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'पानी का रिसाव और दीवारों में बिजली का करंट...', ट्रामा सेंटर में अनहोनी को लेकर हटाए गए अधिकारी ने किया था आगाह

अधिकारी का दावा है कि खराब निर्माण कार्य और रखरखाव के चलते सेंटर असुरक्षित हो गया था और उन्होंने पानी के रिसाव और दीवारों में बिजली का करंट आने जैसी दिक्कतों के साथ अनहोनी की आशंका जताई थी।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में अग्निकांड के बाद हटाए गए अधिकारी का दावा है कि उन्होंने सेंटर के खराब रखरखाव और निर्माण कार्य के बारे में उच्च अधिकारियों को चेताया था।

अधिकारी का दावा है कि खराब निर्माण कार्य और रखरखाव के चलते सेंटर असुरक्षित हो गया था और उन्होंने पानी के रिसाव और दीवारों में बिजली का करंट आने जैसी दिक्कतों के साथ अनहोनी की आशंका जताई थी।

उन्होंने यह भी दावा किया कि इस भयावह स्थिति से निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

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उल्लेखनीय है कि जयपुर के एसएमएस अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर की दूसरी मंजिल पर स्थित न्यूरो आईसीयू में रविवार रात भीषण आग लग गई। इसमें भर्ती 11 मरीजों में से छह की मौत हो गई। उसी मंजिल पर स्थित एक अन्य आईसीयू से भी 14 मरीजों को निकाला गया जिनमें से दो की बाद में मौत हो गई।

हालांकि, अस्पताल प्रशासन का कहना है कि आग (न्यूरो आईसीयू) के कारण छह लोगों की ही मौत हुई है।

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हादसे के बाद हटाए गए अधिकारी

राज्य सरकार ने अग्निकांड मामले में कार्रवाई करते हुए अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुशील भाटी तथा ट्रोमा सेंटर के प्रभारी डॉ. अनुराग धाकड़ को पद से हटा दिया है।

इसके साथ ही एसएमएस अस्पताल में पदस्थापित अधिशाषी अभियंता मुकेश सिंघल को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। वहीं अग्नि सुरक्षा (फायर सेफ्टी) के लिए नियोजित एजेंसी एसके इलेक्ट्रिक कंपनी की निविदा निरस्त करते हुए उनके खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज करवाने के निर्देश दिए गए हैं।

राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, एसएमएस में राज्य भर और अन्य जगहों से मरीज इलाज के लिए आते हैं।

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आगाह किए जाने के बाद भी नहीं चेता अस्पताल प्रशासन 

डॉ. धाकड़ ने दावा किया कि उन्होंने एसएमएस अस्पताल के अधीक्षक और अन्य संबंधित अधिकारियों को कई बार पत्र लिखे जिनमें दीवारों में बिजली के करंट आना, छतों से रिसाव और बिजली के पैनलों में गंभीर खराबी के बारे में आगाह किया गया था। उन्होंने कहा कि इन कारणों से चलते ट्रॉमा सेंटर असुरक्षित हो गया था।

डॉ.धाकड़ के मुताबिक उन्होंने सबसे हालिया पत्र अग्निकांड से ठीक दो दिन पहले तीन अक्टूबर को लिखा था। इसमें वार्ड की दीवारों में सीलन और बिजली के पैनल को लेकर चिंता जताई थी।

पत्र में कहा गया है, ‘‘ऊपरी मंजिल पर न्यूरो ऑपरेशन थिएटर के चल रहे निर्माण कार्य के कारण वीआरवी सिस्टम, डक्ट और इलेक्ट्रिकल पैनल क्षतिग्रस्त हो गए हैं। मलबा गिरने से इनके और क्षतिग्रस्त होने की प्रबल आशंका है। अगर इनमें से कोई भी मशीनरी क्षतिग्रस्त होती है तो पूरी जिम्मेदारी संबंधित विभाग की होगी।’’

पिछले महीने भी उन्होंने एक पत्र लिखकर चेतावनी दी थी कि ऊपर निर्माण क्षेत्र से बारिश के पानी का रिसाव ऑपरेशन थिएटर के अंदर खतरनाक स्थिति पैदा कर रहा है।

उन्होंने नौ सितंबर को पत्र लिखा कि, ‘‘सीलन की वजह से ऑपरेशन थिएटर की दीवारों और स्विच बोर्ड में करंट फैल रहा है। इससे चिकित्सकों, कर्मचारियों और मरीजों के लिए अनहोनी की आशंका बनी रहती है।’’

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चेतावनी के बावजूद कार्रवाई नहीं हुई

डॉ.धाकड़ ने ‘पीटीआई भाषा’ को बताया, ‘‘मैंने रखरखाव और संभावित खतरों से जुड़े कई गंभीर मुद्दों पर उच्च अधिकारियों को कई पत्र लिखे थे।’’ उन्होंने कहा कि इन पत्रों में उठाए गए मुद्दों पर कार्रवाई करना उच्च अधिकारियों और संबंधित विभागों का काम था, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आग के कारणों का पता लगाने के लिए जांच के आदेश दिए गए हैं। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि क्या बिजली और सुरक्षा संबंधी खतरों के बारे में पूर्व चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया था।

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अस्पताल के कर्मचारी पर मरीजों का आरोप

रविवार रात हुए हादसे में पिंटू, दिलीप, श्रीनाथ, रुक्मिणी, खुरमा और बहादुर की मौत हो गई। राज्य सरकार ने पीड़ितों के परिवारों के लिए 10-10 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की है।

सोमवार को मरीजों के परिजनों और तीमारदारों ने आरोप लगाया कि आग लगने पर अस्पताल के कर्मचारी मरीजों को आग और धुएं के बीच छोड़कर भाग गए। उनमें से कुछ ने दावा किया कि उन्होंने आग लगने की आशंका के बारे में कर्मचारियों को सूचित किया था लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया। कुछ ही देर बाद, आईसीयू के स्टोर रूम में आग लग गई।

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