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ट्रांसजेंडर महिलाओं के हकों के लिए नहीं सामने आये प्रधानमंत्री: शानवी पन्नसामी

चेन्नई के पास तिरुचेंदूर इलाके में पलीं शानवी अपने बचपन और बीते दिनों के बारे में एक शब्द भी बात करने को तैयार नहीं है। वह कहती हैं कि वह दौर उनकी जिंदगी का खौफनाक दौर था, जब वह अपने अधूरे शरीर और समाज से लड़ रही थी।

फोटो: भाषा सिंह
फोटो: भाषा सिंह ट्रांसजेंडर महिलाओं के हकों के लिए शानवी पन्नसामी ने पीएम मोदी को लिखा खत 

“मुझे इस देश के प्रधानमंत्री ने निराश किया। मैंने बहुत उम्मीद के साथ उन्हें पत्र लिखा था और उनके दफ्तर से जो जवाब आया, वह बेहद दिल तोड़ने वाला था। मैं सम्मान से जीना चाहती हूं, एयरइंडिया में नौकरी पाने के लिए 2016 से चार कोशिशें कर चुकी हूं, लेकिन मेरा ट्रांसजेंडर महिला होना मेरा सबसे बड़ी अपराध हो गया है। क्या हम अपराधी है, क्यों हम हमेशा अपने माथे पर यह ठप्पा लगा कर चले।” यह दुख 27 साल की शानवी पन्नसामी का है।

चेन्नई के पास तिरुचेंदूर इलाके में पलीं शानवी अपने बचपन और बीते दिनों के बारे में एक शब्द भी बात करने को तैयार नहीं है। वह कहती हैं कि वह दौर उनकी जिंदगी का खौफनाक दौर था, जब वह अपने अधूरे शरीर और समाज से लड़ रही थी। फिर उन्होंने खुद को साबित करने की कसम खाई। इंजीनियरिंग की, नौकरी की, मॉडलिंग की और इसी दौरान पूरी तरह से महिला बनने के लिए ऑपरेशन भी कराया। अब वह एक महिला हैं और सम्मान के साथ जीना चाहती हैं। बचपन से उनका मन पायलेट बनने का था, लेकिन वह नहीं पूरा हो पाया, इसलिए उन्होंने एयर इंडिया में क्रू मेंबर बनना अपने जीवन का मकसद बना लिया। साल 2016 में एयरइंडिया में भर्ती का विज्ञापन शानवी ने देखा और तब से लेकर अभी तक वह इसमें एंट्री के लिए संघर्षरत हैं।

जब उनसे पूछा गया कि आखिर क्यों उन्होंने सरकारी एयरलाइंस में कोशिश की, किसी निजी एयरलाइंस में नहीं, तो शानवी ने कहा कि सबसे पहले हम अपने हक की बात सरकार से कर सकते हैं। वहीं पर पिछड़े-दलितों के लिए आरक्षण का प्रावधान है। मैंने भी यही सोचा था कि कम से कम तमाम बंद दरवाजों में यहां जगह निकाल लेंगे। लेकिन यहां से बहुत निराशा हुई। शानवी ने बताया कि 2017 अगस्त में जब एयरइंडिया में 4 बार आवेदन करने के बाद, उन्हें मना कर दिया तब उन्होंने देश के प्रधानमंत्री से मदद की गुहार की, उन्हें पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने ट्रांस महिला को एयरइंडिया में नौकरी का मौका देने का आग्रह किया। इसकी जवाब यह आया कि ट्रांस महिला की कोई कैटेगरी ही नहीं है, लिहाजा कुछ नहीं हो सकता।

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इसके बाद सितंबर 2017 में वह सुप्रीम कोर्ट गईं और 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा। लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर तंग आकर फरवरी 2018 में उन्होंने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की इजाजत मांगी।

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इस बारे में शानवी ने बताया, “मैं इस कदर टूट चुकी थी कि लगा कि ऐसे कैसे जिया जा सकता है। लेकिन मैं लड़ना चाहती हूं। अभी लड़ रही हूं।” सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए वह दिल्ली आई हुईं हैं और अदालत ने उन्हें जेंडर भेदभाव पर एक नई याचिका दाखिल करने को कहा है। इसकी वजह यह है कि एयरइंडिया ने अदालत में कहा कि जितने नंबर एक महिला को चुनने के लिए चाहिए, उससे चार नंबर शानवी के कम आये। हालांकि शानवी का कहना है कि एक ट्रांस महिला और एक सामान्य औरत को एक ही पैमाने पर नहीं नापा जा सकता। और वह इसलिए क्योंकि इस श्रेणी में चुनाव दिखावे के हिसाब से है, पर्सनैलिटी के हिसाब से नहीं।

शानवी की अभी तक की लड़ाई बुलंद रही है। वह अपनी निजता को बरकरार रखते हुए सम्मान और बराबरी चाहती है। और खास बात यह कि वह सिर्फ अपने लिये ही नहीं, बल्कि अपने समुदाय के हकों के बारे में फिक्रमंद हैं।

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