अर्थतंत्र

चीनी मीडिया का दावा- मोदी राज में चीन से कई मामलों  में काफी पीछे हो गया भारत

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में एक रिपोर्ट छपी है, जिसमें कहा गया है, ‘पश्चिमी मीडिया का कहना है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चीन और भारत के बीच खाई पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ गई है।

फोटो: सोेशल मीडिया
फोटो: सोेशल मीडिया 

मोदी सरकार में भारत की अर्थव्यवस्था का हाल बुरा है। वित्त मंत्रालय के आर्थिक कामकाज विभाग की ताजा मासिक रिपोर्ट ने मोदी के मजबूत अर्थव्यवस्था के दावों पर पानी फेर दिया है। इस रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि कमजोर निजी निवेश, निजी खपत में उम्मीद से कम बढ़ोतरी और निर्यातों में ठहराव की वजह से वित्त वर्ष 2018-19 में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार कमजोर हुई है। वहीं बेरोजगारी भी 45 सालों के चरम पर है। वहीं वैश्विक स्तर पर भी भारत का साख गिरी है।

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पड़ोसी और सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी देश चीन पीएम मोदी के कार्यकाल में कई मामलों में भारत से बहुत आगे हो गया है। चीनी मीडिया का दावा है कि भारत मोदी के कार्यकाल में कई मामलों में चीन से पीछे हो गया है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में एक रिपोर्ट छपी है, जिसमें कहा गया है, ‘पश्चिमी मीडिया का कहना है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चीन और भारत के बीच खाई पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ गई है। यह सच भी है। साल 2018 में चीनी अर्थव्यवस्था का आकार 13.6 लाख करोड़ डॉलर का था, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 2.8 लाख करोड़ डॉलर का था।'

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ग्लोबलट टाइम्स के मुताबिक, ‘अगर भारत इस अंतर को कम करना चाहता है तो उसे सलाना आर्थिक वृद्धि दर चीन से कई गुना तक बढ़ाना होगा। हालांकि यह संभव नहीं लगता है, क्योंकि चीन की आर्थिक वृद्धि दर बहुत तेज है।’

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गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों में चीनी अर्थव्यवस्था का आकार काफी बढ़ा है। 2014 में दोनों देशों की अर्थव्यवस्था के आकार में करीब 8.34 लाख करोड़ का अंतर था। लेकिन 2018 आते आते यह बढ़कर 10.8 लाख करोड़ डॉलर हो गया।

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चीन के सरकारी अखबार ने भारत के जीडीपी पर भी संदेह व्यक्त किया है। अखबार का कहना है कि, मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में 2014 से 2018 के बीच भारत की औसत जीडीपी 6.7 फीसदी से ज्यादा हो गई है, लेकिन इन आंकड़ों पर कई सांख्यिकी वजहों से संदेह किया जा रहा है। मोदी सरकार ने जीडीपी की गणना के तरीके और बेस ईयर को ही बदल दिया है। इसलिए नए आंकड़ों को हमेशा ही संदेह की नजरों से देखा जाता है।

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