किताबें

2019 में आई किताबों में दिखी अभिव्यक्ति के खतरे से निपटने और लोकतंत्र बचाने की जद्दोजहद

इस साल कई किताबों ने सरकार और उसके गलत कामों की पोल खोली। कई लेखकों ने तथ्यों पर बातें रखीं। अभिव्यक्ति पर जब-जब खतरे आए हैं, लेखन की धार इसी तरह पैनी हुई है। ठीक है कि ठकुरसुहाती वाली सामग्री बाजार में बहुत है लेकिन ऐसी सामग्री हमेशा बहुतायत में रही हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

‘किताबें दुनिया नहीं बदलतीं, लेकिन दुनिया बदलने की एक प्रक्रिया जरूर शुरू करती हैं।’ साल 2019 समाप्त हो रहा है। हर साल की तरह इस साल भी अनेक किताबें प्रकाशित हुईं, बिकीं और शायद पढ़ी भी गईं। हिंदी में ही लगभग दस हजार से अधिक टाइटल हर साल छपते हैं। गुजर रहा साल तो इस बात के लिए भी याद किया जाना चाहिए कि इस साल पूरे देश में 2700 से अधिक साहित्यिक आयोजन देश के विभिन्न हिस्सों में हुए। इनमें वे आयोजन शामिल नहीं हैं, जो किताबों के विमोचनों के लिए निजी स्तरों पर आयोजित किए गए।

किताबों में विविधता भी इस साल भरपूर देखी गई। उपन्यास, कहानियां, कविताएं, वैचारिक किताबें, ऐतिहासिक और पौराणिक किताबें, अनुवाद, डायरियां, आत्मकथाएं तो इस साल आई हीं, साथ ही वैविध्य की नई खिड़कियां भी इस साल खुलीं। यह दिलचस्प है कि इस साल वैचारिक किताबों का खूब बोलबाला रहा। अभिव्यक्ति के खतरे, लोकतंत्र को बचाए रखने की जद्दोजहद, सांप्रदायिकतावाद से निपटने की कोशिशें और राष्ट्रवाद इन कथेतर साहित्य के मूल में रहा। यहां हम कुछ किताबों का जिक्र करके उन प्रवृत्तियों पर उंगली रखने का प्रयास करेंगे जो इस साल उभर कर सामने आईं।

Published: undefined

बोलना ही है

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार को इस साल का रेमन मैगसायसाय अवार्ड मिला। यह अवार्ड उन्हें एनडीटीवी पर चलाई गई स्टोरीज से भी ज्यादा उन भाषणों के लिए दिया गया, जो वह पूरे साल देश के विभिन्न हिस्सों में देते रहे। इन भाषणों पर ही एक किताब प्रकाशित हुई ‘बोलना ही है।’ यह किताब भारतीय समाज के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें आज का समय ही दर्ज नहीं है बल्कि इस समय में जनता को कैसे ‘रिएक्ट’ करना चाहिए वह भी दर्ज है। रवीश की यह किताब पड़ताल करती है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किस-किस रूप में बाधित हो रही है, कैसे परस्पर संवाद और सार्थक बहस के रास्तेल गातार संकीर्ण होते जा रहे हैं।

अगर आप समझना चाहें तो इस किताब को पढ़कर भारत में फैल रहे डर के रोजगार को समझ सकते हैं। आप समझ सकते हैं कि फेक न्यूज का उद्योग कितना बड़ा हो गया है। आप नए लोकतंत्र की बनती भयावह तस्वीर देख सकते हैं और देख और जान सकते हैं कि बाबाओं के बाजार में आप कहां खड़े हैं और आप मीडिया के असली चेहरे को इस किताब से पहचान सकते हैं। हमारे आसपास घट रही छोटी-छोटी घटनाओं से रवीश ने विषयों को समझाने की कोशिश की है। उन्होंने यह भी बताया कि डर को जीत में कैसे बदला जा सकता है। इसके लिए वह बोलने यानी प्रतिरोध को बड़ी जरूरत बताते हैं। इस किताब को पढ़ना आज के समय की तल्ख सच्चाइयों को जानना है।

