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महाराष्ट्र की शिंदे सरकार को बड़ा झटका, आदिवासी इलाकों में विकास कार्यों पर लगाई गई रोक को बॉम्बे HC ने किया रद्द

पिछली सरकार ने महाराष्ट्र के विभिन्न दूर दराज के क्षेत्रों और विशेष रूप से आदिवासी जिलों के विकास के लिए बजटीय आवंटन को मंजूरी दी थी। जब नई सरकार आई, मुख्यमंत्री शिंदे के मौखिक निर्देश पर प्रमुख सचिव द्वारा इन सभी विकास कार्यों को स्थगित कर दिया गया था।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

महाराष्ट्र की शिंदे सरकार को बॉम्बे हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने शिंदे सरकार के उस स्थगन आदेश को रद्द कर दिया है, जिसके जरिए राज्य के पिछड़े आदिवासी क्षेत्रों में विकास कार्यों पर रोक लगा दी गई थी। 2020-21 में तत्कालीन विधानसभा द्वारा राज्य के आदिवासी जिलों में विकास कार्यों के लिए बजट आवंटित की गई थी।

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पूरा मामला क्या है?

संविधान के अनुच्छेद 202-207 के साथ महाराष्ट्र राज्य विधानमंडल नियमों के तहत उचित प्रक्रिया के बाद, पिछली महाविकास अघाड़ी सरकार ने महाराष्ट्र के विभिन्न दूर दराज के क्षेत्रों और विशेष रूप से आदिवासी जिलों के विकास के लिए बजटीय आवंटन को मंजूरी दी थी। जब नई सरकार आई, मुख्यमंत्री शिंदे के मौखिक निर्देश पर प्रमुख सचिव द्वारा इन सभी विकास कार्यों को स्थगित कर दिया गया। गौर करने वाली बात यह है कि जैसे-जैसे विभिन्न राजनीतिक समूह और विधायक सत्तारूढ़ सरकार में शामिल होते गए, मौजूदा सरकार द्वारा उनके निर्वाचन क्षेत्रों पर लगी रोक हटा दी गई। जो विधायक सत्तारूढ़ सरकार में शामिल नहीं हुए उनके क्षेत्र में यह रोक जारी रही।

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पूर्व मंत्री के.सी. पाडवी ने दायर की थी रिट याचिका

पूर्व जनजातीय मंत्री के.सी. पाडवी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी। याचिका में उन्होंने कहा था कि जिन विकास कार्यों के लिए प्रशासनिक, वित्तीय और तकनीकी मंजूरी दी गई थी और कुछ मामलों में निविदाएं भी जारी की गई थीं, उन्हें वर्तमान सरकार ने अचानक निलंबित कर दिया। पाडवी का निर्वाचन क्षेत्र 2006 में केंद्र सरकार द्वारा घोषित सबसे पिछड़े जिलों में से एक है। आदिवासी जिलों में बजट की मंजूरी इसलिए दी क्योंकि सड़क और पुल जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी की वजह से लोगों की मौत हो रही थी।

इसी तरह की याचिकाएं बॉम्बे उच्च न्यायालय की औरंगाबाद और नागपुर पीठों में दायर की गईं और वहां कुछ आदेश पारित किए गए। पडवी और उनके वकील नितिन गंगल ने तर्क दिया कि दोनों सदनों की मंजूरी के बाद बजटीय आवंटन की समीक्षा का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे विकास कार्यों को रोकने/रद्द करने से ग्रामीण और आदिवासी नागरिकों को परिवहन, चिकित्सा सुविधाओं, स्कूली शिक्षा और अन्य आपात स्थितियों समेत रोजमर्रा की गतिविधियों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। महाराष्ट्र के महाधिवक्ता समेत सभी पक्षों को सुनने के बाद, माननीय न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य द्वारा दिए गए सभी स्थगन आदेशों को रद्द कर दिया।

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