विष्णु नागर का व्यंग्य: मोदी जी को जो प्रधानमंत्री मानते हैं, वे गलत करते हैं, वो तो राजा हैं!

उन्हें जो प्रधानमंत्री मानते हैं, वे गलत करते हैं। मोदी जी तो राजा हैं। वैसे राजा कहना भी उनके कद को छोटा करना है। वह तो चक्रवर्ती सम्राट हैं। विनम्र हैं, इसलिए मुकुट धारण नहीं करते वरना उन्हें कौन इससे रोक सकता है?

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

उन्हें जो प्रधानमंत्री मानते हैं, वे गलत करते हैं। मोदी जी तो राजा हैं। वैसे राजा कहना भी उनके कद को छोटा करना है। वह तो चक्रवर्ती सम्राट हैं। विनम्र हैं, इसलिए मुकुट धारण नहीं करते वरना उन्हें कौन इससे रोक सकता है? और सम्राटों की बात तो हमेशा से निराली रही है। मक्खन खाना तो उनके लिए बहुत ही मामूली बात है। वह चाहें तो मक्खन से मुँह धो सकते हैं। मन करे तो मक्खन के स्विमिंग पूल में तैर सकते हैं। मक्खन के बिस्तर पर मक्खन का तकिया लगा कर सो सकते हैं। वह ऐसा सबकुछ कर सकते हैं, जो चक्रवर्ती सम्राटों और बादशाहों ने किया। उनकी अधूरी तमन्नाओं को पूरा करने का दायित्व भी वह चाहें तो संभाल सकते हैं! आश्चर्य नहीं कि उन्हें कभी मक्खन पर लकीर खींचने का शौक हुआ करता था। यह मैं नहीं कह रहा, उन्होंने स्वयं जापान में भारतीय समुदाय के लोगों को बताया और खूब तालियाँ बटोरीं। अंततः उन्हें महसूस हुआ कि इस काम में मजा नहीं आ रहा। चूँकि मोदी जी राजनीति सहित जो भी काम करते हैं, मजे के लिए करते हैं, इसलिए जिसमें उन्हें मजा नहीं आता, वह नहीं करते। फिर उन्होंने जाने किस- किस पर लकीरें खींचीं। अंत में जब उन्होंने पत्थर पर लकीर खींची तब जाकर मजा आया। आजकल वह 18-18 घंटे काम करते बताये जाते हैं। न जाने कितनी घंटे तो उन बेचारों के पत्थर पर लकीर खींचने का मजा लेने में खर्च हो जाते हैं मगर मजा लेना वह चूक नहीं सकते, देश के आत्मसम्मान का सवाल है! वैसे भी अब सबकुछ बेचना और पत्थर पर लकीर खींचना ही बाकी बचा है ! बुलडोजर चलवाने आदि का काम उनके कुशल सहायक कर ही रहे हैं! बस उनका एक इशारा काफी होता है।

बड़े लोगों के शौक चूँकि बड़े होते हैं, इसलिए पत्थर भी वह अपनी हैसियत के मुताबिक बड़ा और कीमती चुनते होंगे मगर पत्थर कितना भी कीमती हो, पत्थर ही होता है। उसे तो पता नहीं होता कि वह कीमती है या सस्ता। उसे तो यह भी पता नहीं होता कि चक्रवर्ती सम्राट उस पर लाइन खींचना चाहते हैं इसलिए उसे मक्खन सा मुलायम हो जाना चाहिए। पत्थरों को अपनी औकात और चक्रवर्ती सम्राट की हैसियत का ध्यान नहीं रहता। इस कारण आदमी आज कहाँ से कहाँ पहुँच गया है। यहाँ तक कि मोदी जी भी कहाँ से कहाँ पहुँच गए हैं मगर पत्थर करमजले वहीं के वहीं रह गये!


वैसे महंगे से महंगे पत्थर पर भी लाइन खुद खींचने में सम्राट को बहुत मेहनत तो लगती होगी।दिन के 18 घंटे काम करने की लाचारी हो तो ऐसे कुछ काम भी करने पड़ते हैं! और यह तो उनके विरोधी भी मानते हैं कि बंदा लाइन तो खींचता है और पत्थर पर ही खींचता है। एक लाइन नफरत की, एक लाइन पूँजीपतियों की अनथक सेवा की। एक लाइन आत्मप्रशंसा की। एक लाइन विरोधियों को खरीदने और जो बिकाऊ न हो, उसे कुचलने की। एक लाइन झूठ की। एक लाइन मूर्खों की जमात का पालन-पोषण करने की। इतनी सारी टेढ़ीमेढ़ी लाइनें खींच रखी हैं सम्राट सर ने कि पत्थर भी घबरा गये हैं। अबे पत्थरों, घबराते क्या हो, अपने नसीब पर गर्व करो कि तुम्हें सम्राट ने चुना है! और अभी तो बच्चू, सम्राट बाबू लाइन ही खींच रहे हैं, जब लिखना सीख जाएँगे, तब देखना, धमाल मचा देंगे। एक- एक की हवा टाइट कर देंगे। अब न तेरी मुक्ति है,न हमारी। आदमी तो फिर भी जल्दी मर जाता है मगर बदकिस्मत पत्थर तो मरता भी नहीं।उस पर लिखी इबारत आसानी से नहीं मिटती ! भुगतना बेट्टा लाखों साल तक।

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