विधानसभा चुनाव 2023

चुनाव तो जीत गई बीजेपी, लेकिन बेड़े में हुआ छेद, पश्चिम यूपी के कई जिलों में गठबंधन ने पछाड़ा, काट तक नहीं ढूंढ पाई

खास बात ये कि ये सभी इलाके मुस्लिम बहुल हैं और मुस्लिम वोटों में किसी प्रकार का कोई बंटवारा नहीं हुआ। इन सीटों पर जाटों और मुस्लिमों की एकजुटता का भी असर रहा। मगर ध्रुवीकरण के कारण सरकार की नीतियों से नाराज होने के बावजूद कई लोग उधर ही चल दिए।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
फोटोः आस मोहम्मद कैफ 

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी जीत तो गई है, मगर भविष्य की चिंता में उनके माथे पर शिकन भी दिखाई देती है। ऐसा लगता है कि उनके बेड़े में छेद हो चुका है। जिसका नुकसान अगले कुछ सालों में दिखाई देगा। उत्तर प्रदेश चुनाव के परिणाम में बीजेपी सरकार के 11 मंत्री चुनाव हार चुके हैं। यहां तक कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी चुनाव हार गए हैं।

सबसे खास बात यह है कि बीजेपी के सबसे प्रभावी इलाके मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर मंडल में इसे जबरदस्त नुकसान हुआ है। इन मंडलों के जनपद सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, मेरठ, मुरादाबाद, बिजनौर, संभल, रामपुर की 47 विधानसभा सीटों में से बीजेपी सिर्फ 18 सीट जीत पाई है। वहीं सपा-आरएलडी गठबंधन को इन इलाकों में 29 सीट मिली है।

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बीजेपी के फायरब्रांड नेता संगीत सोम और मंत्री सुरेश राणा यहां चुनाव हार गए हैं। मुरादाबाद जनपद में सपा गठबंधन को 6 में से 5, संभल में 4 में से 3, रामपुर की सभी 3, बिजनौर में आठ में 4 और सहारनपुर में 2, मुजफ्फरनगर में 4, शामली में सभी 3, बागपत में 1 और मेरठ में 4 सीटें मिली हैं। इसमें सबसे खास बात यह है कि जिन सीटों पर गठबंधन के प्रत्यशियों की हार हुई है, उनमें अधिकतर में हार का अंतर 5 हजार से कम है।

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सहारनपुर की नकुड़ विधानसभा सीट पर तो सपा प्रत्याशी धर्म सिंह सैनी 155 वोट से चुनाव हार गए हैं। नहटौर में गठबंधन प्रत्याशी लगभग 300 वोट से चुनाव हारे हैं तो मुरादाबाद शहर से यूसुफ अंसारी भी मामूली अंतर से चुनाव हार गए हैं। कांटे की टक्कर के बीच इन इलाकों में जातियों का गणित प्रभावी रहा है। खास बात ये कि यह सभी इलाके मुस्लिम बहुल हैं और मुस्लिम वोटों में किसी प्रकार का कोई बंटवारा देखने में नहीं आया। थानाभवन से योगी आदित्यनाथ के प्रिय सुरेश राणा और सरधना से संगीत सोम की हार भी ऐसे ही कारणों में से एक है।

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इन सीटों पर जाटों और मुस्लिमों की एकजुटता का भी असर रहा है। किसानों में भी जाति के नाम पर बंटवारा हुआ है। बिजनौर के नगीना के अफसर रहमान के मुताबिक मुसलमानों ने इतनी एकजुटता से इससे पहले कभी वोट नहीं डाला है, मगर सरकार से मुद्दों पर आधारित चुनाव नहीं हुआ है। जिन सीटों पर यह नतीजे आए हैं उनमें मुसलमानों की आबादी 35 फीसद से 52 फीसद तक है।

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कल आए नतीजों के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में वोटों का भारी ध्रुवीकरण देखने मे आया है। मुजफ्फरनगर के अभिषेक चौधरी के मुताबिक यह अत्यंत चिंताजनक है। चुनाव से विकास के मुद्दों का गौण हो जाना अत्यंत तकलीफदेह है। सहारनपुर के हाजी तौसीफ के मुताबिक गठबंधन को मुसलमानों ने पूरी तन्मयता से एकतरफा मत दिया मगर सरकार के नीतियों से नाराज लोग उधर ही चल दिए। इन सीटों पर जीत की वजह भी मुसलमानों के वोटों में बंटवारा न होना और अधिकतर जाटों का उनके साथ खड़ा रहना है। यह स्थिति चिंताजनक है। वोटों का ध्रुवीकरण विकास की गति को प्रभावित करता है और जरूरी मुद्दों से ध्यान हटा देता है।

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