
पश्चिम बंगाल में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में शामिल बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) का संगठन सोमवार को मार्च निकाला। बीएलओ कथित रूप से काम के अत्यधिक दबाव और SIR के बढ़ते दबाव से तनाव में आए BLO की हो रही मौत पर प्रदर्शन किया।
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बीएलओ अधिकार रक्षा समिति के सदस्यों ने बताया कि वे निर्वाचन आयोग को अपनी शिकायत सौंपेंगे। समिति ने आरोप लगाया कि एसआईआर की शुरुआत के बाद से पूरे राज्य में बूथ स्तरीय अधिकारी "अभूतपूर्व और अमानवीय दबाव" में काम कर रहे हैं।
समिति ने कहा कि वह उत्तर कोलकाता के कॉलेज चौक से शहर के मध्य भाग में स्थित मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के कार्यालय तक मार्च निकाली और निर्वाचन आयोग से तत्काल हस्तक्षेप और सुधारात्मक कदम उठाने की मांग की।
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समिति के एक सदस्य ने बताया कि हमें कम समय में कार्य पूरा करने के लिए कहा गया है, जबकि ऐसे कार्य आमतौर पर दो साल से अधिक समय लेते हैं। समिति के एक अन्य सदस्य ने चेतावनी दी कि यदि निर्वाचन आयोग समय-सीमा नहीं बढ़ाता है या बीएलओ द्वारा उठाई गई चिंताओं का समाधान नहीं करता है, तो विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा।
एक अन्य संगठन, बीएलओ ओइक्या मंच ने भी गणना प्रपत्रों के डिजिटलीकरण से संबंधित मुद्दों को उठाया है तथा अतिरिक्त सहायता स्टाफ की मांग की है।
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गुरुवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार को लिखे पत्र में कहा था कि एसआईआर 'बेहद चिंताजनक स्थिति' में पहुंच गया है और आरोप लगाया कि यह अभियान 'अनियोजित, खतरनाक' तरीके से चलाया जा रहा है, जिसने 'पहले दिन से ही व्यवस्था को पंगु बना दिया है।'
ममता बनर्जी ने आगे लिखा था कि जिस तरह से यह प्रक्रिया अधिकारियों और नागरिकों पर थोपी जा रही है, वह न केवल अनियोजित और अव्यवस्थित है, बल्कि खतरनाक भी है। बुनियादी तैयारी, पर्याप्त योजना या स्पष्ट संचार" के अभाव ने इस प्रक्रिया को अव्यवस्था में धकेल दिया है।
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TMC सांसद कल्याण बनर्जी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एसआईआर को लेकर बड़ा दावा किया है। उन्होंने लिखा कि चीफ इलेक्शन कमीशन द्वारा एसआईआर प्रक्रिया के संचालन ने बंगाल में आम नागरिकों और बीएलओ पर भारी दबाव डाल दिया है। अब तक 43 लोग सीधे प्रभावित हुए हैं। इनमें 20 लोगों ने आत्महत्या कर ली, 3 ने आत्महत्या की कोशिश की जबकि 6 गंभीर रूप से बीमार हो गए। कई अन्य डर और तनाव में अपनी जान गंवा बैठे। एयर-कंडीशनर वाले दफ्तर में बैठकर इस पीड़ा की वास्तविक गंभीरता को समझ पाना मुश्किल है। बीएलओ पर डाले जा रहे काम के अधिक बोझ को तभी समझा जा सकता है जब उन दूर-दराज गांवों में जाया जाए।
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