भिवानी के तालू गांव के पवन को बेरोजगारी ने मार डाला। जिस ट्रैक पर वह रोजाना सेना में भर्ती के लिए दौड़ लगाता था उसी की रेत पर उसने लिखा कि बापू इस जन्म में तो फौजी नहीं बन पाया अगला जन्म लिया तो फौजी जरूर बनूंगा। यह कहानी किसी एक पवन की नहीं है। हरियाणा के लाखों युवाओं के सपनों की इसी तरह हत्या हो रही है। रोजगार का संकट भयावह है। कोरोना काल में 34 फीसदी (सीएमआईई के मुताबिक) तक के बेरोजगारी के आंकड़े को छूने वाले प्रदेश में मनरेगा के आंकड़े भी इसी सच की तस्दीक कर रहे हैं। 2021-22 में मनरेगा के जरिये औसतन महज 34 दिन का रोजगार ही खट्टर सरकार दे पाई है। यह वह वक्त था जब महामारी ने सब कुछ खत्म कर दिया था और लाखों लोगों के लिए मनरेगा दो वक्त की रोटी मिल पाने की अंतिम आस थी।
भिवानी के पवन की आत्महत्या ने हरियाणा में बेरोजगारी के भयावह सच को एक बार फिर प्रदेश के सामने रख दिया है। तकरीबन पांच लाख युवा प्रदेश में सेना में भर्ती होने की तैयारी करते हैं। तीन साल से भर्ती न हो पाने की वजह से करीब दो लाख युवा ओवरएज हो चुके हैं। पवन भी इन्हीं में से एक था। निराश होकर उसने अपना जीवन ही खत्म कर लिया। लेकिन पेड़ पर फंदा लगाने से पहले उसने ट्रैक की रेत पर एक ऐसी इबारत लिख दी, जिसमें हरियाणा के लाखों युवाओं का दर्द छिपा था। बेरोजगारी में राज्य देश में पहले नंबर पर है। हालात इतने खराब हैं कि सालों से भर्तियां नहीं हुई हैं। सरकार की खामियों के चलते कोर्ट से भर्तियां रद्द हो जाती हैं। हाल ही में तकरीबन 41 हजार पदों की भर्ती रद्द हुई है, जिसके चलते आवेदन करने वाले करीब 12 लाख युवाओं के सपने ध्वस्त हुए हैं। लेकिन सरकार है कि बेरोजगारी को एक समस्या के तौर पर वह मानने के लिए तैयार ही नहीं है। लिहाजा, उसे इस पर चर्चा तक गवारा नहीं है।
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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के आंकड़ों ने भी सरकार की बड़ी निराशाजनक तस्वीर पेश की है। वर्ष में महज औसतन 34 दिन का रोजगार ही एक परिवार को मनरेगा के तहत खट्टर सरकार दे पाई है। जबकि योजना के तहत एक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध करवाने का प्रावधान इसमें हैं। यह आंकड़ा भी 2021-22 का है जब कोविड के चलते हर तरफ तबाही का आलम था। मनरेगा ही देश में एक ऐसी उम्मीद की किरण बन गई थी, जिसके जरिये सब कुछ गंवा चुके लोगों ने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ किया था। लेकिन हरियाणा सरकार के आंकड़े यहां भी उसकी नाकामी की गवाही देते हैं। राज्य के तीन जिले कैथल, कुरुक्षेत्र व जींद तो ऐसे हैं, जहां एक परिवार को वर्ष में औसतन महज 24, 27 व 28 दिन का ही रोजगार मिल पाया है। सिरसा में तो औसतन एक परिवार को सिर्फ 21 दिन का ही रोजगार सरकार दे पाई है।
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सिरसा उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का जिला है, जो उस दौरान विकास व पंचायत मंत्री भी थे। मुख्यमंत्री के शहर करनाल का औसत भी 35 है। अंबाला में 35, भिवानी 35, चरखीदादरी 32, फरीदाबाद 49, फतेहाबाद 37, गुरुग्राम 46, हिसार 33, झज्जर 37, महेंद्रगढ़ 33, मेवात 39, पलवल 52, पंचकूला 31, पानीपत 47, रेवाड़ी 32, रोहतक 42, सोनीपत 42 और यमुनानगर में एक परिवार को वर्ष में औसतन 37 दिन का रोजगार ही मिल पाया है। राज्य में महज एक ही जिला पलवल ऐसा है, जिसने 50 का आंकड़ा छुआ है और औसतन एक परिवार को यहां 52 दिनों का रोजगार मिला। आंकड़े इस बात की भी तस्दीक करते हैं कि जितने लोगों ने काम मांगा उन सभी को भी सरकार रोजगार नहीं दे पाई।
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2021-22 में 675487 लोगों ने मनरेगा के तहत काम मांगा था। इसमें से 541336 को ही रोजगार मिल पाया। मतलब सवा लाख से अधिक लोगों को कोई भी काम राज्य सरकार नहीं दे पाई या उन्होंने सरकार का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। इनेलो विधायक अभय चौटाला के सवाल के जवाब में विधानसभा में दिए गए यह आंकड़े रोजगार को लेकर सरकार की नीति और नीयत की तस्वीर तो साफ करते ही हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि रोजगार के सवाल पर सरकार कितनी गंभीर है। इन आंकड़ों में यह भी नहीं बताया गया कि जॉब कार्ड धारकों को काम मांगने के 15 दिन के अंदर काम न मिलने की स्थिति में अनिवार्य प्रावधान के मुताबिक कितना बेरोजगारी भत्ता दिया गया।
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