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मनरेगा नहीं है मोदी के ‘मन की बात’

मनरेगा नहीं है मोदी के मन की बात

मनरेगा को लेकर प्रदर्शन करते ग्रामीण
मनरेगा को लेकर प्रदर्शन करते ग्रामीण 

देश भर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार ग्रामीण योजना (मनरेगा) के साथ हो रही नाइंसाफी के खिलाफ लोगों का गुस्सा उबाल पर है। देश की राजधानी में पिछले तीन दिनों से देश के 15 राज्यों के ग्रामीण लोग प्रदर्शन कर रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मनरेगा के मामले में हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि मन की बात तो बहुत हुई, अब मनरेगा की बात भी कीजिए प्रधानमंत्री जी। जापान के प्रधानमंत्री की आवभगत में व्यस्त नरेंद्र मोदी ने अभी तक उनकी मांगों पर कोई तवज्जो नहीं दी है। 13 सितंबर को इन लोगों की देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली से हुई मुलाकात ने भी सरकार में कोई सुगबुगाहट पैदा नहीं की।

Published: 15 Sep 2017, 3:58 PM IST

वित्त मंत्री अरुण जेटली को सौंपे गए ज्ञापन की प्रति

मनरेगा को लेकर आंदोलनकारियों ने केंद्र सरकार के सामने जो मांगें रखी हैं, उनमें सबसे बड़ी मांग है मनरेगा की न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोत्तरी। इसके अलावा अन्य जरूरी मांगों में हर राज्य में न्यूनतम मजदूरी को समान करना और काम के 15 दिनों के भीतर मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करना शामिल है। हालांकि इन मांगों पर केंद्र सरकार ने अब तक कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दिखाई है।

Published: 15 Sep 2017, 3:58 PM IST

दूसरी तरफ बिहार के लोग मनरेगा को बाढ़ के बाद की तबाही से लड़ने के औजार के तौर पर देख रहे हैं। इस प्रदर्शन में बिहार के अररिया, फारबिसगंज, कटिहार से बड़ी संख्या में दिल्ली आई महिलाओं ने बताया कि नीतीश सरकार ने इस बार बाढ़ पीड़ितों की भयानक अनदेखी की है और राहत कार्यों के लिए सरकारी तंत्र का ढंग से इस्तेमाल नहीं किया। उनकी मांग है कि मनरेगा के तहत दिए जाने वाले काम और मजदूरी को राहत के तौर पर इस्तेमाल किया जाए।

बिहार में बाढ़ पीड़ितों की ये मांग जोर पकड़ रही है कि इस आपदा से बर्बाद हुए इलाके में राहत के लिए मनरेगा को इस साल के बचे हुए महीनों में लागू किया जाए। अररिया से आई और खुद को गांव का पत्रकार कहने वाली मांडवी देवी ने मनरेगा में हो रही गड़बड़ियों के बारे में नवजीवन को बताया। उन्होंने कहा, ‘मनरेगा में कायदे से काम मिले तो बाढ़ के बाद हम लोग जो भुखमरी का मार झेल रहे हैं, कम से कम हमें कुछ आसरा मिल जाए। जब हम लोग गांव में प्रधान से मास्टर रोल की मांग करते हैं, तो वे देते नहीं हैं। दशहरा तक वे मास्टर रोल नहीं निकालते, इसलिए गांव से पुरूष पलायन कर जाते हैं। सहरसा की चंपा देवी की भी यही मांग है कि लोगों को मनरेगा के तहत पूरे साल काम मिलना चाहिए।

Published: 15 Sep 2017, 3:58 PM IST

इस मसले पर मजदूर किसान शक्ति संगठन के निखिल डे ने नवजीवन को बताया, ‘केंद्र सरकार के भीतर मनरेगा को लेकर कोई राजनीतिक इच्छा नहीं है। लोगों को मजदूरी नहीं मिल रही है। आज की तारीख में मनरेगा का 75 फीसदी पैसा खत्म हो गया है। अब एक कमिटी ने यह भी कह दिया कि न्यूनतम मजदूरी देने की भी जरूरत नहीं है। इस तरह से एक कानून को खत्म करने की साजिश हो रही है।’

Published: 15 Sep 2017, 3:58 PM IST

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Published: 15 Sep 2017, 3:58 PM IST