुस्कार दिया गया था। इस फ़िल्म में उन्होंने राजकपूर के बचपन का रोल निभाया था। उसके बाद 1974 में उन्हें फ़िल्म बॉबी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड दिया गया। 2008 में फ़िल्मफ़ेयर नें उन्हें हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाज़ा। 2017 में उन्हें फ़िल्म कपूर एंड संस के लिए फ़िल्मफ़ेयर नें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के अवार्ड से नवाज़ा।

29 अप्रैल 2020 को सांस लेने में तकलीफ़ की वजह से ऋषि कपूर को मुंबई के रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। जहां 30 अप्रैल 2020 को बॉलीवुड का यह चमकता सितारा इस फ़ानी दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कहकर चला गया। उनके निधन के बाद 2022 में उनकी आख़िरी फ़िल्म शर्मा जी नमकीन रिलीज़ हुई।

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