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जम्मू: प्रोफेसर की ‘लिंचिंग’ कराने की मीडिया की कोशिशें नाकाम, भगत सिंह पर लेक्चर के बाद शुरु हुआ था बवाल

जम्मू विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर के कमरे का दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश की गई। उन्होंनें भगत सिंह पर एक लेक्चर दिया था, जिसकी एडिटेड वीडियो वायरल की गईं। आरोप है कि इसके बाद मीडिया ने बिना तथ्यों की जांच किए छात्रों को भड़काने की कोशिश की।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया मीडिया से बात करते प्रोफेसर ताजुद्दीन

आधे अधूरे तथ्यों और सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे भ्रामक संदेशों पर आधारित पत्रकारिता का एक और नमूना जम्मू में सामने आया है जहां जम्मू विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के एक प्रोफेसर के खिलाफ मीडिया के जरिए उत्तेजना फैलाई जा रही है। प्रोफेसर ने अपनी क्लास में एक लेक्चर के दौरान कहा था कि भगत सिंह एक क्रांतिकारी-आतंकी थे।

प्रोफेसर की इस बात को एडिट करके सोशल मीडिया पर तेजी से फैलाया गया, जिसके बाद प्रोफेसर मोहम्मद ताजुद्दीन के पक्ष और विपक्ष में जबरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस मामले में बिना सच्चाई की तह तक पहुंचे और प्रोफेसर को सफाई का मौका दिए बिना ही जम्मू-विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर ताजुद्दीन पर पाबंदी लगा दी। उनके इस आदेश को ध्रुवीकृत हो चुकी मीडिया ने खूब बढ़ा-चढाकर पेश किया। आश्चर्य इस बात पर भी है कि पूरे प्रसंग की खबरों में मीडिया ने उन छात्रों से बात तक करने की जरूरत नहीं समझी, जो प्रोफेसर ताजुद्दीन के लेक्चर के वक्त क्लास में मौजूद थे और पूरे मामले के गवाह थे। प्रोफेसर की क्लास के करीब-करीब सारे छात्र उनके साथ खड़े हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।

इस बीच इस पूरे मामले में केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सासंद जितेंद्र सिंह भी कूद पड़े। उन्होंने बयान जारी कर दिया कि संबंधित एजेंसियां इस मामले का संज्ञान लेंगी। जम्मू में मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि, “देश में देशभक्ति और राष्ट्रवादी सत्यनिष्ठा को बरकरार रखने के लिए कोई लकीर तो खींचनी ही पड़ेगी।”

दरअसल हुआ यह कि प्रोफेसर के लेक्चर के एक हिस्से की वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल होना शुरु हुई। इसके बाद पूरा का पूरा मीडिया प्रोफेसर ताजुद्दीन के पीछे हाथ धोकर पड़ गया। पत्रकारिता की विश्वसनीयता और मर्यादा के आधार पर खबर की सच्चाई सामने लाने के बजाए ज्यादातर पत्रकार विश्वविद्यालय परिसर में छात्रो को उकसाते नजर आए।

स्थिति ऐसी बनी कि एक लोकल टीवी चैनल के लिए काम करने वाला एक पत्रकार कैंपस में कहते सुना गया कि, “जेएनयू हो, एएमयू हो या कश्मीर का कोई और विश्वविद्यालय, इन सभी जगहों पर छात्रों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है। आखिर ये प्रोफेसर ऐसे बयान देते क्यों हैं जिनसे भावनाओं को ठेस पहुंचती है?”

