दुनिया

ट्रंप से मोदी जितनी भी गलबहियां करें, भारतीय अमेरिकियों में तो भारी है बिडेन-हैरिस का ही पलड़ा

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर हाल में हुए जनमत सर्वेक्षण में इससे कम ही या लगभग नहीं ही आश्चर्य हुआ जिसने संकेत दिया कि करीब 70 फीसद एशियाई भारतीयों ने जो बिडेन/कमला हैरिस को टिकट दिए जाने के पक्ष में वोट डाले।

फोटो : Getty Images
फोटो : Getty Images 

जनवरी 2009 में जब बराक ओबामा ने अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी, तब इसे बड़े पैमाने पर अमेरिका के लिए नया सवेरा माना गया था। देश के नए अश्वेत राष्ट्रपति के तौर पर उन्हें श्वेत मतदाताओं ने भी भारी संख्या में वोट किए थे। उन्हें उम्मीद जगी थी कि नए ढंग से बन रहे राजनीतिक परिदृश्य में अमेरिका बेहतर तरीके से शांतिपूर्ण और समृद्ध बन सकेगा। पर हमने गिरते नस्लीय रिश्तों और व्यक्तिगत पहचान के भारी उभार वाली स्थिति देखी जिससे राष्ट्र-राज्य में और अधिक ध्रुवीकरण ही हुआ। अमेरिका भिन्न-भिन्न विचारों वाला देश नहीं रह गया। नस्ली भेदभाव और लिंग भेद के साथ जातीय राजनीति ने दोनों तरफ जुनून भड़काना शुरू कर दिया। इससे आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर कोई आम राय बनाने में आम तौर पर दिक्कत होने लगी।

Published: undefined

इसमें शक नहीं कि डोनाल्ड ट्रंप ने मतदाताओं, खास तौर से श्वेत मतदाताओं, के बीच इस विभाजन और असंतोष का लाभ उठाया और 2016 में राष्ट्रपति-पद का चुनाव जीत लिया। यह ऐतिहासिक जीत थी जिससे अमेरिका और दुनिया भर के वैश्विकवादियों में ‘राजनीतिक वर्ग’ सन्न रह गया। तब निवर्तमान डेमोक्रेटिक प्रशासन के साथ मतदाताओं के असंतोष से अधिक यह उनकी जीत थी। निस्संदेह, ट्रंप के चुनाव को तकनीक आधारित नीतियों, वाशिंगटन में सत्ता के बढ़ते केंद्रीयकरण और उन अनियंत्रित प्रवासी नीतियों को झटके के तौर पर देखा गया जिनके डेमोक्रेट भारी पक्षधर थे। इस उग्र अभियान का स्वर ऐसा तीखा था जो शर्मसार करने वाला था। ट्रंप और डेमोक्रेट की उम्मीदवारी नफरत वाली थी। एक ने दूसरे को महिलाओं से घृणा करने वाला, अज्ञात लोगों के प्रति भयभीत, लैंगिकवादी और नस्लीय भेदभाव करने वाला, तो दूसरे ने पहले को गहरे तक भ्रष्टाचारी और अविश्वसनीय कहा।

Published: undefined

2020 की राजनीति की दृष्टि से काफी कुछ बदल गया है और अमेरिका आज ऐसा गहरे तक विभाजित देश है जहां ‘शांतिपूर्ण प्रदर्शन’ शांतिपूर्ण नहीं रह गया है और नेताओं की नई पीढ़ी के पैरोकार ऐसे रचनात्मक बदलाव की मांग कर रहे हैं जिनके बारे में कुछ साल पहले तक एकदम सोचा भी नहीं जा सकता था। कोई नहीं जानता कि यह, बस, गुजर जाने वाला घटनाक्रम है या अमेरिका ऐसी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था के लिए तैयार है जो दुनिया के लिए रश्क करने वाली चीज रही है और जो आर्थिक तौर पर साधनहीन देशों के लाखों-लाख लोगों को अपने सपने जमीन पर उतारने के लिए लुभाती रही है।

Published: undefined

हमें यहां एशियाई भारतीय कहा जाता है। अमेरिका में ऐसे लोगों की संख्या आबादी का एक प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा है। यह सबसे सफल प्रवासी समूहों में है जो अमेरिका को अपना घर कहता है। भारतीय परिवार की औसत आय देश में किसी भी अन्य जातीय समूह से ज्यादा है। इसमें संदेह नहीं कि कथित तौर पर ‘माता-पिता द्वारा तय किए गए विवाह’ वाली व्यवस्था ने उन लोगों की आय के स्तर में मदद की होगी जिनमें दो प्रोफेशनल लोग हैं जो इस समुदाय में आम बात है। इसके साथ ही, यह माना जाता है कि यहां लगभग पांच लाख भारतीय नागरिक हैं जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं और जो या तो वीसा अवधि समाप्त होने के बाद भी रुक गए हैं या दलालों की मदद से मैक्सिको सीमा पार कर यहां आ गए हैं। इन दलालों को यहां काइयोट- उत्तरी अमेरिका में पाए जाने वाले छोटे भेड़िये, कहते हैं। ये सभी समूह मिलकर अमेरिका में बढ़ते भारतीय डायस्पोरा के हिस्से बनते हैं।

