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मानव तस्करी रोधी विधेयक में मोदी सरकार ने सेक्स वर्कर्स को किया नजरअंदाज

एनसीआरबी के अनुसार, भारत में एक करोड़ 60 लाख महिलाएं देह व्यापार में शामिल हैं। देश में 2016 में मानव तस्करी के कुल 8,132 मामले सामने आए थे, जबकि 2015 में इनकी संख्या 6,877 थी। पिछले 10 सालों में मानव तस्करी के मामलों में 14 गुना वृद्धि हुई है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया लोकसभा में विदेयक पेश करती हुईं केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी 

कई खामियों के बावजूद मानव तस्करी रोधी विधेयक के लोकसभा में पारित होने पर मोदी सरकार जश्न मना रही है। लेकिन इस विधेयक में सेक्स वर्कर्स के लिए खुश होने जैसा कुछ नहीं है। यह विधेयक बंधुआ मजदूरी, सरोगेसी, बाल मजदूरी और बच्चों के अधिकारों के लिए बेशक अहम हो सकता है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार सेक्स वर्कर्स की सुरक्षा के लिए इसमें कोई प्रावधान नहीं है। यौनकर्मियों का मानना है कि सुरक्षा के नाम पर पुनर्वास केंद्र समस्या का हल नहीं हो सकता। जबकि जानकार कह रहे हैं कि सरकार को विधेयक पेश करने से पहले कायदे से रिसर्च करना चाहिए था।

आंकड़ें बताते हैं कि मानव तस्करी दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अपराध है और तस्करी कर लाई गईं महिलाओं को बड़े पैमाने पर देह व्यापार में धकेला जाता है। इस हकीकत के बावजूद सेक्स वर्कर्स के लिए इस विधेयक में कुछ खास नहीं होने पर उनमें सरकार के प्रति उदासीनता है। इस विधेयक के बारे में यौनकर्मियों से उनकी राय जानने जब हम दिल्ली के रेड लाइट एरिया जी.बी.रोड पहुंचे तो उनकी हताशा के कई पहलू सामने आए।

तीन साल पहले नौकरी का झांसा देकर बंगाल से दिल्ली की इस बदनाम बस्ती में बेच दी गईं सुष्मिता टूटी-फूटी हिंदी में कहती हैं, “एनजीओ वाली दीदी से हमें सब पता चलता रहता है। सुरक्षा के नाम पर रिहैब सेंटर्स में हमें फेंक देने से क्या सब ठीक हो जाएगा। रिहैब की हालत के बारे में भी हमें पता चलता रहता है। सरकार हमें लेकर गंभीर नहीं है।”

एक दूसरी सेक्स वर्कर मालिनी कहती हैं, “हम वोट बैंक नहीं हैं तो हमारे बारे में कोई ज्यादा नहीं सोचता। हमारे पास न वोटर कार्ड है, न आधार। हमसे कोई वोट भी नहीं मांगता। अब तो आदत हो गई है। हमें बाहर इज्जत से नहीं देखा जाता। मेरी आठ साल की बेटी है, क्या सरकार ने हमारे बच्चों के लिए विधेयक में कुछ तय किया है। नहीं न..।”

मानव तस्करी रोधी विधेयक के तहत तस्करी कर लाए गए लोगों के पुनर्वास के लिए मात्र 10 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की गई है, जिस पर सामाजिक कार्यकर्ता रुचिका सवाल उठाते हुए कहती हैं, “सरकार विज्ञापनों पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन जरूरी योजनाओं के लिए उसके पास पैसे की तंगी है।”

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, भारत में एक करोड़ 60 लाख महिलाएं देह व्यापार में शामिल हैं और 2016 में देश में मानव तस्करी के कुल 8,132 मामले सामने आए थे। जबकि 2015 में इनकी संख्या 6,877 थी। पिछले 10 सालों में मानव तस्करी के मामलों में 14 गुना वृद्धि हुई है। मानव तस्करी के तहत अन्य मामलों में वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियों को बेचना, विदेशों से लड़कियों को खरीदना शामिल है।

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सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील, सुशील टेकरीवाल कहते हैं, “विधेयक में यौन शोषण शब्द का या अपराध के तौर पर वेश्यावृत्ति का जिक्र नहीं है। ऐसा विधेयक लाने का क्या मतलब है, जिसमें मानव तस्करी के नतीजों का जिक्र न हो। जरूरी है कि हर लड़की के लिए बजट की व्यवस्था हो। पंचायती राज व्यवस्था के जरिए कानूनी संरक्षण मिलना भी जरूरी है।”

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने कार्यकाल विस्तार के तुरंत बाद कहा था कि उनका संकल्प अगले तीन वर्षों में देह व्यापार को खत्म करने का है, लेकिन जब तक सरकार सशक्त विधेयक नहीं बनाएगी, यह संभव नहीं होगा। वह कहती हैं, “देखिये, विधेयक में खामियां तो हैं। सरकार को पूरे रिसर्च के बाद ही इस विधेयक को पेश करना चाहिए था, क्योंकि तस्करी की शिकार एक बड़ी आबादी देह व्यापार में लगी हुई है। इससे निपटने के लिए सरकार को पूरी तैयारी करनी चाहिए थी।”

गौरतलब है कि मानव तस्करी रोधी विधेयक 2018 लोकसभा में पारित हो चुका है और अब इसे राज्यसभा में पारित होना है।

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