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कोरोना लॉकडाउन: मजदूरों और कामगारों के सामने रोजी-रोटी का संकट, दवाइयों तक के पैसे नहीं, मालिकों ने मोड़ा मुंह

लॉकडाउन के चलते मीरापुर के नमक मंडी में रहने वाली गुड्डी और उसके परिवार वालों का भी दर्द छलका है। उन्होंने कहा कि पता नहीं यह परेशानी कब खत्म होगी। आटा और चावल तो राशन डीलर से मिल गया था। मगर सिर्फ रूखी रोटी और चावल तो नहीं खा सकते। सब्जी खरीदने के पैसे तक नहीं है।

फोटो: आस मोहम्मद कैफ
फोटो: आस मोहम्मद कैफ 

कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए सरकार ने लॉकडाउन 3.0 लागू किया हुआ है। इस लॉकडाउन की अवधि 17 मई को पूरी होगी। लॉकडाउन वन और टू की तुलना में लॉकडाउन तीन में कुछ रियायत भी दी गई है, लेकिन लोगों को अब भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। मुजफ्फरनगर के जानसठ में भी दिव्यांग के साथ ऐसा ही कुछ देखने को मिला। यूं तो अब उन्हें दिव्यांग कहा जाता है लेकिन विकलांगता समाज और सिस्टम में भी आ गई है। लॉकडाउन में बैंक से पैसे लेने पहुंचे दोनों पैर गंवा चुके युवक को घंटों लाइन में लगना कम से कम यह ही दर्शाता है। जानसठ के गांव जड़वड कटिया के कालूराम अपने दोनों पैर दुर्घटना में गंवा चुके हैं। अपने खाते से पैसे निकालने पहुंचे युवक को मीरापुर के स्टेट बैंक की शाखा में घंटों लाइन में लगना पड़ा।

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मंगलवार को कालूराम बैंक से पैसे निकालने के लिए पहुंचा था। लेकिन घंटों लाइन में खड़े रहने के बावजूद अव्यवस्था से तंग आकर कालूराम ने लाइन से निकलकर किनारे जाकर बैठ गया। इसके बाद उन्होंने अपने साथी को बुलाया और अपनी जगह पर उसे खड़ा किया, तब जाकर वो अपने खाते से पैसा निकाल पाया। कालूराम के मुताबिक, हालात को देखकर बहुत बुरा लगा। उन्होंने बताया कि बैंक के बाहर लंबी-लंबी लाइन लगी हुई थी इनमें ज्यादातर वो लोग थे जो सरकार द्वारा दिए गए 500 या 1000 रुपए लेने आये थे। इससे बहुत अधिक अव्यवस्था हो गई है और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गई।

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फोटो: आस मोहम्मद कैफ

लॉकडाउन के चलते मीरापुर के नमक मंडी में रहने वाली गुड्डी और उसके परिवार वालों का भी दर्द छलका है। गुड्डी अपने बेटे विनीत के साथ रहती है। पिछले साल कैंसर के चलते उनके पति की मौत हो गई थी। तब से वो बीमार है और अधिकतर समय चारपाई पर रहती है। उनका बेटा विनीत बीए करने के बाद भी एक मिठाई की दुकान में काम करता है। गुड्डी का कहना है, “सरकार ने कहा है कि दुकानदारों को अपने कामगारों को इस मुसीबत में भी तनख्वाह देनी है मगर इसे मानने के लिए कोई तैयार नहीं है। पता नहीं यह परेशानी कब खत्म होगी। अब हम तंग हो चुके हैं। आटा और चावल तो राशन डीलर से मिल गया था। मगर सिर्फ रूखी रोटी और चावल तो नहीं खा सकते हैं। सब्जी खरीदने के पैसे नहीं है।”

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उन्होंने आगे कहा कि मेरे पास इतने भी पैसे नहीं है कि मैं अपने लिए दवा खरीदकर लाऊं। गुड्डी बताती है लोग कह रहे हैं कि यह लॉकडाऊन लंबा चलेगा। मुझे यह सब नही पता मगर यह तो मुझे 'डायन' लगता है। उन्होंने कहा कि अगर खाना नहीं मिलेगा तो मेरी उम्र के लोगों के लिए जिंदा रहना मुश्किल हो जाएगा। सरकार को जल्द से जल्द कुछ करना चाहिए।

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फोटो: आस मोहम्मद कैफ

कामगारों का फोन नहीं उठा रहा उसका मालिक!

दूसरी ओर बिजनौर-मुजफ्फरनगर बाईपास पर सबसे भव्य रेस्टोरेंट के 18 वेटर और कर्मचारी अपने मालिक को एक महीने से फ़ोन लगा रहे हैं। मालिक कॉल नहीं उठा रहा है। 25 मार्च से लॉकडाउन के चलते सब बंद है। यहां काम करने वाले तैयब किडनी में इंफेक्शन की वज़ह जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। दूसरा मजदूर ‘मोटा ‘(रेस्टोरेंट में उसका असली नाम कोई नही जानता) के घर में खाना बनाने के लिए सामान नहीं। वहीं जानमोहम्मद अपनी गर्भवती पत्नी की दवाई नहीं ला पा रहा है।

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जानमोहम्मद का कहना है, “मोदी जी ने कहा था कि इन हालात में कोई भी मालिक अपने नौकरों की तनख्वाह न काटे। हमारी मालिक ने यह नहीं सुनी है। वो पिछले एक महीने से किसी से बात नहीं कर रहा है। बहुत से वेटर पहाड़ी इलाके के है। वो भी यही फंस गए हैं। हमारी पिछले महीने की तनख्वाह भी नहीं मिली है। उन्होंने अपनी बेबसी का जिक्र करते हुए कहा कि हमारे सामने रोजी-रोटी के साथ पत्नी के लिए दवाईयां लाने का भी संकट खड़ा है।

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