विष्णु नागर का व्यंग्य: राजनीति के बेशर्म रंग में रंगा ये यह फर्जी चिंताओं का स्वर्ण युग है!
फर्जी चिंताएं पालना अब मैं भी सीखना चाहता हूं मगर अब सीखने-सिखाने की उम्र रही नहीं। इतनी बेशर्मी अब होती नहीं। जब कर सकते थे, तब साहेब सीन से बाहर थे। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।
![फोटो: IANS](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2023-11%2F5316f148-ac2b-419a-a0dc-e29e970907ad%2FPM_MODI.jpg?rect=0%2C0%2C512%2C288&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
यह फर्जी चिंताओं का स्वर्ण युग है। यह इतिहास का मोदी युग है। फर्जी चिंता यह है कि भारत को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना है, 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाना है। आज क्या हो रहा है, इसकी चिंता नहीं। मणिपुर छह महीने से जल रहा है, जलता जा रहा है, सदियों तक भी जलता रहे, इसकी चिंता नहीं मगर विकसित राष्ट्र बनाने की चिंता है। जलता भारत, मरता भारत, विकसित भारत, ये इनका नारा है। जब साहेब 97 वर्ष के हो जाएंगे, तब ये इस दुनिया में रहे, तो भी लोग इन्हें भूल जाएंगे मगर इनका सपना है कि हम तो तब तक भारत के सीने पर लदे रहेंगे। जब तक भारत अच्छे बच्चे की तरह विकसित राष्ट्र बनकर नहीं दिखाएगा, हम इसके सीने पर कूद-फांद मचाते रहेंगे।
फर्जी चिंताएं पालना अब मैं भी सीखना चाहता हूं मगर अब सीखने -सिखाने की उम्र रही नहीं। इतनी बेशर्मी अब होती नहीं। जब कर सकते थे, तब साहेब सीन से बाहर थे। फिर भी मान लो इन्होंने अंदिर-मंदिर, इकास -विकास सब कर लिया। हिंदुस्तान-पाकिस्तान, सब चोर, सब देशद्रोही, अल्लम-बल्लम, मुर्ग-मुसल्लम सब कर लिया। कुछ भी नहीं छोड़ा। फिर भी 2024 में इन्हें जनता ने हरा दिया तो इनका क्या होगा? इसकी चिंता कायदे से इन्हें होना चाहिए मगर इनसे अधिक मुझे हो रही है। बाहर से ये कुछ भी दिखाएं, मन तो इनका भी डरता होगा। सारे पांसे उल्टे पड़ गए तो देश और पार्टी तो जाए भाड़ में मगर इनकी चिंता है कि हाय, मेरा अब क्या होगा? यह चिंता मुझे है। मैं मानता हूं, जो होगा, उनका होगा, अपना तो सबकुछ जो होना था या नहीं होना था,हो चुका। अपन रेस से बाहर हैं। अपन तो रेस के घोड़े भी नहीं कि सवार को जिताने की चिंता में घुलें!
फिर भी अपने साहेब की मुझे चिंता है। ये महाप्रभु, ये महामायावी, अगर हार गए तो इनका क्या होगा? इस बंदे की बेफिक्री की मुद्रा पर मैं नहीं जाता। यह पक्का ड्रामेबाज है, राजनीति का कुशल अभिनेता है। जो बेवजह रो सकता है और रोने के समय अट्टहास कर सकता है, वह कुछ भी कर सकता है। जो कभी हरदम मां-मां किया करता था, मां के मरते ही उसे फटाफट अग्नि को समर्पित करवाने में बिजी हो गया क्योंकि माताजी ने उस दिन के उसके सारे कार्यक्रम बिगड़वा दिए थे। मां के लिए उसी दिन मरना इतना जरूरी था तो अपने इस बेटे को पहले बता देतीं ताकि इसे वह अपने शिड्युल में शामिल कर लेता!
हां तो उनकी चिंता इसलिए है कि सुरक्षा के सुपर इंतजाम होते हुए भी जो इतना डरा-डरा, कांपता- सा रहता है, वह अंदर से चुनाव से डर नहीं रहा होगा, यह हो नहीं सकता। ये तीसरी बार आने के लिए जान देने के अलावा सबकुछ करेगा। कुछ भी यानी कुछ भी नहीं छोड़ेगा। यह बंदा मनमोहन सिंह नहीं है, अटल बिहारी वाजपेयी आदि नहीं है कि हार गए तो शांति से घर बैठ गए। जो भी दुखी- सुखी होना है, घर में होते रहे। कुढ़ना है तो भी घर में कुढ़े, सड़क पर कपड़े नहीं फाड़े।
ऐसों को फिक्र नहीं होती थी पर इन जैसों की होती है। ये ट्रंप के छोटे भैया हैं। इनके लिए झूठ-सच कुछ नहीं, सत्ता ही परम सत्य है। इनको लगता है कि ईश्वर ने इन्हें अंत तक राज करने के लिए भेजा है। 'ईश्वर की मर्जी ' के खिलाफ वे कुछ नहीं होने देंगे, चाहे चुनाव के नतीजे कुछ भी आएं। जनता का फैसला कुछ भी हो। जनता होती कौन है-ईश्वर और उनके बीच? वह है कौन?उसकी इनके सामने हस्ती क्या है? इसलिए इनकी चिंता होती है! और कुछ न करें मगर इनकी चिंता करनी पड़ती है। इनकी चिंता, अपनी शचिंता है। अपने मुल्क की, लोकतंत्र की चिंता है।
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