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कर्नाटक: किसकी बनेगी सरकार, निगाहें राज्यपाल पर

224 में से फिलहाल 222 सदस्यों की विधानसभा में किसी भी दल के पास बहुमत नहीं है। कांग्रेस ने जेडीएस को मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव देकर शह और मात के इस खेल में पहली बड़ी चाल चल दी थी और जेडीएस ने इसे स्वीकार भी कर लिया।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया कर्नाटक में नई सरकार के गठन को लेकर सबकी निगाहें राज्यपाल पर

आज कर्नाटक चुनाव के जैसे-जैसे नतीजे आ रहे थे, वैसे-वैसे प्रदेश में नई सरकार के गठन को लेकर पूरा घटनाक्रम नाटकीय और अनिश्चित होता जा रहा था। और दोनों पक्षों द्वारा सरकार बनाने का दावा पेश करने के बाद अब आखिरकार गेंद राज्यपाल के पाले में है।

नतीजे आने के बाद बनी स्थिति के अनुसार, बीजेपी के पास 104 विधायक हैं, कांग्रेस के पास 78, जेडीएस गठबंधन के पास 38, एक निर्दलीय और एक विधायक कर्नाटक प्रज्ञावंथा जनता पार्टी का है। 224 में से फिलहाल 222 सदस्यों की विधानसभा में किसी भी दल के पास बहुमत नहीं है। सरकार बनाने के लिए किन्हीं दो पार्टियों का साथ आना जरूरी है। इसलिए रूझान आने के थोड़ी देर बाद ही कांग्रेस ने जेडीएस को मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव देकर शह और मात के इस खेल में पहली बड़ी चाल चल दी थी और जेडीएस ने इसे स्वीकार भी कर लिया।

Published: 15 May 2018, 8:05 PM IST

इस तरह से चुनाव उपरांत बने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पास 116 सीटें हो गईं जो बहुमत के आंकड़े से 5 सीटें ज्यादा हैं। इसके अलावा निर्दलीय विधायक एच नागेश ने भी कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। उम्मीद जताई जा रही है कि कर्नाटक प्रज्ञावंथा जनता पार्टी का एक विधायक भी कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन का हिस्सा हो सकता है। इस तरह 118 के मुकाबले 104 सीटों की विधानसभा की तस्वीर बनती है। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्यपाल सरकार बनाने के लिए बहुमत प्राप्त कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को बुलाते हैं या बहुमत से दूर सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को।

इतना तो तय है कि अगर बीजेपी सरकार बना भी लेती है तो उसके लिए बहुमत जुटाना बहुत मुश्किल होगा क्योंकि किसी भी पार्टी को तोड़ने के लिए दो-तिहाई विधायकों का निकलना दल-बदल कानून के हिसाब से जरूरी होता है और ऐसा होने की संभावना बहुत कम है। एक दूसरी संभावना भी है। अगर कांग्रेस या जेडीएस के कम से कम एक दर्जन विधायक विश्वास मत के दौरान अनुपस्थित रहते हैं या अयोग्यता का खतरा उठाते हुए पार्टी के व्हिप के खिलाफ जाकर वोट करते हैं तो ही बीजेपी की सरकार चल सकती है।

Published: 15 May 2018, 8:05 PM IST

क्या बीजेपी आगामी लोकसभा चुनाव के लगभग एक साल पहले खरीद-फरोख्त का आरोप सहने का खतरा उठाने के लिए तैयार है? क्या उसे लोकसभा सीटों की परवाह नहीं? पार्टी की अब तक की भाव-भंगिमा को देखकर ऐसा निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यह बिल्कुल 2014 के दिल्ली विधानसभा चुनाव जैसी स्थिति है जब बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होते हुए बहुमत से दूर थी और कांग्रेस के समर्थन से आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई थी। सरकार गिरने के बाद भी बीजेपी जनता में जाने वाले गलत संदेश की वजह से आम आदमी पार्टी के विधायकों को अपने पाले में करने से हिचकिचाती रही क्योंकि लोकसभा चुनाव आने वाले थे। लेकिन अब तो केंद्र में सरकार भी उनकी है और राज्य में राज्यपाल भी। इसलिए थोड़ा संशय होना लाजिमी है।

यह संशय उस समय भी था जब नतीजे आ रहे थे। थोड़ी ही देर बाद ऐसा लगने लगा कि बीजेपी को बहुमत मिल जाएगा। एक समय तो बीजेपी रुझानों में बहुमत के आंकड़े को पार भी कर गई थी, लेकिन फिर एक-एक कर उसकी संख्या कम होने लगी और वह 104 पर अटक गई। राज्यपाल के पास सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए भी बारी-बारी से बीजेपी के सीएम उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार एचडी कुमारस्वामी पहुंच गए। हर तरफ अनिश्चितता और कोलाहल जैसा माहौल बन गया था। सबकी निगाहें राज्यपाल पर थीं, अभी भी हैं।

Published: 15 May 2018, 8:05 PM IST

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Published: 15 May 2018, 8:05 PM IST

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