विधानसभा चुनाव 2023

उत्तर प्रदेश चुनाव: राजधानी लखनऊ में बीजेपी की राह मुश्किल, मंत्री का टिकट काटने से भी नहीं बन पा रही बात

बीजेपी को प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक में परेशानी हो रही है। इस इलाके को बीजेपी अपना दुर्ग मानती रही है। लोकसभा की 2 और विधानसभा की 9 में से आठ सीटों पर उसका कब्जा है। लेकिन मुश्किलों को भांपकर ही उसने एक मंत्री की सीट बदली और दूसरे मंत्री का टिकट काटा।

Getty Images
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बीजेपी शहरी और मध्यवर्ग की पार्टी ही मानी जाती रही है, हालांकि उसने कथित सोशल इंजीनियरिंग के बूते गांवों में भी जगह बनाने की कोशिश की है। लेकिन सच्चाई यही है कि उसका अधिकतर प्रसार जुमलों की वजह से हुआ है। ये जुमले ही अब उसे परेशान कर रहे हैं। सोशल मीडिया की वजह से वे सारे भाषण अधिकांश लोगों के मोबाइल में हर वक्त उपलब्ध हैं और वे कथनी-करनी को जांच-परख रहे हैं।

यह बड़ा कारण है कि उसे प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक में परेशानी हो रही है। इस इलाके को बीजेपी अपना दुर्ग मानती रही है। लोकसभा की दो और विधानसभा की नौ में से आठ सीटों पर फिलहाल उसका कब्जा है। लेकिन यहां उसे अपनी मुश्किलों का अंदाजा पहले से था इसलिए उसने एक मंत्री की सीट बदली और दूसरे मंत्री का टिकट काटा। सरोजनी नगर सीट पर तो उसने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से वीआरएस लेकर राजनीति में आए राज राजेश्वर सिंह को खड़ा किया है। उन्हें सपा के अभिषेक मिश्रा, बसपा के जलीस खान और कांग्रेस के रुद्र दमन सिंह चुनौती दे रहे हैं। अकेले रुद्र दमन ही स्थानीय व्यक्ति हैं जबकि अन्य सभी बाहरी हैं। उनकी पकड़ भी अच्छी मानी जाती है। वैसे, यहां शहरी और ग्रामीण इलाकों की मिली-जुली आबादी है। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शुक्ल कहते हैं कि आम तौर पर इधर के ग्रामीण इलाकों में बीजोपी ऐसे 80 फीसदी लाभार्थी वर्ग के भरोसे अच्छी स्थिति में है जिन्हें फ्री अनाज मिल रहा है।

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लखनऊ कैंट सीट पर कानून मंत्री ब्रजेश पाठक को कांग्रेस से दिलप्रीत सिंह, बसपा से अनिल पांडेय और सपा से सुरेन्द्र सिंह चुनौती दे रहे हैं। यहां सात बार बीजेपी और सात बार कांग्रेस जीती है, पर कांग्रेस यहां कभी नंबर दो से नीचे नहीं रही। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आई रीता बहुगुणा जोशी पिछली बार जीती थीं। ब्राहमण और पहाड़ी मतदाताओं की संख्या इस क्षेत्र में ज्यादा है। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस मानते हैं कि यहां इस बार बीजेपी और सपा में मुकाबला है लेकिन चूंकि सपा और बसपा ने सरदार प्रत्याशियों को मौका दिया है, इस वजह से मंत्री पाठक की राह आसान हो गई लगती है।

मलिहाबाद (सुरक्षित) सीट पर कांग्रेस ने इंदल कुमार रावत को उतारकर बीजेपी की मौजूदा विधायक जया देवी का समीकरण बिगाड़ दिया है। यहां सपा से सुरेंद्र कुमार उम्मीदवार हैं। यहां पासी समाज के मतदाताओं की संख्या करीब डेढ़ लाख है। लोगों से बातचीत से लगता है कि कांग्रेस के पक्ष में पासी वोट ज्यादा हैं, वहीं बीजेपी प्रत्याशी की छवि सवर्ण विरोधी रही है जिसका उन्हें नुकसान होगा।

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित मोहनलाल गंज सीट पर बीजेपी को हमेशा हार का सामना करना पड़ा है जबकि सपा हर बार अपना प्रत्याशी बदल देती है। लगातार दो चुनावों से यह सीट सपा के कब्जे में है। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि स्थानीय ताकतवर नेता और सपा के आर के चौधरी की इस इलाके में पकड़ है। इसका सपा की सुशीला सरोज को फायदा मिलेगा। वैसे भी, सरोज सांसद भी रही हैं और इस इलाके से उनको वोट भी ज्यादा मिलते थे। उनके मुकाबले में बीजेपी के अमरेश कुमार दिख रहे हैं।