Published: undefined

गांधी और समाज

वरिष्ठ साहित्यकार गिरिराज किशोर महात्मा गांधी पर उपन्यास- पहला गिरमिटिया लिख कर चर्चित हो चुके हैं। अखबारों में उनके स्तंभ नियमित छपते रहते हैं। यही स्तंभ ‘गांधी और समाज’ शीर्षक से एक किताब के रूप में छपे हैं। लेकिन यह महज संख्या बढ़ाने के लिए छपी किताब नहीं है। यह किताब गांधी को लेकर बीजेपी की सोच को उजागर करती है। यह किताब उस पाखंड का पर्दाफाश करती है, जो गांधी को लेकर आज सत्ता पक्ष की तरफ से रचा जा रहा है। यह किताब आपको गांधी के विषय में और साथ ही बीजेपी के विषय में भी समाज के सोचने के लिए एक नई खिड़की खोलती है। गांधी को लेकर आज बोले जा रहे झूठों को भी ऐतिहासिक तथ्यों के साथ उजागर करती है यह किताब। वर्तमान समय, गांधी और उनके कथित अनुयायियों के रिश्तों की पड़ताल करती है यह किताब, इसलिए यह एक जरूरी किताब है।

महाबली

सत्ता और बुद्धिजीवियों के बीच संघर्ष भी इस साल अपने चरम पर पहुंचा। प्रतिरोध को रचनात्मक बनाने की वकालत करने वाले वरिष्ठ लेखक असगर वजाहत ने मौजूदा दौर की इस समस्या को दो ऐतिहासिक किरदारों के माध्यम से एक नाटक लिखा ‘महाबली’। 16वीं शताब्दी के तुलसीदास और सम्राट अकबर समकाल थे। असगर वजाहत ने इन दोनों किरदारों को अपनी कल्पनाशीलता से जीवित किया और दोनों की एक मुलाकात कराई। यह पूरा नाटक दरअसल आज राजसत्ता और बुद्धिजीवियों के बीच जो संघर्ष हो रहा है, उसे दिखाने का ही प्रयास है। इसमें असगर वजाहत ने अंत में तुलसीदास को महाबली सिद्ध किया है। वर्तमान दौर को समझने में यह नाटक महत्वपूर्ण हो सकता है।

Published: undefined

वादा-फरामोशी

इस साल एक और महत्वपूर्ण किताब आई वादा फरामोशी। संजॉय बासु, नीरज कुमार और शशिशेखर द्वारा लिखित इस किताब में आरटीआई द्वारा हासिल तथ्यों के आधार पर वर्तमान सरकार द्वारा किए गए कामों की पोल खोली गई है। इसमें नमामि गंगे योजना, निर्भया फंड से कितनी निर्भय हुईं बेटियां, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, एयरपोर्टों की सच्चाई और बेरोजगारी पर तथ्यों के साथ सरकार के कामकाज की पोल खोली गई है। यह किताब इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कल्पनाओं पर नहीं, तथ्यों पर खड़ी है।

कोशिशों की डायरी

बदलाव धमाके की तरह नहीं होता कि एक दिन अचानक बदल जाती हो दुनिया। वह धीरे-धीरे, असफल होने से दीखते प्रयासों से, आकार लेता है। दुनिया बदलने के इन्हीं प्रयासों की डायरी है-कोशिशों की डायरी। सोनल ने एक गैर सरकारी संगठन के साथ मिलकर उन गांवों में काम शुरू किया जो पानी के संकट से जूझ रहे हैं। अपनी इस यात्रा को सोनल ने बखूबी डायरी की शक्ल दी। लोगों से मुलाकात, उनका व्यवहार और गांवों की पूरी दुनिया इस डायरी में दर्ज दिखाई पड़ती है। सोनल की भाषा बेहद प्रवाहमय, साहित्यिक (लेकिन जमीन से जुड़ी है)। इस डायरी को पढ़ना वास्तव में बदलाव की दिशा में आगे बढ़ना है।

Published: undefined

अमेरिकी नीग्रो, साहित्य और संस्कृति

अमेरिकी नीग्रो लोगों ने अपार दुख झेले हैं। चार सौ सालों से अधिक समय तक ये गुलामी में रहे, इनके मानवीय अधिकारों का हनन होता रहा। इस तरह के शोषण का संभवतः दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलता। अमेरिकन नीग्रोः साहित्य और संस्कृति को मराठी का पहला ग्रंथ माना जाता है, जो अमेरिकी नीग्रो समुदाय पर आधारित है। पहली बार हिंदी पाठकों के लिए यह उपलब्ध हो रहा है। लिहाजा यह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है।