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वहीं प्रोफेसर के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले एक छात्र ने कहा कि, “इस प्रोफेसर की आदत है कि धर्म से लेकर स्वतंत्रता सेनानिओं तक के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणियां करते रहते हैं।” हालात बेकाबू होने की हद तक खराब होने लगे थे, क्योंकि कुछ छात्रों ने राजनीति शास्त्र विभाग में प्रोफेसर के कमरे का दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश की।

लेकिन जब अधिकतर छात्रों ने कैंपस में छात्रों को उकसाने की कोशिश में लगे पत्रकारों से सवाल पूछे तो वे मैदान छोड़ भाग खड़े हुए। हालांकि बाद में कुछ पत्रकारों ने कहा कि वे राजनीति शास्त्र के छात्रों को समझ नहीं पाए। इस दौरान कुछ पत्रकार उन छात्रों से फुसफुसाते नजर आए जो प्रोफेसर की बर्खास्तगी और उनके खिलाफ रासुका का मुकदमा दर्ज करने जैसी मांग उठा रहे थे।

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बहुसंख्य छात्र इस पूरे मामले में प्रोफेसर के साथ हैं। उनका कहना हैकि जिन लोगों को राजनीति का क, ख, ग नहीं मालूम है वे विश्वविद्यालय में अपने कानून लागू करने की कोशिश कर रहे हैं। जम्मू विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहीं छात्रा साक्षी शर्मा का कहना है कि बहुत से छात्र, मीडिया वाले और तमाम लोग पूरी बात समझे बिना ही इस मामले को तूल दे रहे हैं।

रोचक है कि जिन छात्रों ने प्रोफेसर के खिलाफ कुलपति से शिकायत की वे सभी आरएसएस और विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता हैं। शिकायत करने वालों में एक छात्र लॉ डिपार्मटमेंट का है तो दूसरा टूरिज़्म डिपार्टमेंट का। लेकिन इन शिकायतों के बीच एम फिल के छात्र श्रवण सिंह जमवाल का कहना है कि प्रोफेसर ताजुद्दीन की पूरी क्लास उनके साथ है और वे मजबूती से प्रोफेसर के समर्थन में खड़े हैं। सिर्फ एक छात्र प्रोफेसर के खिलाफ है और उसी ने लेक्चर की एडिटेड वीडियो सोशल मीडिया पर डाली थी।

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इस बीच अपने लेक्चर को सही बताते हुए प्रोफेसर ताजुद्दीन ने कहा है कि, “वे लेनिन और जार के समय रूस में राजनीतिक बदलाव की कोशिश करने वाले लोगों के बारे में बात कर रहे थे।” उन्होंने कहा कि, “रूसी क्रांति के दौरान एक संगठन ने अपने राजनीतिक मकसद को हासिल करने के लिए हिंसा का सहारा लिया था। ऐसे लोगों में लेनिन का भाई भी था, जिसे जार की हत्या की साजिश के आरोप में फांसी दे दी गई थी। मैं छात्रों को समझाने की कोशिश कर रहा था कि कोई भी सरकार राजनीतिक हिंसा को अपने खिलाफ मानती है और उसे आतंकवाद समझती है। भारत में भी ऐसी मिसाले हैं, जैसे भगत सिंह ने हिंसा का रास्ता अख्तियार किया था, लेकिन अंग्रेज़ों के लिए वे आंतकी थे। इसी तरह आज के दौर में भी जो लोग सरकार के खिलाफ हिंसा का सहारा ले रहे हैं, वे आतंकवादी हैं।”

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उन्होंने कहा कि, “इस मामले में कई नजरिए हो सकते हैं, निजी नजरिया अलग होगा, देशभक्ति का नजरिया अलग होगा और सरकार का नजरिया अलग होगा। शिक्षक के नाते मेरा काम सरकार का नजरिया समझाना है। मैं स्वतंत्रता संग्राम में भगत सिंह के योगदान का प्रशंसक हूं। लेकिन, निजी तौर पर मैं किसी भी किस्म की हिंसा के खिलाफ हूं।” उन्होंने कहा कि हालांकि मेरा इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो मुझे इसका खेद है। प्रोफेसर का पूरा बयान इस वीडियो में देख सकते हैं।

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लेकिन इस पूरे प्रसंग में बिना तथ्यों को जांचे-परखे जो प्रतिक्रिया हुई, उससे स्पष्ट हो जाता है कि हाल के वर्षों में किस तेज़ी से ध्रुवीकरण हुआ है, जिससे समाज का कोई तबका नहीं बचा है, छात्र और पत्रकार भी नहीं।

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