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राहत पैकेज पर कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरा, कहा- तीन दिन के ऐलान में किसान-मजदूर को एक फूटी कौड़ी नहीं मिली

कांग्रेस ने आर्थिक पैकेज की घोषणाओं पर करारा हमला करते हुए कहा कि मरहम लगाने की जगह मोदी सरकार किसान-मजदूर को घाव दे रही है और मदद की बजाए किसानों को कर्ज के जंजाल में धकेल रही है। खेती के नाम पर परोसे गए सब्जबागों में एक फूटी कौड़ी भी किसान को मदद के नाम पर नहीं मिला है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

कोरोना वायरस संकट और लॉकडाउन से देश और अर्थव्यवस्था पर पड़ी मार से उबरने के नाम पर पीएम मोदी द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज में से आज तीसरी किस्त के राहत के ऐलान के बाद कांग्रेस ने सरकार पर किसानों और मजदूरों के साथ छल करने का आरोप लगाया है। शुक्रवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आर्थिक पैकेज की तीसरी किस्त की घोषणा किए जाने के बाद कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने करारा हमला करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री की 3 दिन की ‘जुमला पैकेज घोषणाओं’ से एक बात साफ है कि मोदी सरकार ‘हैडलाईन मैनेजमेंट’ से ‘हैल्पलाईन मैनेजमेंट’ तक का सफर तय करने में फेल साबित हुई है।

कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि मोदी सरकार का 20 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज देशवासियों के लिए ‘राहत का पैकेज’ कम बल्कि ‘वूडू इकॉनॉमिक्स पैकेज’ अधिक साबित हुआ है। कांग्रेस नेता ने कहा कि ‘वादों के सब्जबाग’ से ‘मदद की हकीकत’ तक पहुंचने में सरकार ने देश को पूरी तरह से निराश किया है।

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रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कोरोना महामारी में सबसे बड़ा संकट ‘अन्नदाता किसान’ और ‘राष्ट्रनिर्माता मजदूर’ झेल रहे हैं। मरहम लगाने की बजाए मोदी सरकार किसान-मजदूरों को घाव दे रही है और मदद की बजाए सरकार किसानों को कर्ज के जंजाल में धकेल रही है। एक बात साफ है कि मोदी सरकार न किसान की पीड़ा समझती और न ही खेती की समस्या। इसीलिए खेती के नाम पर परोसे जा रहे सब्जबागों में एक फूटी कौड़ी भी मदद के नाम पर किसान को नहीं मिल पाई।

सुरजेवाला ने कहा कि रबी फसलों की कीमत न मिलने से किसान को 50,000 करोड़ रु. से अधिक का नुकसान हुआ है, लेकिन नुकसान भरपाई के नाम पर सरकार ने एक फूटी कौड़ी नहीं दी। उन्होंने कहा, “आज किसान को फसल की आकर्षक कीमत देने के बारे बड़ी-बड़ी बातें तो की गईं पर यह नहीं बताया कि मोदी सरकार एमएसपी पर ही फसल नहीं खरीद रही। सरकार कुल फसल उत्पादन का मुश्किल से 25-30 प्रतिशत ही एमएसपी पर खरीदती है, वो भी खासकर गेहूं और धान, क्योंकि इसे राशन प्रणाली के माध्यम से वितरित किया जाता है। 2019-20 में रबी और खरीफ फसल का कुल उत्पादन 26.9 करोड़ टन हुआ, पर सरकार द्वारा मात्र 7.19 करोड़ टन अनाज की खरीद की गई, यानि 26.72 प्रतिशत। बाकी बाजार में बिका। परंतु कोरोना संकट के चलते बाजार तो उपलब्ध ही नहीं, तो किसान क्या करेंगे?”

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उन्होंने कहा, “किसान को अकेले गेहूं में 21,000 करोड़ रु. का नुकसान होगा। इसी तरह चना, मसूर, सरसों जैसी रबी की प्रमुख फसलों में एमएसपी से भी कम कीमत मिलने से होने वाला नुकसान लगभग 21,000 करोड़ रु. है। यही हाल फल, सब्जी, फूल पैदा करने वाले किसान को हुए नुकसान का है। वो केले लगाने वाला किसान हो या फिर अंगूर या संतरे वाला किसान हो या टमाटर, आलू, प्याज पैदा करने वाला किसान हो या अन्य सब्जियां और फूल पैदा करने वाला। अकेले मार्च-अप्रैल माह में फल, सब्जी, फूल पैदा करने वाले किसान को 10,000 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है। पर 50,000 करोड़ रु. से अधिक के नुकसान की भरपाई के लिए एक फूटी कौड़ी सहायता के नाम पर नहीं दी गई।”