Published: undefined

हालांकि भारतीय अमेरिका अपने सामाजिक दृष्टिकोण में अधिकांशतः रूढ़िवादी हैं। जरूरी नहीं कि उन्होंने अपने जातीय संबंधों या नुकसानदेह सोच को साफ ही कर लिया है। पर वे उस डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रति झुकाव रखते हैं जो नीतियों और शासन के मामले आने पर बहुत लिबरल और वाम-उन्मुख है। इस तरह के रुख से जुड़े कई कारण हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी को प्रवासी मसले और सामाजिक लाभ-जैसे सामुदायिक मुद्दों के लिए सकारात्मक तरीके से देखा जाता है। पार्टी को अपने सभी नागरिकों के अल्पसंख्यक अधिकारों और सिविल अधिकारों का बेहतर ध्यान रखने वाले के तौर पर माना जाता है। हालांकि एच1बी वीसा वाले अभी वोट बैंक के तौर पर नहीं उभरे हैं लेकिन उन्हें भारतीय समुदाय का समर्थन हासिल है। वे भी रिपब्लिकन की तुलना में डेमोक्रेटिक नेतृत्व से स्थायी निवास हासिल करने के मामले में अधिक सकारात्मक रुख रखने की आस रखे हुए हैं। यह सिद्धांतों या मूल्य आधारित निर्णय से अधिक आत्मरक्षा को लेकर है।

Published: undefined

दूसरी पीढ़ी वाले भारतीय प्रवासी मसले और अपने देश से जुड़ी सांस्कृतिक परंपराओं के समावेश से संबंधित अपने लाइफस्टाइल और अपने दर्शन में खुले दिमाग वाले और प्रगतिशील हैं। वे डेमोक्रेटिक पार्टी के उन मूल्यों और इसके मंच को अपनाने के प्रति झुकाव रखते हैं जो वृहद सोच वाली हैः समावेशी, समानता और निष्पक्षतावादी। इस नई पीढ़ी की युवतियां गर्भपात के अधिकार और समान काम के लिए समान वेतन समेत महिला अधिकारों का भी समर्थन करती हैं। कई को अतिदक्षिणपंथी आंदोलनों के संभावित उभार पर ये आशंकाएं उचित ही लगती हैं कि यह उनकी सुरक्षा और उनके बच्चों के आर्थिक स्थायित्व के लिए खतरा हो सकते हैं।

Published: undefined

ऐसे में, हाल में हुए जनमत सर्वेक्षण में इससे कम ही या लगभग नहीं ही आश्चर्य हुआ जिसने संकेत दिया कि करीब 70 फीसद एशियाई भारतीयों ने जो बिडेन/कमला हैरिस को टिकट दिए जाने के पक्ष में वोट डाले। हैरिस भारतीय अमेरिकी हैं, हालांकि वह राजनीतिक कारणों से अपने को ‘ब्लैक अमेरिकन’ कहलाना पसंद करती हैं। हैरिस को जिस तरह अमेरिका में दूसरे नंबर के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के तौर पर समर्थन मिला है, वही डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रति विश्वास और समाज के अभिन्न अंग के तौर पर उनकी स्वीकारोक्ति का प्रमाण है।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined

  • बड़ी खबर LIVE: मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को BSP के राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर पद से हटाया, उनके उत्तराधिकारी भी नहीं रहेंगे

  • ,
  • मायावती का चौंकाने वाला फैसला, भतीजे आकाश आनंद को सभी जिम्मेदारियों से हटाया, उत्तराधिकारी भी नहीं रहेंगे

  • ,
  • 'अग्निवीर योजना को खत्म और जीएसटी में संशोधन करेंगे', राहुल गांधी ने बीजेपी पर लगाया आदिवासियों को धोखा देने का आरोप

  • ,
  • दुनियाः इजरायली सेना ने रफा पर किया हमला, 20 की मौत और पाकिस्तान ने टारगेटेड हत्याओं के पीछे भारत का हाथ बताया

  • ,
  • लोकसभा चुनावः महाराष्ट्र के सोलापुर में पोलिंग बूथ पर शख्स ने 3 EVM को लगाई आग, मचा हड़कंप