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मुनाफा कमा रहे तीन एयरपोर्ट अडानी को देकर आखिर मोदी सरकार ने कर दी अपनी नीयत साफ

देश में एयरपोर्ट के निजीकरण की शुरुआत 2003 में बीजेपी के ही नेतृत्व वाली अटल सरकार के समय में हुई थी। उस समय दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट को निजी हाथों में सौंपा गया था। अब बीजेपी की मोदी सरकार ने तीन एयरपोर्ट अडानी समूह को देकर इसकी फिर से शुरुआत कर दी है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

नरेंद्र मोदी सरकार ने हवाई अड्डों को अपनी पसंदीदा कंपनी- अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड को देने की शुरुआत कर दी है। सरकार ने तीन हवाई अड्डे- अहमदाबाद, लखनऊ और मंगलुरू को 3 जुलाई को कंपनी को सौंप दिया। सरकार के 100 दिन के एजेंडे में देश के तीन अन्य बड़े हवाई अड्डे, एयर इंडिया और उसकी सहायक कंपनियों तथा ग्राउंड हैंडलिंग- जैसे काम करने वाली सरकारी कंपनियों और हेलिकॉप्टर सेवा देने वाली कंपनी- पवन हंस को भी बेचना शामिल है। एयर इंडिया की बोली में विदेशी कंपनियां भी भाग ले सकती हैं।

निजी कंपनियों पर मोदी सरकार की मेहरबानी की कहान की शुरुआत हवाई अड्डों से करते हैं। इन्हें गुजरात के कारोबारी गौतम अडानी की कंपनी अडानी समूह को सौंपने की तैयारी फरवरी में ही कर ली गई थी। बिडिंग उसी वक्त हुई थी। दरअसल, देश के छह हवाई अड्डों- अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम और मंगलुरु के संचालन, प्रबंधन और विकास के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत निजी कंपनियों को सौंपने के लिए 14 दिसंबर, 2018 को टेंडर आमंत्रित किए गए थे।

Published: 04 Jul 2019, 6:59 PM IST

25 फरवरी, 2019 को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा प्रेस नोट जारी किया गया जिसमें बताया गया कि पांच हवाई अड्डों- अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ, तिरुवनंतपुरम और मंगलुरु की फाइनेंशियल बिड खोली गई, जिनमें अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड की बोली सबसे ऊंची रही। इसके बाद 26 फरवरी को गुवाहाटी एयरपोर्ट की बिड भी अडानी समूह ने हासिल कर ली।

लेकिन चूंकि इस पर कैबिनेट की मंजूरी जरूरी थी और आचार संहिता के चलते कैबिनेट बैठक नहीं हो पाई, इसलिए यह काम रुक गया। अब पहली फुरसत में सरकार इसे निबटा रही है। इसलिए अहमदाबाद, लखनऊ और मंगलुरू के बाद जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम का नंबर है। इन्हें भी अडानी समूह को सौंपने की घोषणा कभी भी की जा सकती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि देश में एयरपोर्ट के निजीकरण की शुरुआत 2003 में बीजेपी के ही नेतृत्व वाली अटल सरकार के कार्यकाल में हुई थी। उस समय दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों को निजी हाथों में सौंपा गया था। मुंबई एयरपोर्ट जीवीके कंपनी के पास है और दिल्ली एयरपोर्ट जीएमआर कंपनी के पास।

Published: 04 Jul 2019, 6:59 PM IST

केरल ने जताई आपत्ति

तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट को लेकर एक पेंच फंसा हुआ है और सरकार ने इसी वजह से इसे फिलहाल होल्ड कर रखा है। केरल सरकार का आरोप है कि उनके राज्य के एयरपोर्ट पर फैसला लेने से पहले उनसे बात तक नहीं की गई। लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि एयरपोर्ट के चयन का आधार क्या रहा। जिन हवाई अड्डों को निजी हाथों में सौंप दिया गया या सौंपा जाने वाला है, वहां सरकार पहले ही करोड़ों रुपये का काम करवा रही है।

27 जून, 2019 को लोकसभा में नागरिक उड्डयन मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, लखनऊ में 1484.84 करोड़, जयपुर में 1557 करोड़, गुवाहाटी में 142 करोड़, मंगलुरु में 254 करोड़ और तिरुवनंतपुरम में 26.67 करोड़ रुपये के काम चल रहे हैं। इतना ही नहीं, तिरुवनंतपुरम को छोड़कर शेष पांचों हवाई अड्डे अच्छा-खासा मुनाफा भी कमा रहे हैं।

Published: 04 Jul 2019, 6:59 PM IST

सरकार की ही जानकारी बताती है कि देश में 123 में से केवल 14 हवाई अड्डे लाभ की स्थिति में हैं, शेष 109 नुकसान में हैं। और इन 14 में से 5 हवाई अड्डे निजी हाथों में सौंपे जा रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि100 करोड़ से अधिक मुनाफा कमाने वाले हवाई अड्डों की संख्या 7 है। इनमें लखनऊ, अहमदाबाद और तिरुवनंतपुरम शामिल हैं। संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक, 2017-18 में लखनऊ को 111.81 करोड़, अहमदाबाद को 138.16 करोड़, जयपुर को 26.21 करोड़ गुवाहाटी को 30.60 करोड़, 167.80 करोड़ रुपये का फायदा हुआ, जबकि मंगलुरु को 64.38 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

सरकार टैरिफ तय करने के तरीके में भी बदलाव ला रही है। इसके चलते निजी कंपनी टैरिफ खुद ही तय करेंगी और इसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना होगा। यह हाल तब है जब हाल ही में, विमानन कंपनियों के वैश्विक संघ (आईएटीए) के मुख्य अर्थशास्त्री ब्रायन पीयर्स ने हवाई अड्डों के निजीकरण के पहले और बाद के अंतर का पता लगाने के लिए एक अध्ययन कराया था, इसमें भारत सहित दुनिया के 90 हवाई अड्डों को शामिल किया गया। इस आधार पर जारी रिपोर्ट में कहा गया कि निजीकरण के बाद हवाई अड्डों की परिचालन कुशलता में भी ज्यादा सुधार नहीं दिखता है, जबकि कंपनियों का मुनाफा बढ़ता गया है।

Published: 04 Jul 2019, 6:59 PM IST

बात हवाई सेवाओं की

सबसे पहले बात करते हैं एयर इंडिया की। मोदी सरकार ने एयर इंडिया से पूरी तरह पल्ला झाड़ने की तैयारी कर ली है। मतलब, सरकार एयर इंडिया में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने जा रही है। सरकार पहले इसमें अपनी आधी हिस्सेदारी बेचना चाहती थी, बोलियां भी मंगाई गईं, मगर इसके लिए कोई खरीदार सामने नहीं आया। सरकार के विनिवेश विभाग ने कैबिनेट ड्राफ्ट नोट भी जारी कर दिया है। जुलाई में ही यह ड्राफ्ट कैबिनेट में रखा जाएगा।

सरकार की योजना है कि एयर इंडिया की मुनाफे वाली 3 सहायक कंपनियों को अलग से बेचा जाए, जबकि घाटे वाली सहायक कंपनियों का अलग से विनिवेश किया जाए। इसके अलावा एयर इंडिया के होटल कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को बंद करने का प्रस्ताव है। सरकार एयर इंडिया की रियल एस्टेट्स की संपत्तियों की नीलामी की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर चुकी है और इनमें से काफी प्रॉपर्टी बिक भी चुकी हैं।

Published: 04 Jul 2019, 6:59 PM IST

सूत्र बताते हैं कि नागरिक विमानन सचिव प्रदीप सिंह खरोला ने एयर इंडिया के चेयरमैन अश्वनी लोहानी को 6 मई को एक पत्र भेजा है, जिसमें कहा गया है कि पहली अप्रैल को प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी। इसमें एयर इंडिया एयर ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड (एआईएटीएसएल), एयर इंडिया इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड (एआईईएसएल) और एयरलाइन अलाइड सर्विसेज लिमिटेड (एएएसएल) की विनिवेश प्रक्रिया को गति देने का फैसला किया गया।

ये तीनों एयर इंडिया की सहायक कंपनियां हैं। इसलिए एयर इंडिया प्रबंधन को जल्द से जल्द 2018-19 की बैलेंस शीट तैयार करने को कहा गया है। 27 जून, 2019 को नागर विमानन मंत्री हरदीप पुरी ने लोकसभा में जानकारी दी कि सरकार एयर इंडिया लिमिटेड और इसकी सहायक कंपनियों के विनिवेश के लिए दृढ़ संकल्प है और इसकी तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।

एयर इंडिया के साथ-साथ मोदी सरकार हेलिकॉप्टर सेवा देने वाली कंपनी पवन हंस लिमिटेड को भी बेचने जा रही है। पवन हंस में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी की है, जबकि 49 फीसदी हिस्सेदारी ओएनजीसी लिमिटेड की है। सरकार अपनी हिस्सेदारी बेचना चाह रही है।

