बंबई हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तार शोधकर्ता रोना विल्सन और सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धवले को बुधवार को जमानत दे दी। न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और न्यायमूर्ति कमाल खता की खंडपीठ ने उनके लंबे समय से जेल में बंद रहने और मुकदमे की सुनवाई जल्द पूरी होने की संभावना नहीं होने के तथ्य पर गौर करते हुए दोनों को जमानत दे दी।
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बचाव पक्ष के वकील मिहिर देसाई और सुदीप पासबोला ने दलील दी कि आरोपी 2018 से जेल में बंद हैं और विशेष अदालत द्वारा अब तक आरोप भी तय नहीं किए गए हैं। उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह इस स्तर पर मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं कर रहा है। विल्सन और धवले को एक-एक लाख रुपये की जमानत प्रस्तुत करने और मुकदमे की सुनवाई के लिए विशेष एनआईए अदालत के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। पीठ ने कहा कि इस मामले में 300 से अधिक गवाह हैं, इसलिए निकट भविष्य में सुनवाई का पूरा होना संभव नहीं है।
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यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गर परिषद सम्मेलन में कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने से संबंधित है, जिसके कारण अगले दिन पुणे जिले के कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़क गई थी। पुणे पुलिस ने दावा किया था कि इस सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। बाद में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने जांच अपने हाथ में ले ली थी। इस मामले में गिरफ्तार किए गए 16 लोगों में से कई अब जमानत पर बाहर हैं।
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रोना विल्सन को जून 2018 में दिल्ली स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया गया था। जांच एजेंसियों ने उन्हें शहरी माओवादियों के शीर्ष नेताओं में से एक बताया है। सुधीर धवले सबसे पहले गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक थे, उन पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सक्रिय सदस्य होने का आरोप है।
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