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भीमा-कोरगांवः माओवादी बता की गई गिरफ्तारियां दलित आंदोलन को बदनाम करने की साजिश

आंदोलनकारियों का आरोप है कि भीमा-कोरेगांव हिंसा में संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे का नाम आया था, लेकिन उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। इसके उलट आंदोलन के पीछे माओवादियों का हाथ बताने की सोची-समझी साजिश के तहत ये गिरफ्तारियां की गई हैं।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया  भीमा-कोरगांव में हिसा की तस्वीर (फाइल)

राजधानी दिल्ली, मुंबई और नागपुर से 6 सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और उन्हें माओवादी बताकर महाराष्ट्र में दलितों के भीमा-कोरेगांव आंदोलन से जोड़ने की पुलिस की कोशिशों का भारी विरोध हो रहा है। भीमा-कोरेगांव आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है कि यह पूरे दलित आंदोलन को बदनाम करने की साजिश है और गिरफ्तार किए गए 6 लोगों में से सिर्फ एक-सुधीर धावले (दलित एक्टिविस्ट और प्रकाशक) की इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका थी, लेकिन बाकी पांचों (दिल्ली की एक्टिविस्ट रोमा विल्सन, मुंबई के वकील सुरेंद्र गाडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष शोमा सेन और एक्टिविस्ट महेश राउत और राना जैकब) का कोई सीधा संपर्क इस आंदोलन से नहीं था। आंदोलनकारियों का आरोप है कि भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा में जिन दो लोगों (संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे) का नाम आया था, उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, इसके उलट आंदोलन के पीछे माओवादियों का हाथ बताने की सोची-समझी साजिश के तहत ये गिरफ्तारियां की गई हैं।

भीमा-कोरेगांव आंदोलन के कर्ताधर्ता जस्टिस कोलसे पाटिल ने नवजीवन को बताया, “केंद्र सरकार के इशारे पर महाराष्ट्र सरकार ये अन्याय कर रही है। इन पांचों एक्टिविस्ट के ऊपर भीमा-कोरेगांव से जुड़े होने और इस आंदोलन का माओवादियों से जुड़े होने का आरोप सौ फीसदी झूठा है। चूंकि इस आंदोलन में हमने सबको यह शपथ दिलाई थी कि हम जीवन भर बीजेपी को वोट नहीं देंगे, इसलिए सरकार ने यह बदले की कार्रवाई की है। भीमा कोरगांव में नफरत और हिंसा फैलाने वाले संभाजी भिडे और मिलिंग एकबोटे जैसे लोगों के खिलाफ पुख्ता सबूत और गवाही होने के बावजूद ठोस कार्रवाई नहीं की गई, लेकिन अब दलितों को गिरफ्तार कर उनके प्रतिरोध को खत्म करने की साजिश हो रही है। जबकि इस आंदोलन का बीज मेरे घर में पड़ा था और इसमें जस्टिस पीबी सावंत शामिल थे।”

गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर में भीमा-कोरेगांव में एलगार परिषद ने एतिहासिक संघर्ष के 200 साल पूरे होने पर बड़ा जमावड़ा किया था। इस दौरान दलितों के जमावड़े पर हुए हमले के बाद हिंसा फैली थी।

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इन गिरफ्तारियों पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए अंबेडकरवादी विचारक और प्रोफेसर आनंद तेलतुमडे ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार ये सब हिंदुत्वादी आतंकवादियों को बचाने के लिए कर रही है। इन गिरफ्तारियों की निंदा करनी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये एक अहम दलित आंदोलन और प्रतिरोध को माओवादी बताकर उसे कुचलने की तैयारी का हिस्सा है। ये गिरफ्तारियां 8 जनवरी 2018 को दर्ज की गई एक एफआईआर की आड़ में की गई है। मार्च 2018 में इसमें साजिश की धारा जोड़ी गई थी और अब उसमें गैर-कानूनी गतिविधयां निरोधक कानून (यूएपीए) की धारा को जोड़ दिया गया है। जबकि मांग यह थी कि 1 जनवरी को जो हिंसा हुई थी, उसके दोषियों की गिरफ्तारी हो, जिसमें सबसे पहला नाम संघ परिवार से जुड़े संभाजी भिड़े का आता है। इन लोगों को बचाने के लिए एलगार परिषद द्वारा किए गए भीमा-कोरेगांव आयोजन को प्रतिबंधित माओवादी संगठन से जोड़ा जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि भीमा-कोरेगांव शौर्य दिवस प्रेरणा अभियान 260 जनसंगठनों के एक गठबंधन के आह्वान पर आयोजित किया गया था, जिसके अध्यक्ष जस्टिस पीबी सावंत और जस्टिस कोलसे पाटिल थे। इसमें प्रकाश अंबेडकर ने भी नेतृत्व किया था।

कमेटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (सीपीडीआर) और पीयूसीएल ने इन गिरफ्तारियों की कड़ी निंदा की है। पूयीसीएल ने कहा है कि ये पांचों लोग अलग-अलग आंदोलनों-संगठनों में सक्रिय थे और सार्वजनिक तौर पर दलितों-वंचितों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ रहे थे। संगठन ने मांग की है कि इन सबी 6 लोगों को तत्काल रिहा किया जाए। गौरतलब है कि बुधवार की सुबह पुणे पुलिस ने दिल्ली, मुंबई और नागपुर से इन 6 सामाजिक कार्यकर्ताओं को भीमा-कोरगांव में हुई हिंसा और उसके माओवादी संबंध के सिलसिले में गिरफ्तार किया है।

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