Published: 04 Jul 2019, 6:59 PM IST

यात्री होंगे शिकार

जहां सरकार का पूरा ध्यान हवाई सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने पर है, वहीं आंकड़े बताते हैं कि यात्रियों को निजी कंपनियों की मनमानी का शिकार होना पड़ रहा है। 27 जून, 2019 को सांसद डीके सुरेश ने यह मामला सदन में रखा कि यात्रियों को उड़ान रद्द होने की सूचना पहले से नहीं दी जाती, जिससे अंतिम समय में परेशानी होती है।

इसके जवाब में केंद्रीय नागर विमानन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हरदीप पुरी ने बताया कि इस तरह की शिकायत मिलने पर क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाता है। उन्होंने पिछले तीन साल का ब्यौरा दिया। इसके मुताबिक, 2016 में 1,17,963 यात्री प्रभावित हुए थे, जिन्हें 579.89 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति की गई। इसके बाद परेशान यात्रियों की संख्या तेजी से बढ़ती गई, जो 2017 में 1,66,785, साल 2018 में 3,07,895 और मई, 2019 तक केवल पांच माह में प्रभावित यात्रियों की संख्या 2,32,297 हो चुकी है।

अब यही आंकड़े बताते हैं कि निजी एयरलाइंस से परेशान यात्रियों की संख्या काफी बढ़ी है। इसमें जेट एयरवेज के साथ-साथ स्पाइसजेट, इंडिगो और विस्तारा भी शामिल हैं। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में मई तक जहां एयर इंडिया से शिकायत करने वाले यात्रियों की संख्या 37,079 है, वहीं स्पाइजेट से नाराज यात्रियों की संख्या 70,060, इंडिगो से 62,958 और जेट एयरवेज से नाराज यात्रियों की संख्या 50,920 है। जानकार मानते हैं कि एयर इंडिया के विनिवेश के बाद निजी कंपनियों की मनमानी और बढ़ जाएगी। इससे जहां हवाई सफर महंगा हो जाएगा, वहीं यात्रियों की परेशानी भी बढ़ जाएगी।

Published: 04 Jul 2019, 6:59 PM IST

धरी रह गई सस्ती उड़ान

मार्च, 2016 में मोदी सरकार ने जब ‘उड़े देश का आम नागरिक’ योजना शुरू की थी, तब माना जा रहा था कि इससे निजी एयरलाइन कंपनियों की तादाद बढ़ेगी। लेकिन तब सरकार को शायद यह नहीं पता होगा कि निजी कंपनियां अपने मुनाफे के चक्कर में इस योजना पर पूरी तरह खरी नहीं उतर पाएंगी। इस योजना के पहले चरण में 128 रूट्स आवंटित हुए थे, जिनमें एयर ओडिशा को 50 और डेकन एयर को 34 रूट्स दिए गए थे। ये दोनों एयरलाइंस अपने 70 फीसदी रूट पर उड़ान नहीं भर पाईं और नवंबर, 2018 में उनका कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया गया। अब सिर्फ 44 रूट्स चालू हालत में हैं जिन्हें एलायंस एयर, स्पाइस जेट और ट्रूजेट चला रहे हैं।

7 फरवरी, 2019 को संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि उड़ान के तीसरे चरण में उन 16 रूट्स को अवार्ड किया गया है, जो पहले चरण में रद्द किए जा चुके हैं। संसद की स्थायी समिति द्वारा सितंबर, 2018 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया है कि सरकार ने विमानन टर्बाइन ईंधन (एटीएफ) पर 50 फीसदी की छूट तो दे दी, लेकिन एयरलाइंस कंपनियों ने इसका फायदा यात्रियों को नहीं दिया। इस वजह से हवाई किराया जितना कम होना चाहिए था, नहीं हुआ।

वहीं, एटीएफ पर लगे जीएसटी की वजह से भी किराये में कमी नहीं आई। आर्थिक संकट का सामना कर रही जेट एयरवेज ने अपनी उड़ानें कम कर दी हैं और इंडिगो में पायलट की कमी है, इस वजह से भी हवाई किराया कम होने की बजाय बढ़ रहा है।

(नवजीवन के लिए एस. राहुल की रिपोर्ट)

Published: 04 Jul 2019, 6:59 PM IST

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Published: 04 Jul 2019, 6:59 PM IST