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काशी में धर्म संसद का ऐलान, 221 मीटर ऊंची मूर्ती बनाना श्रीराम का अपमान

अयोध्या में विहिप की धर्मसभा से अलग हजारों साधु-संतो ने वाराणसी में धर्म संसद का आयोजन किया है। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की अध्यक्षता में आयोजित इस संसद में अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर ऊंची मूर्ती निर्माण के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

उतर प्रदेश के वाराणसी में 25 नवंबर से शुरू हुआ सैंकड़ों साधू-संतों का तीन दिवसीय धर्म संसद जारी है। धर्म संसद के दूसरे दिन सैकड़ों साधु-संतों ने अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर ऊंची प्रतीमा बनाने के योगी सरकार के फैसले को गलत बताते हुए इसे राम का अपमान करने वाला कदम बताया। योगी सरकार के इस कदम के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करते हुए साधू-संतों ने कहा कि योगी और मोदी सरकार हिंदू धर्म को सांप्रदायिक बनाना चाहती है।

अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक धर्म संसद में 25 नवंबर को अयोध्या में वीएचपी के नेतृत्व में आयोजित धर्मसभा की भी कड़े शब्दों में निंदा की गई। धर्म संसद में एक साधू तो इस आयोजन पर इस कदर नाराज थे कि उन्होंने इस धर्मसभा को अधर्म सभा का नाम दे दिया। बता दें कि अयोध्या में आयोजित धर्मसभा में वक्ताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या विवाद की सुनवाई टालने को लेकर कोर्ट पर तीखा प्रहार करते कई आपत्तिजनक बयान दिए गए थे।

वाराणसी में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की ओर से आयोजित धर्म संसद में जमा साधुओं ने राम की विशालकाय मूर्ती बनाने के बीजेपी सरकार के फैसले को सरदार पटेल और भगवान राम के बीच प्रतिस्पर्धा की जंग पैदा करने वाला फैसला करार दिया। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने इस संबंध में कहा कि राम की 221 मीटर ऊंची मूर्ती भगवान का अपमान है। उन्होंने कहा, “पक्षी और जानवर खुले में लगी मूर्ती के आस-पास रहेंगे जो ठीक नहीं। भगवान की मूर्ती सिर्फ मंदिर में रखी जा सकती है जो चारों तरफ़ से सुरक्षित हो।”

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शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भी भगवान राम की विशालकाय मूर्ती लगाए जाने को गलत बताया और कहा कि बीजेपी सरकार भगवान राम को सरदार वल्लभ भाई पटेल के मुकाबले में उतारना चाहती है। उन्होंने कहा, “पटेल ने कुछ राज्यों का गठन किया था, जबकि भगवान राम पूरी कायनात के मालिक हैं, जिसे समझने की जरूरत है।” उन्होंने आगे कहा, “हिंदूओं को भगवान राम की इतनी बड़ी मूर्ती की जरूरत नहीं है। मुझे नहीं पता कि योगी आदित्यनाथ को हिंदू धर्म की समझ है कि नहीं। हमें ये जानने की आवश्यकता है कि आखिर क्यों अयोध्या में राम की मूर्ती लगाने का फैसला हिंदू विरोधी है।” शंकराचार्य स्वरूपानंद ने ये भी कहा कि मोदी और योगी सरकार हिंदू धर्म को सांप्रदायिक ताकत में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।

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गौरतलब है कि बीजेपी सरकार ने हाल ही में गुजरात में देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर ऊंची विशाल मूर्ती बनवाई है और इसका उद्घाटन भी पीएम नरेंद्र मोदी के हाथों हो चुका है। ये मूर्ती दुनिया में सबसे ऊंची मूर्ती बताई जा रही है। इसके बाद ही उतर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर ऊंची मूर्ती बनवाने का ऐलान किया था। इस ऐलान को लेकर राज्य के कई लोगों ने योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि राज्य में विकास का कोई भी काम नहीं हो रहा और सिर्फ ऐसी बातें की जा रही हैं, जिससे वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके।

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