जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल, 2025 को हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की हत्या, उसके बाद भारत द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर और दर्जनों देशों में भेजे गए भारतीय प्रतिनिधिमंडलों के मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में बहस हो रही है। लोकसभा में यह बहस 28 जुलाई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के वक्तव्य के साथ शुरु हुई। उन्होंने लंबा-चौड़ा भाषण तो दिया, लेकिन पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के लेकर खड़े हुए सवाल अभी भी अनुत्तरित ही हैं।
सबसे पहला और सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि इस बर्बर आतंकी हमले को अंजाम देने वाले आतंकी अभी तक मारे क्यों नहीं गए या गिरफ्तार क्यों नहीं किए गए। लेकिन यह क्या महज संयोग था या प्रयोग कि लोकसभा में चर्चा शुरु होने के महज आधे घंटे पहले ही जम्मू-कश्मीर से खबर आई कि पहलगाम हमले को अंजाम देने वाले आतंकी ढेर कर दिए गए।
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लोकसभा में बहस के अगले दिन यानी 29 जुलाई को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बाकायदा अधिकारिक तौर पर ऐलान किया कि जिन तीन आतंकवादियों ने पहलगाम हमले को अंजाम दिया था वे मारे गए हैं। उन्होंने इसकी पूरी ‘क्रोनोलॉजी’ भी समझाई और यह भी बताया कि मारे गए आतंकवादी वहीं हैं जिन्होंने पहलगाम हमला किया था, उनकी शिनाख्त कैसे की गई। अलबत्ता यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि संसद में चर्चा शुरु होते ही कैसे अचानक यह आतंकी गोलियों का शिकार हो गए। यहां बताना जरूरी है कि संसद में चर्चा का समय निश्चित होते ही कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सरकार के सामने कुछ सवाल रखे थे, जिसमें कहा गया था कि जिन आतंकियों के पहलगाम हमले में शामिल होने की आशंका है, वही आतंकी पुंछ में दिसंबर 2023 में और गगनगीर और गुलमर्ग में अक्टूबर 2024 में हुए आतंकी हमलों में शामिल थे। ऐसे में आखिर इतने दिनों तक कैसे यह आतंकी बचे रहे, और संसद में चर्चा शुरु होते ही कैसे सुरक्षा बलों के निशाने पर आ गए?
पहलगाम हमले पर ही इसी महीने 14 जुलाई 2025 को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने सार्वजनिक तौर यह माना कि पहलगाम हमला निश्चित तौर पर सुरक्षा तंत्र की नाकामी थी। लेकिन इस सवाल का जवाब सरकार ने नहीं दिया कि इस नाकामी की जिम्मेदारी किसकी थी और इसके लिए क्या एक्शन लिया गया?
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पहलगाम हमले के बाद किए गए ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अनगिनत सवाल हैं जिनके जवाब अभी तक न तो रक्षा मंत्री और न ही गृह मंत्री ने दिए हैं। प्रधानमंत्री तो इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं, यहां तक कि चर्चा के दौरान वे सदन में नहीं हैं। इतना ही नहीं पहलगाम आतंकी हमले के बाद हुई सर्वदलीय बैठक में भी उन्होंने शिरकत करना मुनासिब नहीं समझा था। यहां यह बताना जरूरी है कि सर्वदलीय बैठक के बाद साफ तौर पर सामने आया था कि पहलगाम हमला सुरक्षा में हुई भारी चूक का नतीजा था। अधिकारिक तौर पर कहा गया था कि खुफिया एजेंसियां और सुरक्षा एजेंसियां इस हमले को रोकने में नाकाम साबित हुईं। इसकी जवाबदेही और जिम्मेदारी न तो तब तय की गई थी और न ही अब जबकि संसद इस मामले पर चर्चा कर रही है।
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कई किस्म के सवाल थे। मुख्यत: देश को इन सवालों के जवाब जानने का हक है:
ऑपरेशन सिंदूर का मुख्य उद्देश्य क्या था और क्या वह उद्देश्य पूरा हुआ और भारत ने क्या हासिल किया?
इस ऑपरेशन में भारत को क्या कोई नुकसान हुआ, अगर हुआ तो क्या हुआ?
Fm जैसा कि चर्चा रही कि इस ऑपरेशन के दौरान कुछ लड़ाकू विमान (खासतौर से राफेल) गिराए गए, क्या यह बात सही है?
इस ऑपरेशन और पहलगाम आतंकी हमले पर दुनिया के बाकी देशों का भारत के प्रति क्या रुख रहा?
इनमें से किसी भी सवाल का जवाब रक्षा मंत्री या सरकार की तरफ से किसी ने नहीं दिया।
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यहां उल्लेखनीय है कि 30 मई 2025 को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने ऑपरेशन सिंदूर के पहले दो दिनों में हुई रणनीतिक गलतियों पर महतवपूर्ण खुलासे किए । लेकिन रोचक रूप से उन्होंने ये खुलासे सिंगापुर में किए न कि भारत में। ऐसा क्यों?
