केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के कंधे से कंधा मिलकार चल रही एलजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले मैदान में उतरकर ऐसा सियासी दांव चला है, जिसने बीजेपी की सहयोगी जेडीयू का खेल बिगाड़ कर रख दिया है। कल तक बिहार में ''बडे भाई'' की भूमिका में दंभ भरने वाली जेडीयू की हालत ऐसी हो गई है कि बीजेपी ने भी समाचार पत्रों में दिए गए विज्ञापनों में नीतीश कुमार की तस्वीर नहीं लगाई है, जिससे कई तरह की संभावनाओं को बल मिल रहा है।
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दरअसल हाल में बिहार चुनाव के लिए बीजेपी द्वारा राज्य के समाचार पत्रों में दिए गए विज्ञापनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर तो है, लेकिन नीतीश कुमार की तस्वीर को स्थान नहीं दिया गया है। हाल ही में विभिन्न एजेंसियों द्वारा जारी किए गए सर्वे में भी नीतीश की लोकप्रियता में कमी को दशार्या गया है।
हालांकि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल कहते हैं कि बीजेपी चुनावी मैदान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में उतरी है, इसमें किसी को असमंजस में नहीं रहना चाहिए। इधर, जेडीयू के अजय आलोक कहते हैं कि कई 'युवराज' चुनावी मैदान में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हैं, लेकिन 10 नवंबर को सबकुछ स्पष्ट हो जाएगा।
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गौरतलब है कि बिहार एनडीए ने जैसे ही नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला लिया, एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान ने पार्टी की कमान संभालते ही अलग स्टैंड ले लिया, जिससे पार्टी को मजबूती से स्थापित किया जा सके। अब वे खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद में हैं। यही वजह है कि कई मौकों पर उन्होंने अपना स्टैंड जेडीयू से अलग दिखाया।
चुनाव के पहले से ही चिराग पासवान नीतीश सरकार की कई योजनाओं के क्रियान्वयन और अफसरशाही पर सवाल उठाने से पीछे नहीं रहे। जब जेडीयू ने समय पर चुनाव कराने की बात की तो चिराग ने चुनाव आयोग को पत्र के जरिये कोरोना संक्रमण के चलते अभी चुनाव नहीं कराने की मांग कर दी। उस समय ही यह आशंका को बल मिल गया कि चिराग कोई बड़ा निर्णय लेंगे।
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जब चुनाव की घोषणा हो गई तो चिराग ने इस चुनाव में कुल 136 प्रत्याशी मैदान में उतार दिए, जिनमें से दो का मखदुमपुर और फुलवारी में नामांकन रद्द हो गया। इस तरह अब एलजेपी के 134 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें से अधिकांश प्रत्याशी जेडीयू के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे हैं। हालांकि गोविदंगज, लालगंज, भागलपुर, राघोपुर, रोसड़ा और नरकटियागंज में भी एलजेपी का प्रत्याशी है, जहां से बीजेपी चुनावी मैदान में है।
एलजेपी के प्रवक्ता और अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख अशरफ अंसारी कहते हैं कि गोविंदगंज और लालगंज उनकी सीटिंग सीट थी, शेष चार पर बीजेपी के साथ उनका दोस्ताना संघर्ष है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि इस चुनाव के बाद एलजेपी, बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाने वाली है। चिराग ने भी उन सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी को जीताने की अपील की है, जहां से एलजेपी के प्रत्याशी नहीं हैं।
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हालांकि बीजेपी और जेडीयू लगातार एलजेपी के अलग होने की बात करते हुए बयान दे रही है।कहा जा रहा है कि एलजेपी इस चुनाव में नरेंद्र मोदी की छवि का प्रचार करके कम से कम 10-15 सीटें जीतना चाहती है, ऐसे में अगर बीजेपी और जेडीयू मिलकर 122 के सरल बहुमत आंकड़े को हासिल करने में पीछे रह जाते हैं तो एलजेपी की बीजेपी के सहयोगी के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
इस चुनाव में एनडीए की ओर से जेडीयू जहां 115 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, वहीं बीजेपी 110 सीटों पर चुनाव मैदान में है। बीजेपी ने अपने हिस्से की 11 सीटें एनडीए में शामिल विकासशील इंसान पार्टी को दी है, जबकि जेडीयू अपने हिस्से की सात सीटें हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को दी है।
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