विष्णु नागर का व्यंग्य: जनता का पैसा होता आखिर लूटने के लिए ही तो है!

इस देश में लूट भी होती रहेगी, जांच भी चलती रहेंगी, कमीशन भी बैठते रहेंगे, उनकी रिपोर्टें भी आती रहेंगी, संसद के पटल पर रखी जाती रहेंगी। अदालतों में सुनवाई होती रहेगी, संसद की कार्यवाही ठप होती रहेगी।

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

जनता का पैसा आखिर होता किस लिए है, लूटने के लिए ही तो! जो लूट सके, लूटे, जो न लूट सके, मजे से पछताए। और लूटो तो भाइयों-बहनों, करोड़ों में ही लूटो। विजय माल्या,नीरव मोदी की तरह ही लूटो। हजार, 5 हजार, 10 हजार करोड़ ही लूटो। कम लूटोगे तो मुफ्त में पकड़े जाओगे, जेल जाओगे, लालू यादव बन जाओगे। ज्यादा लूटोगे तो ज्यादा बांटोगे, ज्यादा खाओगे, ज्यादा खाने दोगे और बचकर यूं निकल जाओगे। पहले ही चेतावनी दे दी जाएगी कि भैया-बहना अभी मामला कुछ बिगड़ता-सा लग रहा है, सरकार को कुछ करने का ड्रामा-वामा करना पड़ेगा, समय से खिसक लो, मालमत्ता साथ ले जाओ और मौज करो। लूट तो वहां से भी जारी रख सकते हो, नो प्राब्लम।

पहले बैंक लूटने डकैत आया करते थे। उनके हाथ में पिस्तौल होती थी, चेहरे पर नकाब होता था और जो नकदी वहां उस समय होती थी, लेकर भाग जाते थे। कभी कुछ पकड़े जाते थे और ज्यादातर पकड़े नहीं जाते थे। आजकल के डकैत दूसरी तरह के हैं। न वे नकाब पहनते हैं, न पिस्तौल लेकर आते हैं बल्कि बैंक तक सूटबूट पहनकर आने की तकलीफ भी नहीं उठाते। बैंक ही चलकर उन तक यह आफर लेकर आता है कि भैया हमें जितना अभी लूट सकते हो, अभी लूट लो, जितना किस्तों में लूटना हो, बाद में लूट लेना। ऊपर का ऐसा ही आदेश है बल्कि अध्यादेश है। लूटो और चैन की बंसी बजाओ। वह लूटता चला जाता है और चैन की बंसी बजाता चला जाता है। वह दिल्ली आता है तो प्रधानमंत्री और वित्त मंंत्री से नीचे किसी से बात नहीं करता। वे विदेश जाते हैं तो वहां सरकारी डेलिगेशन में शामिल कर लिया जाता है।

दरअसल लूट ही हमारे लोकतंत्र का आधारभूमि बन चुकी है, अब तो लगता है कि लूट नहीं रहेगी तो लोकतंत्र भी नहीं रहेगा। लूट है तो चुनाव लड़ने के लिए 10,000 करोड़ है, लूट है तो चाय पर चर्चा है, अच्छे दिन के वादे हैं, 15 लाख हर नागरिक की जेब में आने के आश्वासन हैं। और लूट है तो विजयश्री भी आपकी है, आपके झूठ की है। आप लुटेरे हैं तो सरकार भी समझो आपकी है। लूट है तो सीना 56 इंच का है। लूट है तो आप कभी फकीर हैं, कभी चौकीदार हैं। लूट है तो जो नहीं है वह सब भी है और जो है वह सब नहीं है। लूट है तो शब्दों की उल्टियां हैं और उसे झेलनेवाले हैं। लूट है तो एक तरफ मस्जिद है, दूसरी ओर मंदिर है। लूट है तो भारत फिर से जगतगुरु है, लूट है तो रामराज्य का बिकाऊ सपना है। लूट है तो संत-महंत आपके हैं, पूंजीपति आपके हैं, सांसद, विधायक, मंत्री, अफसर सब आपके हैं। लूट है तो हर 4 घंटे में एक बैंक घोटाला है और चिंता की कोई बात नहीं है।लूट ही दरअसल विकास है। लूट है तो किसानों की आत्महत्या महज एक अपठनीय खबर है। लूट है तो हिंदू राष्ट्र है। लूट जारी है तो प्रधानमंत्री की चुप्पी भी जारी है वरना उनसे बड़ा गप्पी कहां? लुटेरों को कभी अपराधबोध नहीं होता। यह बोध उन्हें होता है जो लूट नहीं पाते या जो लूटना नहीं जानते या लूटना नहीं चाहते।

इस देश में लूट भी होती रहेगी, जांचें भी चलती रहेंगी, कमीशन भी बैठते रहेंगे, उनकी रिपोर्टें भी आती रहेंगी, संसद के पटल पर रखी जाती रहेंगी। अदालतों में सुनवाई होती रहेगी, संसद की कार्यवाही ठप होती रहेगी। मीडिया कभी-कभी कुछ-कुछ बोलता रहेगा। सख्त से सख्त कानून बनते रहेंगे। रुकेगा कुछ नहीं और होगा भी कुछ नहीं! लूट जारी थी, जारी रहेगी। लूट हमारे जनतंत्र का पांचवां खंभा है जिसने बाकी चारों खंभों का भार अपने विशाल कंधों पर उठा रखा है। लूटने की चाह है, क्षमता है, तो बैंक का पासवर्ड भी आपके पास है। लूट है तो कोई फर्क नहीं पड़ता दो- चार-दस दिन की जेल भी हो जाए तो। जेब गरम है तो जेल एक भरम है, रेशम से नरम है। लूट है तो सरकार आपकी है, आपके लिए है और आपके द्वारा है। तो आइए या तो लूटिये या लुटने के लिए सदैव तैयार रहिए। पसंद अपनी-अपनी।

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