गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा में पेश कर दिया है। बिल के बाद चर्चा के दौरान अमित शाह ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक के पीछे कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। किसी के साथ अन्याय का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। अमित शाह ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का बिल है। इस बिल ने किसी मुस्लिम के अधिकार नहीं लिए हैं। हमारे एक्ट के अनुसार कोई भी आवेदन कर सकता है। नियमों के अनुसार आवेदन करने वालों को नागरिकता दी जाएगी।
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गृह मंत्री ने कहा, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों, पारसियों और जैनों के साथ भेदभाव किया गया है। इसलिए यह विधेयक इन सताए हुए लोगों को नागरिकता देगा। साथ ही यह आरोप कि विधेयक मुस्लिमों के अधिकारों को छीन लेगा गलत है।उन्होंने कहा कि बंगाल के लोगों को नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को यह बात बता देनी चाहिए कि जो शरणार्थी जिस दिन से यहां आए हैं, उनको उस दिन से ही नागरिकता दी जानी चाहिए।
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अमित शाह ने कहा कि सीमाओं की सुरक्षा सरकार का कर्तव्य है। मणिपुर में इनर लाइन परमिट लागू होगा। किसी का अधिकार नहीं छीना जा रहा है। हम बदलाव को स्वीकार करते हैं, बदलाव को समाहित करते हैं।
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अमित शाह ने कहा कि 2014 और 2019 में हमने घोषणापत्र में इसका जिक्र किया था। हमने कहा था कि पड़ोसी देशों में प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए इसे लागू करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। साथ ही पूर्वोत्तर के लोगों की पहचान खत्म होने की आशंका को भी दूर करेंगे।
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इससे पहले अमित शाह ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश। विधेयक को पेश किए जाने के लिए विपक्ष की मांग पर मतदान करवाया गया और सदन ने 82 के मुकाबले 293 मतों से इस विधेयक को पेश करने की स्वीकृति दे दी। शिवसेना ने बिल को पेश करने के समर्थन में वोट किया। यदि विधेयक लोकसभा से पास हो जाता है तो इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा।
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ये बिल संविधान के खिलाफ: मनीष तिवारी
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि ये विधेयक संविधान के खिलाफ है। हमारा देश सेकुलर है, ये बिल उस अवधारणा को तोड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय नियम और संधि भी कहती है कि कोई भी शरणार्थी जो किसी भी धर्म से हो, आप उसे मदद देने से इनकार नहीं कर सकते। जब भी कोई शरणार्थी भारत आता है, हमसे शरण मांगता है, तो हम मानवीय आधार पर उसे मदद देते हैं।
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ये बहुत ही विचित्र कानून है, नेपाल-भूटान के लिए एक कानून, बांग्लादेश के लिए दूसरा कानून। अफगानिस्तान के लिए कुछ कानून, तो मालदीव के लिए कुछ और कानून। मैं पूछता हूं कि मालदीव का राजधर्म क्या है। इस बिल में विरोधाभास है और इसे दोबारा देखने की जरूरत है। किसी शरणार्थी का धर्म नहीं देखा जाता, सबको बराबरी का दर्जा दिया जाता है। ये बिल भारत की परंपरा के खिलाफ भी है।
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