सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जिन न्यायिक अधिकारियों ने पीठ में शामिल होने से पहले अधिवक्ता के रूप में सात साल की वकालत पूरी कर ली है, उन्हें बार के सदस्यों के लिए आरक्षित रिक्तियों पर जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने पर विचार किया जा सकता है।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, न्यायमूर्ति एस सी शर्मा और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने दो अलग-अलग फैसले सुनाते हुए कहा कि अधीनस्थ न्यायपालिका के न्यायिक अधिकारी केवल अधिवक्ताओं के लिए सीधी भर्ती प्रक्रिया के तहत जिला न्यायाधीश बनने के हकदार हैं।
Published: undefined
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) गवई ने कहा, ‘‘सेवा में आने से पहले बार में 7 साल तक वकालत पूरी कर चुके न्यायिक अधिकारी जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के पात्र होंगे।’’
फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि संवैधानिक योजना की व्याख्या ‘‘यांत्रिक’’ नहीं , बल्कि सजीव और विकासशील होनी चाहिए।
फैसले में कहा गया है, ‘‘सभी राज्य सरकारें उच्च न्यायालयों के परामर्श से तीन महीने की अवधि के भीतर हमारे द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार संशोधन करेंगी।’’
न्यायमूर्ति सुंदरेश ने एक अलग और सहमति वाला फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘उभरती हुई प्रतिभाओं की पहचान और उन्हें जल्द से जल्द तराशने में नाकाम रहने से उत्कृष्टता के बजाय साधारणता को बढ़ावा मिलेगा, जिससे नींव कमज़ोर होगी और न्यायिक ढांचा कमजोर होगा। यह जाहिर है कि अधिक प्रतिस्पर्धा बेहतर गुणवत्ता प्रदान करेगी।’’
मामले में अभी विस्तृत फैसला प्राप्त नहीं हुआ है।
Published: undefined
उच्चतम न्यायालय ने 25 सितंबर को इस संवैधानिक सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या ऐसे न्यायिक अधिकारियों को, जिन्होंने न्यायालय में नियुक्ति से पहले अधिवक्ता के रूप में सात वर्षों की वकालत पूरी कर ली हो, बार के लिए आरक्षित रिक्तियों के तहत जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined