लोकसभा चुनाव 2019

असमः कांग्रेस की घेरेबंदी से बीजेपी और अजमल परेशान, एनआरसी भी बन रहा है दोनों के गले की फांस

असम में अल्पसंख्यक वोटों के नाम पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के सहारे जीतते आ रहे ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट प्रमुख बदरुद्दीन अजमल को कांग्रेस ने इस बार कायदे से घेर लिया है। इस लोकसभा चुनाव में अजमल के लिए अपने गढ़ को बचाए रखना चुनौती बन गया है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

असम में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयडूीएफ) प्रमुख बदरुद्दीन अजमल ने इस बार कांग्रेस के साथ गठबंधन का प्रस्ताव दिया था। कांग्रेस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आने के बाद भी उन्होंने सिर्फ उन्हीं तीन संसदीय सीटों- धुबड़ी, बरपेटा और करीमगंज, से अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की जिन पर उनकी पार्टी का कब्जा था। उन्हें उम्मीद थी कि जवाब में कांग्रेस भी उनके उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान से हट जाएगी या फिर कमजोर उम्मीदवार उतारेगी।

इस पर बीजेपी ने कांग्रेस और अजमल के बीच राजनीतिक गठबंधन का आरोप लगाकर असमिया मतदाताओं को एकजुट करने का अभियान चला दिया। लेकिन जब इन सीटों पर कांग्रेस ने मजबूत उम्मीदवार दिए, तो न सिर्फ अजमल परेशान हैं बल्कि बीजेपी को भी नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है।

तीसरे फेज में जिन चार सीटों पर वोटिंग है, उनमें से दो- धुबड़ी और बरपेटा, में पिछले चुनाव में एआईयडूीएफ के उम्मीदवार जीते थे। धुबड़ी से तो खुद अजमल विजयी रहे थे। लेकिन इस बार उन्हें कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है। उनके सामने कांग्रेस के अबा तायेब बेमारी और असम गण परिषद (एजीपी) के जावेद इस्लाम हैं। बरपेटा में एआईयडूीएफ के हफीज रफीकुल इस्लाम के सामने कांग्रेस के अब्दुल खलीक और एजीपी के कुमार दीपक दास हैं। खलीक विधायक भी हैं।

धुबड़ी और बरपेटा में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या निर्णायक है। इसी वजह से पिछले लोकसभा चुनाव में एआईयडूीएफ ने कब्जा किया था। ये इलाका बदरुद्दीन अजमल का गढ़ रहा है। उनके ज्यादा विधायक इन्हीं सीटों से चुने जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मतदाताओं पर अजमल का असर घटा है और वे फिर से कांग्रेस की तरफ झुक रहे हैं।

तीसरे फेज की अन्य दो सीटों पर भी मुकाबला दिलचस्प है। बीजेपी के लिए गुवाहाटी प्रतिष्ठा की सीट है। पिछली बार बीजेपी यहां से जीती थी। बीजेपी ने निवृत्तमान सांसद विजया चक्रवर्ती की जगह कुइन ओजा पर भरोसा किया है। इस बार यहां कांग्रेस से बबिता शर्मा उम्मीदवार हैं।

हालांकि यहां निर्दलीय उम्मीदवार उपमन्यु हजारिका भी शहरी असमिया मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। उनके प्रचार का तरीका अलग है। वह सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हैं और असमिया खिलंजिया (मूल निवासी) के सवाल पर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। एनआरसी के अपडेट का सवाल हो या मूल असमिया के हितों का, वह लंबी कानूनी लड़ाई लड़ते रहे हैं।

कोकराझाड़ सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार नब कुमार शरणिया बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) की उम्मीदवार प्रमिला रानी ब्रह्म के लिए चुनौती बन गए हैं। प्रमिला ब्रह्मा असम की बीजेपी नीत सरकार में मंत्री हैं। वह बीजेपी, एजीपी और बीपीएफ गठबंधन की संयुक्त उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने शब्द राभा को फिर से टिकट दिया है जबकि यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी (यूपीएफ) की तरफ से पूर्व सांसद उर्खाव गौरा ब्रह्मा भी मैदान में हैं, जिन्हें ऑल बोडो छात्रसंघ का समर्थन है।

यही बात बीपीएफ उम्मीदवार के लिए चुनौती है। बीपीएफ प्रमुख हाग्रामा मोहिलारी का बोडोलैंड में काफी असर है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद इस बार वह सतर्क हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में निर्दलीय नब कुमार शरणिया ने बीपीएफ के चंदन ब्रह्म को हराकर सभी को चौंका दिया था। कोकराझाड़ में गैर बोडो मतदाताओं की बड़ी संख्या है। पिछली बार कई बोडो उम्मीदवार होने से बोडो वोट बंट गए थे। नब शरणिया इस बार भी गैर बोडो मतदाताओं को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन इस बार उनका प्रभाव कम हुआ है।

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