इसके अलावा 29 जून 2025 को जकार्ता में भारतीय दूतावास में तैनात एक रक्षा अधिकारी, ग्रुप कैप्टेन शिव कुमार ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान राजनीतिक फैसलों ने ऑपरेशन में रुकावटें डालीं। उन्होंने भारत के लड़ाकू विमानों के संभावित नुकसान का भी संकेत दिया। लेकिन इसका जवाब देना तो दूर, रक्षा मंत्री ने तो यह कह दिया कि ‘किसी परीक्षा में यह नहीं देखा जाता कि पेन-पेंसिल टूट गई या गिर गई’ उसका नतीजा देखा जाता है।
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एक और महत्वपूर्ण सवाल था जिसका जिक्र इसी महीने उप-सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने किया था। उन्होंने कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने दरअसल चीन से हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर, दोनों ही स्तरों पर मुकाबला किया। यह एकदम नई किस्म का मामला था, लेकिन इस सवाल का जवाब देना तो दूर, इस बारे में एकदम सन्नाटा है।
रक्षा मंत्री और सरकार ने चर्चा के दौरान यह तो बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ही पाकिस्तानी डीजीएमओ ने फोन कर कहा कि ‘महाराजा बहुत हो गया, अब बंद कर दीजिए...’, और ऑपरेशन सिंदूर रोक दिया गया। सवाल है कि आखिर पाकिस्तान के कहने भर से भारत ने अपना ऑपरेशन क्यों रोक दिया और क्या इससे पहले भारत वह लक्ष्य हासिल कर चुका था जिसके लिए यह ऑपरेशन शुरु किया गया था।
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यहां रोचक है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जैसे ही यह बताया कि पाकिस्तानी डीजीएमओ के आग्रह पर ऑपरेशन सिंदूर रोका गया, तो लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हस्तक्षेप करते हुए वहीं सवाल उठाया कि आखिर क्यों? इस बात का रक्षा मंत्री के पास कोई जवाब नहीं था।
चर्चा के दौरान विदेश मंत्री ने लंबा चौड़ा भाषण दिया। वे तमाम किस्म की बातें गिनाते रहे, लेकिन एक बार भी यह नहीं बता पाए कि आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प क्यों लगातार कह रहे हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया। यहां याद दिलाना जरूरी है कि ऑपरेशन सिंदूर के सीजफायर का पहली बार ऐलान भारत सरकार या भारतीय सेना ने नहीं किया, इसका ऐलान डोनाल्ड ट्रम्प ने किया था। जब विपक्ष ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से इस बाबत स्पष्टीकरण मांगा तो लोकसभा में मौजूद गृहमंत्री अमित शाह तमतमा उठे। उन्होंने कहा कि लगता है विपक्ष को भारत के विदेश मंत्री से ज्यादा अमेरिका पर भरोसा है। लेकिन वे भी इस बात को नहीं कह पाए कि आखिर जिस समय वे संसद को यह बात कह रहे थे उसी वक्त 28वीं बार डोनाल्ड ट्रंप कहीं खड़े होकर फिर से बता रहे थे कि उन्होंने ट्रेड की धमकी देकर भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराया।
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इतना नहीं विदेश मंत्री यह भी नहीं बता पाए कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पांच लड़ाकू विमान गिराए जाने का दावा किया, वह विमान किसके थे, भारत के या पाकिस्तान के।
विदेश मंत्री के पास इसका भी कोई जवाब नहीं था कि विदेश नीति के मामले पर यह कैसा कदम था जब प्रधानमंत्री के निजी आग्रह पर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल दुनिया के अलग-अलग देशों में ऑपरेशन सिंदूर की बात कर रहा था, उसी समय अमेरिकी राष्ट्रपति पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिफ मुनीर की मेजबानी क्यों कर रहे थे?
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एक और अहम मुद्दा है, वह यह कि सरकारी तौर पर बार-बार कहा जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर खत्म नहीं हुआ है और जारी है, और इस नाते किसी चलते हुए ऑपरेशन की जानकारी देना मुनासिब नहीं है। तो सवाल यह है कि अगर ऑपरेशन सिंदूर जारी है तो सीजफायर के बाद अब तक इस ऑपरेशन के तहत भारत ने क्या हासिल किया है?
यहां सिर्फ यह बता देना काफी है कि इसी महीने कल यानी 30 जुलाई को करगिल युद्ध की समाप्ति के 26 साल पूरे होंगे। 30 जुलाई 1999 को कगरिल युद्ध (भारत-पाक युद्ध) खत्म होने के बाद तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने के सुब्रह्मण्यम की अध्यभता में चार सदस्यी समिति उस युद्ध की समीक्षा के लिए बनाई थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी और उस पर संसद में चर्चा भी हुई थी। के सुब्रह्मण्यम मौजूदा विदेश मंत्री एस जयशंकर के पिता थे। क्या ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार ने ऐसी कोई समिति बनाई है, अगर हां तो उसमें कौन-कौन हैं, और उसकी रिपोर्ट कब तक मिलने की संभावना है। इस मोर्चे पर भी सरकार खामोश है।
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