
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीति अपने उफान पर है। एनडीए जहां अपने पुराने हथियार कथित ‘जंगल राज’ की राग अलापने में लगी है, वहीं महागठबंधन के नेता नीतीश सरकार से 20 साल का हिसाब मांग रहे हैं।
कांग्रेस ने बिहार की एनडीए सरकार पर 20 साल के शासन में राज्य से उद्योग को मिटाने और पलायन को बढ़ाने के आरोप लगाए हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम ने सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के जरिए नीतीश सरकार पर जोरदार हमला बोला।
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जयराम रमेश ने सोमवार को आरोप लगाया कि बिहार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने असीम औद्योगिक संभावनाओं वाले इस प्रदेश में सिर्फ और सिर्फ ‘‘पलायन उद्योग’’ स्थापित किया है तथा राज्य को विकास एवं उद्योग के राष्ट्रीय नक्शे से लगभग मिटा दिया है।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि जब कांग्रेस ने बिना समुद्र के बिहार में बरौनी, सिंदरी, हटिया और बोकारो जैसे भारी उद्योग स्थापित कर दिए थे तो आज उद्योग लगाना असंभव क्यों बताया जा रहा है।
बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए दो चरणों में छह और 11 नवंबर को मतदान होना है। मतगणना 14 नवंबर को होगी।
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उन्होंने कहा कि आजादी के बाद अविभाजित बिहार में कांग्रेस की सरकारों ने अनेक औद्योगिक इकाइयां स्थापित की थीं, जिन्होंने बिहार को देश के औद्योगिक मानचित्र पर मजबूती से स्थापित किया। उन्होंने कहा ‘‘उस दौर में भारी उद्योग, ऊर्जा, डेयरी और रेल उत्पादन के इर्द-गिर्द बिहार में विकास का पहिया तेजी से घूम रहा था।’’
रमेश ने इस बात का उल्लेख किया कि कांग्रेस शासन में प्रमुख औद्योगिक इकाइयां स्थापित की गईं जिनमें बरौनी तेल शोधन कारखाना, सिंदरी और बरौनी खाद कारखाना, बरौनी डेयरी, रेल पहिया कारखाना (बेला), डीज़ल लोकोमोटिव कारखाना (मढ़ौरा), नवीनगर थर्मल परियोजना और सुधा कोऑपरेटिव डेयरी नेटवर्क प्रमुख हैं।
उन्होंने दावा किया कि एक तरफ कांग्रेस सरकारों ने दूरदर्शिता के साथ बिहार में औद्योगिक बुनियाद खड़ी की -वहीं बीजेपी-जेडीयू की सरकार ने एक भी महत्वपूर्ण उद्योग स्थापित नहीं किया। उल्टे अपनी भ्रष्ट और अव्यवस्थित नीतियों से मौजूद उद्योगों को भी चौपट कर दिया।
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रमेश ने कहा, ‘‘अशोक पेपर मिल अब खंडहर बन चुकी है। मशीनें सड़ गईं, मजदूर उजड़ गए। कभी बिहार में 33 से अधिक चीनी मिलें थीं, जिनकी देश के कुल चीनी उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। आज उनमें से अधिकांश बंद पड़ी हैं: सकरी, रैयम, लोहट, मोतीपुर, बनमनखी, मोतिहारी… इन चीनी मिलों की मशीनें ट्रकों में भरकर कबाड़ में बेच दी गईं।’’
उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री हर चुनाव में इन्हें पुनः चालू कराने का वादा करते हैं, लेकिन उनके हर वादे के बाद एक के बाद एक चीनी मिल बंद होती गई।
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रमेश के अनुसार, ‘‘मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि बड़ा उद्योग तो समुद्र किनारे लगता है। केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि बिहार में उद्योग के लिए ज़मीन नहीं। लेकिन प्रधानमंत्री के चहेते उद्योगपतियों को एक रुपये प्रति एकड़ की दर से ज़मीन दी जाती है।’’
कांग्रेस महासचिव ने दावा किया कि आज तीन करोड़ से अधिक लोग रोज़गार के लिए बिहार छोड़ चुके हैं तथा कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, अररिया जैसे बिहार के सीमावर्ती इलाकों से मजदूर बंगाल और असम तक में दिहाड़ी कर रहे हैं।
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उन्होंने बीजेपी- जेडीयू सरकार से सवाल किया, ‘‘जब कांग्रेस ने बिना समुद्र के बिहार में बरौनी, सिंदरी, हटिया और बोकारो जैसे भारी उद्योग स्थापित कर दिए - तो आज उद्योग लगाना असंभव क्यों बताया जा रहा है? क्या यह सच नहीं कि पिछले 20 वर्षों में बिहार को उद्योगहीन कर दिया गया और केवल पलायन-आधारित अर्थव्यवस्था बची है?’’
रमेश ने यह भी प्रश्न किया, ‘‘ क्या यह भी सही नहीं कि जिन मिलों ने किसानों, मजदूरों और युवाओं को रोजगार दिया वे मिलें बीजेपी-जडीयू की गलत नीतियों और लापरवाही की बलि चढ़ गईं?’’
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उन्होंने इस बात पर जोर दिया, ‘‘कांग्रेस का संकल्प है कि बिहार में उद्योग, रोज़गार और आत्मनिर्भरता की वह परंपरा फिर से मजबूत की जाए, जिसे बीजेपी-जडीयू सरकार ने पिछले दो दशकों में व्यवस्थित तरीके से जानबूझकर कमजोर किया है। बिहार को पलायन नहीं, पुनर्निर्माण चाहिए।’’
पीटीआई के इनपुट के साथ
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