2019 के लोकसभा चुनाव का बिगुल फूंकते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित ओबीसी सम्मेलन में कहा, “कांग्रेस पार्टी ने देश की आबादी के 50 से 60 फीसदी जनसंख्या वाले ओबीसी वर्ग के लोगों के लिए राजनीति का दरवाजा खोल दिया है।
ओबीसी नेताओं के इस तरह के पहले सम्मेलन को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने आगे कहा, “ हम आपको पार्टी में थोड़ी सी जगह नहीं, बल्कि आपका पूरा हक आपको देना चाहते हैं। कांग्रेस पार्टी 70 सालों से ओबीसी वर्ग के साथ खड़ी है। हम आपको लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं में लाना चाहते हैं। आपको सत्ता की चाभी देना चाहते हैं।
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बीजेपी और कांग्रेस के काम करने के तरीके में फर्क अंतर का जिक्र करते हुए राहुल गांधी ने बीजेपी की तुलना एक ऐसे बस से की जो आरएसएस के द्वारा नियंत्रित है। राहुल ने कहा, “बीजेपी की बस को आरएसएस चलाती है, यह ओबीसी समुदाय को बांटना चाहती है.. जबकि हम आपको मुख्यधारा की राजनीति में लाना चाहते हैं और बस की चाभी आपके हाथों में देना चाहते हैं।”
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कई लघु कथाओं और उपमाओं से भरे 30 मिनट के अपने भाषण में राहुल गांधी ने कई बार पीएम मोदी पर हमला बोला। किसानों की बदहाली के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि मोदी सरकार 15-20 उद्योगपतियों के करोड़ों रुपये के कर्ज माफ कर देती है, लेकिन किसानों का कर्ज माफ नहीं होता है। राहुल ने कहा, कर्ज से परेशान किसान मारे गए, लेकिन मोदी सरकार ने कर्ज माफ नहीं किया। बहुत जल्द आरएसएस और बीजेपी को एहसास हो जाएगा कि वे अकेले देश के नहीं चला सकते हैं।
ओबीसी सम्मेलन में अपने भाषण से पहले राहुल गांधी ने महात्मा गांधी को पुष्पांजलि अर्जित की। इस सम्मलेन में सभी राज्यों के ओबीसी नेताओं और विशेष प्रतिनिधियों ने भाग लिया। ओबीसी आबादी के बड़े हिस्से वाले 4 बड़े राज्यों में चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले आयोजित यह सम्मेलन कांग्रेस पार्टी द्वारा अपने खिसक चुके जनाधार को वापस हासिल करना के प्रय़ास के तौर पर देखा जा रहा है।
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अनुमानित तौर पर देश की आबादी में ओबीसी 55 फीसदी से अधिक हैं। 1931 में अंग्रेजों द्वारा कराई गई अंतिम जाति आधारित जनगणना के अनुसार, उस समय देश की जनसंख्या में 51 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी का था। परंपरागत रूप से कांग्रेस का जनाधार माना जाने वाला ओबीसी समाज मंडल की राजनीति के उदय के बाद सभी बड़े राज्यों में पार्टी से दूर हो गया। विशेषतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में, ओबीसी राजनीति के उभार ने कांग्रेस को कमजोर कर दिया।
राहुल गांधी से पहले सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत ने कहा कि संभव है हमारी पार्टी ने अतीत में कुछ गलतियां की हों, लेकिन राहुल जी के नेतृत्व में हम इसे ठीक करेंगे।
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राजनीतिक रूप से बेहद अहम माने जाने वाले राज्य यूपी में, जहां कांग्रेस जिस समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन बनाती दिख रही है, वहां उसी पार्टी ने ओबीसी राजनीति से बहुत कुछ हासिल किया है। उसी तरह से बिहार में आरजेडी को ओबीसी राजनीति का फायदा मिला। 65 प्रतिशत ओबीसी आबादी वाले तनिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में डीएमके और एआईएडीएमके जैसी पार्टियां इसी ओबीसी राजनीति पर सवार होकर सत्ता में आईं। केरल में ओबीसी आबादी लगभग 69 प्रतिशत है और इस समुदाय का पूरा समर्थन वाम दलों को मिलता रहा है।
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विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस पार्टी एक तरफ अपने पुराने राजनीतिक आधार पर फिर से दावा ठोंक रही है, तो वहीं दूसरी तरफ ओबीसी समुदाय को अपने मूल जनाधार के तौर पर खड़ा करने की कोशिश कर रही है।
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जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व की मांग करते हुए कई ओबीसी नेताओं ने आरक्षण नीति लागू करने के लिए पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा उठाए गए कदमों को याद किया। हालांकि, 80 के दशक क आखिर में वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया था।
कुछ वक्ताओं ने मोदी सरकार से जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों को जारी करने की मांग की। कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने कहा कि आरक्षण को अक्सर प्रतिभा को कुचलने के साधन के तौर पर बताया जाता है लेकिन यह एक झूठ है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि इस समय देश भर के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 436 महाप्रबंधक काम कर रहे हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ 6 अधिकारी ही ओबीसी वर्ग से आते हैं।
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