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लखनऊ पूर्व सीट वर्ष 1991 से बीजेपी के कब्जे में रही है। यहां से बीजेपी के मौजूदा विधायक आशुतोष टंडन फिर मैदान मे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि पहले लग रहा था कि यह सीट टंडन के लिए केक वाक साबित होगी। पर कांग्रेस ने लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे मनोज तिवारी को उतारकर उनकी राह कठिन कर दी है। वह पूर्वांचल के रहने वाले हैं और इस इलाके में पूर्वांचल के काफी लोग हैं।

लखनऊ पश्चिम सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। राजधानी के कई प्रमुख इलाके इस क्षेत्र में आते हैं। इनमें अधिकतर पुराने लखनऊ के हैं। यहां बीजेपी चुनाव जीतती रही है। इसी कारण अधिकांश सभासद उसके पाले मे हैं। बीजेपी से अंजनी कुमार श्रीवास्तव उम्मीदवार हैं। वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शुक्ला कहते हैं कि शहरी इलाके में जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा है, वहां मध्यवर्गीय वोटर पर बीजेपी ज्यादा भरोसा नहीं कर सकती है क्योंकि ये लोग मौजूदा हालात की वजह से अपने दैनिक जीवन में सबसे ज्यादा परेशान हैं। बीजेपी नेताओं का मानना है कि सपा के अरमान खान, बसपा के कायम रजा खान और कांग्रेस की शहाना सिद्दीकी के बीच वोटों के बंटवारे का फायदा उसे मिलेगा। लेकिन पहले और दूसरे फेज में बीजेपी के खिलाफ जिस तरह किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में इस वर्ग के लोगों का ध्रुवीकरण हुआ, वैसा यहां भी हो, तो आश्चर्य नही। वैसे, यहां कायस्थ वोटरों की भी अच्छी-खासी संख्या है।

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लखनऊ मध्य सीट आम तौर पर शहरी है और इस कारण यहां बीजेपी की पकड़ रही है। बीजेपी ने जिस सभासद रजनीश कुमार गुप्ता को टिकट दिया है, उनका अपने वार्ड को छोड़कर अन्य जगहों पर ज्यादा प्रभाव नहीं है। कांग्रेस से सदफ जाफर यहां से प्रत्याशी हैं जो सीएए आंदोलन की चेहरा रही हैं। इस कारण शिया और सुन्नी- दोनों का उन्हें समर्थन मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। वैसे, सपा के रविदास मेहरोत्रा मुकाबले को तिकोना बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

लखनऊ उत्तर सीट पर मौजूदा विधायक नीरज बोरा को टिकट देना पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस बीजेपी की भूल बताते हैं। वह कहते हैं कि पिछली बार वह लहर में जीते थे जबकि उनके खिलाफ लोगों में नाराजगी है। वैसे, लोगों का यह भी मानना है कि सपा ने भी पूजा शुक्ला को टिकट देकर गलती ही की है क्योंकि राजनीति में उनकी आमद ही दो-तीन साल पुरानी है। कांग्रेस ने अजय कुमार श्रीवास्तव पर भरोसा जताया है। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि बीजेपी को कितनी कड़ी चुनौती मिल पाएगी।

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बख्शी का तालाब सीटपर त्रिकोणीय लड़ाई है। बीजेपी ने मौजूदा विधायक अविनाश त्रिवेदी की जगह योगेश शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है। सपा ने 2012 में यहीं से जीते गोमती यादव पर विश्वास जताया है। यह लखनऊ की सबसे कठिन सीट मानी जाती है। पिछले चुनावों के अनुभव बताते हैं कि इस सीट के वोटिंग पैटर्नमें जातीय फैक्टर साफ दिखता है। एक विशेष जाति जिसका रुख करती है, जीत उसी की होती है। कांग्रेस प्रत्याशी ललन कुमार ने अपने संसाधनों से क्षेत्र में काफी काम किया है जबकि सपा प्रत्याशी यहीं के मूल निवासी हैं। इलाके में यादवों की तादाद ज्यादा है। स्थानीय लोग यहां बीजेपी, कांगेस और सपा के बीच त्रिकोणीय संघर्ष मानते हैं।

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