हम पर संसदीय और कार्यपालिका के कार्यों में अतिक्रमण का आरोप लगाया गया है: सुप्रीम कोर्ट
न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने कहा है कि 'हम पर कार्यपालिका और संसदीय कार्यों में अतिक्रमण का आरोप लगाया जा रहा है।' उन्होंने उस टिप्पणी की तरफ इशारा किया है जिसमें कहा गया था सुप्रीम कोर्ट संसद के कामों में दखल नहीं दे सकता।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बी आर गवई ने न्यायपालिका को हाल में निशाना बनाए जाने का परोक्ष रूप से संकेत देते हुए कहा ‘‘हम पर संसदीय और कार्यपालिका के कार्यों में अतिक्रमण करने का आरोप’’ लगाया जा रहा है। जस्टिस गवई ने यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल में वक्फ कानून विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हाल में हुई हिंसा की जांच कराए जाने का अनुरोध करने वाली एक नई याचिका पर सुनवाई के दौरान की। इस पीठ में न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने एक अन्य मामले में भी इसी तरह की टिप्पणी की। दूसरा मामला उस याचिका से जुड़ा है जिसमें केंद्र को ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्री की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘इस पर कौन नियंत्रण कर सकता है? इस संबंध में नियम तैयार करना केंद्र का काम है।’’
जस्टिस बी आर गवई ने मामले में पक्ष रख रहे अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन से कहा, ‘‘हमारी आलोचना की जा रही है कि हम कार्यपालिका के कामकाज में, विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं।’ जैन ने कहा, ‘‘यह बहुत गंभीर मामला है’’। इसके बाद पीठ ने सुनवाई अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध कर दी।
ध्यान दिला दें कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद निशिकांत दुबे ने पिछले सप्ताह न्यायपालिका के खिलाफ निंदात्मक टिप्पणियां की थीं। धनखड़ ने राष्ट्रपति के फैसला करने की समयसीमा तय करने और ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में काम को लेकर न्यायपालिका पर सवाल उठाते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘‘परमाणु मिसाइल’’ नहीं दाग सकता।
इसके बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने कहा था कि देश में जारी गृह युद्धों को लिए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं।
निशिकांत दुबे की टिप्पणी से बीजेपी ने किनारा करते हुए कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है, लेकिन न्यायविदों और विपक्षी दलों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताई है। उनका कहना है कि यह सुप्रीम कोर्ट का अपमान है और अवमानना का मामला है।
इस बाबत एक वकील ने देश के अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखकर निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना का मामला चलाए जाने की इजाजत मांगी है।
(पीटीआई-भाषा के इनपुट के साथ)
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