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कृषि विकास दर गिरी औंधे मुंह, सरकार ने सीएसओ के आंकड़ों को नकारा

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की रिपोर्ट में 2017-18 के कृषि विकास दर में कमी बताई गई है, लेकिन केंद्र सरकार ने अपने ही संस्थान के आकलन को मानने से इनकार कर दिया है।

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फोटो: सोशल मीडिया   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 

जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की वृद्धि दर को लेकर बेहतर तस्वीर पेश की जा रही है, उसी समय देश की अर्थव्यवस्था का मूल्यांकन करने वाली संस्था केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों में कई अहम क्षेत्रों में विकास की दर में भीषण गिरावट बताई गई है। इससे परेशान होकर केंद्र सरकार पहली बार अपनी संस्था के ही आंकड़ों को नकार रही है।

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने वर्ष 2017-18 के विकास के बारे में जो आकलन पेश किया, उसे कृषि मंत्रालय ने नकार दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है जब केंद्र सरकार ने अपने ही संस्थान के आकलन को मानने से इनकार कर दिया हो। सीएसओ ने 2017-18 में कृषि, फॉरेस्ट्री और मछली-पालन क्षेत्र में विकास की दर को 4.9 फीसदी से गिरकर 2.1 फीसदी तक आने की आशंका जताई है। यानी इस क्षेत्र में संकट इतना गहरा है कि विकास दर आधे से भी कम होने जा रही है। देश भर में किसानों के बढ़ते आक्रोश से इसका सहज ही आभास मिलता है कि कृषि संकट संभल नहीं रहा है। गौरतलब है कि सीएसओ के ही आकलन के आधार पर विकास के तमाम अनुमान, सकल घरेलू उत्पाद से लेकर सारी अर्थव्यवस्था की सेहत का हाल पता चलता है।

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सीएसओ के इस आकलन को कृषि मंत्रालय ने नकारने के लिए ऐसा तर्क गढ़ा है, जिसने देश भर में कृषि वैज्ञानिकों को परेशान कर दिया है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) ने सीएसओ द्वारा आंकड़ों को जुटाने पर ही सवाल उठाया है। मंत्रालय ने खरीफ और रबी के आंकलन को आधार बनाने में हुई गड़बड़ी को परोक्ष रूप जिम्मेदार ठहराया है।

इस बारे में केरल में कृषि विश्वविद्यालय में निदेशक डॉपी इंदिरा देवी ने नवजीवन को बताया कि सरकार का यह कदम बेहद शर्मनाक है। जमीन पर हालात इतने खराब है, उन्हें सुधारने के बजाय, गलत ढंग से तथ्यों को पेश किया जा रहा है। सीएसओ के डाटा पर ही सारी गणनाएं टिकी होती है। इसे जुटाने की भी एक स्थापित खरी प्रक्रिया है। अब जब अर्थव्यवस्था और खासकर कृषि अर्थव्यवस्था गहरे संकट में फंस गई है, तो सरकार अपने ही हिस्से पर संदेह खड़ा कर रही है। ये वैसा ही है जैसे देश में गरीबों की संख्या बढ़ने लगी तो गरीबी रेखा को नापने के तौर-तरीकों को ही बदल दिया गया। वृद्धि दर को नापने के तौर-तरीकों में भी इसी तरह की धांधली की जा रही है। देश को इस तरह से भ्रम में डालने की कोशिशें बेहद चिंताजनक है।

कृषि मामलों की विशेषज्ञ कविता कुरुंथी का कहना है कि खेती और किसान जिस अभूतपूर्व संकट में फंसती जा रही है, उस पर इस तरह के झूठा आंकड़ा दिखाकर कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। संकट से निपटने के बजाय, सरकार इस तरह के हथकंडे अपना रही है, यह शर्मनाक है। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि किसी भी आंकड़े पर लोग विश्वास न करेंगे।

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