कांग्रेस नेता ने कहा कि आज देश में किसानों को दिया जा रहा एमएसपी फसल की लागत से भी कम है। परंतु राहत घोषणाओं में न तो इसका हल बताया गया और न ही सही कीमत देने का रास्ता। केवल नया कानून बनाने के जुमले से क्या किसान को फसल का सही मूल्य मिल पाएगा? सुरजेवाला ने कहा, “काश वित्तमंत्री रबी फसलों के लिए दी गई ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ की 2020-21 की रिपोर्ट पढ़ लेतीं, तो देश को झूठ बोलकर बरगलाने से बच जातीं। आज बाज़ार में किसानों को फ़सल के दाम नहीं मिल रहे और न ही सरकार एमएसपी पर खरीद कर रही है। तो ऐसे में एक और कानून से किसान को क्या मिलेगा।”

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किसान सम्मान निधि योजना पर सरकार को घेरते हुए सुरजेवाला ने कहा कि भारत में 14.64 किसान हैं (एग्रीकल्चर सेंसस-2016 के अनुसार)। इनमें से सरकार ने अभी तक 8.22 करोड़ किसानों को ही किसान सम्मान निधि के लिए चिन्हित किया है। यानि 6.42 करोड़ किसान तो चिन्हित ही नहीं हो पाए हैं। और मोदी सरकार कहती है कि 6,000 रु. प्रतिवर्ष किसानों को दिया जा रहा है। मगर सच्चाई यह है कि केंद्र सरकार ने खेती का लागत मूल्य बीते 5 वर्षों में लगभग 15,000 रु. प्रति हेक्टेयर बढ़ा दिया है। डीजल पर एक्साईज़ ड्यूटी 3.56 रु. प्रति लीटर से बढ़ाकर 31.83 रु. प्रति लीटर, सुपर खाद के 50 किलो के कट्टे की कीमत 260 रु. से बढ़ाकर 350 रु. कर दिया गया।

सुरजेवाला ने आगे कहा कि यही नहीं पहली बार मोदी सरकार में खेती पर जीएसटी लगाया गया। खाद पर 5 प्रतिशत जीएसटी, कीटनाशक दवाईयों पर 18 प्रतिशत जीएसटी, खेती के उपकरणों पर 12 प्रतिशत जीएसटी और ट्रैक्टर के टायरों तक पर 18 प्रतिशत जीएसटी। ऐसे में 15,000 रु. प्रति हेक्टेयर किसान से ले लिया और मात्र 6,000 रु. सालाना आधे किसानों को दिया गया।

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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि आज वित्तमंत्री ने फसल बीमा योजना के कसीदे तो पढ़े पर यह नहीं बताया कि असल में यह निजी कंपनी मुनाफा योजना है। उन्होंने कहा, “साल 2016-17 से 2019 तक देश के किसानों, केंद्र और राज्य सरकारों ने 99,046 करोड़ रुपये कुल बीमा प्रीमियम की राशि चुकाई, लेकिन किसानों को मुआवजा हासिल हुआ केवल, 72,952 करोड़ रु.। यानि बीमा कंपनियों ने 26,094 करोड़ रुपये मुनाफा कमाया।

सुरजेवाला ने मार्जि़नल किसान को दिए जाने वाले कर्ज की घोषणा की असलियत बताते हुए कहा कि वित्तमंत्री ने 3 करोड़ मार्जिनल किसानों को 4,00,000 करोड़ का फसली लोन उपलब्ध करवाने के बारे अपनी पीठ थपथपाई। पर यह बताना भूल गईं कि एग्रीकल्चर सेंसस 2016 के मुताबिक देश में 10 करोड़ मार्जिनल किसान हैं, जो एक हेक्टेयर से कम भूमि जोतते हैं। तो फिर 7 करोड़ मार्जिनल किसानों का क्या होगा? वित्तमंत्री ने ही लोकसभा में 1 जुलाई, 2019 को बताया था कि छोटे किसानों को साल 2018-19 में 6,26,087 करोड़ रु. का ऋण उपलब्ध कराया गया है। तो क्या 6 लाख 26 हजार करोड़ का कर्ज अब कोरोना महामारी में कम करके 4 लाख करोड़ किया जा रहा है?

कांग्रेस नेता ने कहा कि सच्चाई ये है कि एक फूटी कौड़ी भी न कल और न आज किसान और खेत मजदूर के हिस्से में आया, ना एक रुपया उसकी जेब में गया। ये जो ‘वूडू इकोनॉमिक पैकेज’ है वित्त मंत्री जी का, जो केवल एक ‘जुमला घोषणा पैकेज’ है, इससे ना किसान को राहत मिलेगा, ना खेत मजदूर को राहत मिलेगा। किसान और खेत मजदूर आज एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहां वो मोदी सरकार से निराश भी है और अपने आपको ठगा हुआ भी महसूस करता है।

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