प्रेमकथा रति-जिन्ना

ऐतिहासिकऔर राजनीतिक किरदारों पर लिखे गए उपन्यासों को पढ़ना पाठकों के लिए हमेशा ही दिलचस्प होता है। एक मजहबी दकियानूसी मुसलमान और भारत विरोधी माने जाने वाले राजनीतिज्ञ जिन्ना के रति से प्रेम संबंधों पर आधारित यह उपन्यास जिन्ना के बहुत से मानवीय पहलुओं को उजागर करता है। प्रेमकथा होने के बावजूद इस उपन्यास में अपने समय को गंभीरता से पकड़ा गया है।

Published: undefined

रविशंकर राग माला

आत्मकथाओं में पाठकों की हमेशा से ही रुचि रही है। इस साल अनेक महत्वपूर्ण लोगों की आत्मकथाएं पढ़ने को मिली। ज्योतिष जोशी द्वारा जैनेंद्र कुमार की आत्मकथा ‘अनासक्त आस्तिक’ और विष्णु नागर द्वारा कवि रघुवीर सहाय की आत्मकथा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। लेकिन साहित्य से इतर विश्वप्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर की आत्मकथा राग माला एक बेहतरीन किताब है। यह पुस्तकअंग्रेजी में ‘द गॉड फादर ऑफ वर्ल्ड म्यूजिक’ शीर्षक से लिखी गई थी। इस किताब का संपादनऔर परिचय जॉर्ज हैरिसन ने और हिंदी अनुवाद हरिकिशोर पाण्डेय ने किया है। संगीत को कैसे पढ़ा जा सकता है, यह इस पुस्तक से सीखा जा सकता है।

अपार खुशी का घराना

अरुंधती रॉय हिंदी पाठकों के लिए बेहद जाना-पहचाना नाम हैं। ‘मामूली चीजों का देवता’ के लिए अरुंधती को बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। ‘दि मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ का हिंदी अनुवाद ‘अपार खुशी का घराना’ हिंदी में आया है। इसका अनुवाद किया है वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल ने। यह कहानी पुरानी दिल्ली की तंग बस्तियों से खुलती हुई फलते-फूलते नए महानगर और उससे दूर कश्मीर की वादियों और मध्य भारत के जंगलों तक जा पहुंचती है, जहां युद्ध ही शांति है और शांति ही युद्ध है। यहां बीच-बीच में हालात सामान्य होने का भी ऐलान होता रहता है। वास्तव में यह पुस्तक एक साथ प्रेम कथा और असंदिग्ध प्रतिरोध की अभिव्यक्ति है।

Published: undefined

गाफिल

सुनील चतुर्वेदी का लिखा यह उपन्यास कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। यह पूरा उपन्यास दिखाता है कि विकास का वित्तीय मॉडल किस तरह पूरे समाज को गाफिल बना रहा है। उपन्यास का शिल्प, भाषा, प्रवाह शानदार है। इसे पढ़ना विकास के नए मॉडल्स की ओर जाने का रास्ता दिखाता है।

अग्निलीक

हृषीकेश सुलभ की रचना यात्रा नाट्य लेखन और कहानी लेखन के ईर्दगिर्द घूमती है। उन्होंने अनेक प्रसिद्ध कृतियों का नाट्य रूपांतरण भी किया है। लेकिन सुलभ का पहला उपन्यास अग्निलीक हाल ही प्रकाशित हुआ है। चार पीढ़ियों की कहानी को समेटे यह उपन्यास दरअसल आजादी के पहले और बाद में घाघरा और गंडक नदी के आसपास के क्षेत्रों में आए बदलाव की कहानी है। लेकिन यह कहानी इकहरी नहीं है। लोगों के जीवन में आ रहे बदलावों के साथ-साथ ऋषिकेश सुलभ ने सामंती सामाजिक संरचना में हो रहे बदलावों को भी इस उपन्यास में चित्रित किया है।

इनके अलावा और भी बहुत सी किताबें इस साल प्रकाशित हुई हैं। वे आपको पसंद भी आ सकती हैं, आएंगी ही, लेकिन यहां उन किताबों का जिक्र किया गया है जो आपके भीतर किसी भी तरह के बदलाव की प्रक्रिया शुरू कर सकती हैं। अगर आप बदलाव के पक्षधर हैं तो निश्चित रूप से ये किताबें आपके लिए हो सकती हैं। ये किताबें बताती हैं कि वे सिर्फ अल्मारियों से झांकती ही नहीं बोलती भी हैं, बशर्ते आप सुन सकें।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined