भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत 1 जुलाई 2017 को हुई थी। सरकार ने जीएसटी को लागू करने के साथ-साथ उपभोक्ताओं को कर कटौती और इनपुट टैक्स क्रेडिट यानि कि वस्तु के निर्माण में लगने वाला खर्च का लाभ सुनिश्चित करने के लिए मुनाफाखोरी रोधी प्रावधानों को शामिल किया था। हालांकि, 1 अप्रैल 2025 को इन प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया। अब जब जीएसटी में बड़ा बदला किया गया है, कांग्रेस ने इससे जुड़े सुधारों के मद्देनजर शनिवार को सवाल उठाया कि सरकार यह कैसे सुनिश्चित करेगी कि जीएसटी दरों में कमी का फायदा सिर्फ कुछ लोगों को न हो।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी पूछा कि क्या राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण (एनएए) को फिर से नया जीवन मिलेगा, जिसे पहले खत्म किया जा चुका है?
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जयराम रमेश ने यह सवाल उस वक्त उठाया जब कुछ खबरों में कहा गया है कि सरकार जीएसटी व्यवस्था में प्रस्तावित सुधार के बाद मुनाफाखोरी-रोधी प्रावधानों को कुछ समय के लिए फिर से लागू करने पर विचार कर रही है। हालांकि, सरकार की तरफ से इस बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है।
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रमेश ने 'एक्स' पर पोस्ट किया, "राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण की स्थापना केंद्रीय माल एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 171 के तहत की गई थी, ताकि यह निगरानी की जा सके कि जीएसटी दर में कटौती के परिणामस्वरूप उपभोक्ता कीमतों में कमी आई है या नहीं। 30 सितंबर, 2024 को, मोदी सरकार ने 1 अप्रैल, 2025 से एनएए को वस्तुतः समाप्त करने की अधिसूचना जारी की थी।"
उन्होंने सवाल किया कि क्या एनएए को अब नया जीवन मिलेगा?
उन्होंने यह भी पूछा कि यह कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि दरों में कटौती से केवल कुछ चुनिंदा लोगों को ही फायदा न हो?
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बता दें कि एनएए की स्थापना जीएसटी अधिनियम की धारा 171 के तहत की गई थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जीएसटी दरों में कमी का लाभ उपभोक्ताओं को मिले। अब यह अस्तित्व में नहीं है।
रोजमर्रा के जीवन में उपभोक्ता अक्सर देखते हैं कि कॉरपोरेट्स इन छूटों का लाभ उठाकर कीमतें कम करने के बजाय अपने मुनाफे को बढ़ाते हैं। जिसके चलते सरकार के जीएसटी कम करने के फैसले का असली लाभ कंपनियां ही उठाती हैं। आम लोगों तक सरकार के फैसले का कोई लाभ नहीं पहुंचता।
पीटीआई के इनपुट के साथ
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