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योगी राजः पुलिस एनकाउंटर या सोच समझ कर हो रही हैं हत्याएं?

उत्तर प्रदेश में योगी राजः पुलिस एनकाउंटर या सोच समझ कर हो रही हैं हत्याएं?

योगी आदित्यनाथ/ फोटोः getty images
योगी आदित्यनाथ/ फोटोः getty images 

उत्तर प्रदेश में पुलिस के साथ मुठभेड़ में किसी अपराधी के मारे जाने के ज्यादातर मामलों में एक ही तरह की कार्य प्रणाली दिखती है। एक अपराधी गिरफ्तार किया जाता है, लेकिन वह भाग जाता है। कुछ दिनों बाद पुलिस किसी तरह उसका पता लगा लेती है और उसे एक मुठभेड़ में मार गिराती है।

योगी आदित्यनाथ की सरकार ने किसी वांछित अपराधी को मार गिराने के लिए पुलिस महानिदेशक को 2.5 लाख रुपये और जिला पुलिस अधिक्षक को 25,000 रुपये का ईनाम घोषित करने के अधिकार दे दिये हैं। सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए लोग सवाल पूछ रहे हैं कि क्या सरकार ने अपराध नियंत्रण के नाम पर लोगों को मारने के लिए ईनाम घोषित किया है। यहां तक कि शनिवार को योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उनकी सरकार गोलियों का जवाब गोलियों से देंगे।

पिछले 6 महीने में 420 एनकाउंटर करने और 15 ईनामी अपराधियों को मार गिराने के पुलिस के दावे को देखते हुए इस तरह की आशंका बेबुनियाद नहीं है। पुलिस ने 1106 अपराधियों को गिरफ्तार किया है और 84 अपराधी पुलिस के साथ गोलीबारी में घायल हुए हैं। राज्य सरकार के अनुसार इन मुठभेड़ों के दौरान 86 पुलिसकर्मी भी गोलियों से घायल हुए हैं। चित्रकुट में डकैतों के एक गिरोह के साथ मुठभेड़ में एक सब इंस्पेक्टर जय प्रकाश सिंह की मौत हो गई थी।

पहली नजर में ये आंकड़े उत्तर प्रदेश में अपराध पर काबू पाने के योगी आदित्यनाथ के संकल्प को दिखाते हैं। एच आर शर्मा जैसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी यह कहते हुए पुलिस कार्रवाई का बचाव करते हैं कि अपराध नियंत्रण के लिए इस तरह के प्रयास जरूरी हैं। राज्य के एडीजी विधि व्यवस्था आनंद कुमार ने कहा कि पुलिस ने सिर्फ ऐसे लोगों को निशाना बनाया है जो समाज के लिए समस्या बन रहे थे। उन्होंने कहा कि इन मुठभेड़ों में कई पुलिसकर्मी घायल हुए हैं और एक पुलिस अधिकारी की मौत भी हुई है। आनंद कुमार ने कहा ‘हम उन अपराधियों को आत्मसमर्पण करने के लिए कहते हैं और अगर वे गोली चलाते हैं तो पुलिस उनका जवाब देती है।‘

हालांकि गहराई से पड़ताल किये जाने पर पुलिस की यह सफाई कहीं नहीं ठहरती। ऐसे ज्यादातर मुठभेड़ों की कार्य प्रणाली एक जैसी ही दिखती है, जिनमें किसी अपराधी की मौत हुई हो। एक अपराधी गिरफ्तार किया जाता है, लेकिन वह किसी तरह से पुलिस हिरासत से भाग जाता है। कुछ दिनों बाद पुलिस को कहीं से उसके बारे में पता चलता है और वह उन अपराधियों को एक मुठभेड़ में मार गिराती है। हालांकि इन मुठभेड़ों में उस दुर्दांत अपराधी के साथी हमेशा भागने में कामयाब हो जाते हैं।

कुछ उदाहरणः

सहारनपुर पुलिस ने 11 सितंबर को वांछित अपराधी शमशाद को एक मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया। इस मुठभेड़ से तीन दिन पहले शमशाद गागलहेड़ी इलाके में पुलिस हिरासत से भाग गया था। जिले के एसएसपी ने उसके भागने के बाद उस पर 12,000 रुपये के ईनाम की घोषणा की थी। खबरों के अनुसार स्वाट टीम के साथ मुठभेड़ के दौरान शमशाद को गोलियां लगी थीं। उसका एक साथी भागने में सफल हो गया था। पुलिस ने दावा किया है कि शमशाद ने पिछले शनिवार को सहारनपुर के स्थानीय डॉक्टर पीयूष सनावर को धमकी देते हुए प्रोटेक्शन मनी के तौर पर 15 लाख रुपये की मांग की थी।

1 सितंबर को लखनऊ के गोमती नगर इलाके में पुलिस हिरासत से भागे 15,000 रुपये के ईनामी अपराधी सुनील शर्मा को एक मुठभेड़ में पुलिस ने मार गिराया था। पुलिस ने कहा कि गोमती नगर में हुए मुठभेड़ में सुनील घायल हो गया था और बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई। शर्मा हरदोई जेल में बंद था और सुनवाई के लिए लखनऊ लाया गया था जहां से वह पुलिस हिरासत से भाग गया था।

आजमगढ़ पुलिस ने 18 अगस्त को 50,000 रुपये के ईनामी अपराधी सुजीत सिंह उर्फ बुधवा को एक मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था। इस मुठभेड़ में 5 पुलिस वाले भी घायल हुए थे। पुलिस ने बताया कि 11 सितंबर को लूट के एक मामले में मऊ की अदालत से पेशी के बाद रामपुर लौटने के दौरान बुधवा पुलिस हिरासत से भाग गया था। इस मुठभेड़ में भी बुधवा के साथी भागने में सफल रहे थे।

25 अगस्त को चित्रकुट के माणिकपुर पुलिस स्टेशन इलाके में स्थित निहि चिरैया के जंगलों में डकैत बब्ली कोल और उसके साथियों के साथ मुठभेड़ में एक सब इंस्पेक्टर जे पी सिंह की जान चली गई, जबकि बहेलपुर के एसएचओ वीरेंद त्रिपाठी घायल हो गए थे। इसके बाद 4 सितंबर को यूपी एसटीएफ ने शारदा कोल नाम के एक दुर्दांत डकैत को मार गिराया। मारे गए डकैत पर 12,000 रुपये का ईनाम था और वह अवर निरीक्षक जेपी सिंह की हत्या का मुख्य अभियुक्त था।

मानवाधिकार कार्यकर्ता पुलिस की इस कार्यवाही से बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं। पीपुल्स वीजिलेंस कमिशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (पीवीसीएचआर) के लेनिन रघुवंशी कहते हैं कि ऐसे मुठभेड़ कानून के शासन को नुकसान पहुंचाते हैं और आपराधिक न्याय प्रणाली को विकृत करते हैं। उन्होंने कहा, ‘इससे अपराधियों का राजनीतिकरण भी होता है, क्योंकि पुलिस कार्रवाई के डर से वे अक्सर सत्ताधारी दल में शामिल हो जाते हैं। फिर वे स्थानीय नेताओं के संरक्षण में अपनी आपराधिक गतिविधियों को जारी रखते हैं।‘

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