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भारत में करीब 32 करोड़ छात्रों की शिक्षा अधर में, जब पढ़ेगा ही नहीं तो बढ़ेगा कैसे इंडिया!

कुछ निजी स्कूल जरूर ऑनलाइन क्लासेज के जरिये पढ़ा रहे हैं, लेकिन सर्वे के अनुसार हर पांच में से दो माता-पिता के पास इसके लिए जरूरी सामान ही मौजूद नहीं है। देश की एक बड़ी आबादी के पास लैपटॉप तो दूर स्मार्टफोन तक नहीं है और अच्छी स्पीड के इंटरनेट का भी अभाव है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

यह दौर हमारी जिंदगी का शायद सबसे अटपटा और उथलपथल भरा है और सबसे ज्यादा उलझन वाला भी है। लोगों की आज की सबसे बड़ी चिंता यही है कि आगे जिंदगी कैसे चलेगी? कोरोना वायरस महामारी के दौरान जहां एक ओर लोग अपनी जिंदगी पटरी पर लाने की योजना बना रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर उन्हें चिंता सता रही है कि अगर स्थिति पूरी तरह से ठीक नहीं हुई, तो आने वाले दिनों में वे अपने बच्चों को स्कूल-कॉलेज कैसे भेजेंगे? वैसे, यह चिंता वाकई वाजिब भी है। कोरोना वायरस का भारत की शिक्षा पर गंभीर असर पड़ा है।

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दरअसल, यूनेस्को ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार कोरोना महामारी से भारत में लगभग 32 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है। वही बात हो गई जब पढ़ेगा नहीं तो कैसे बढ़ेगा इंडिया? देश में 85 प्रतिशत माता-पिता को अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता होने लगी है। उन्हें लगता है कि कोरोना के चक्कर में उनके बच्चों का भविष्य दांव पर है, जिंदगी की दौड़ में कहीं पिछड़ न जाएं और कहीं उनका पढ़ाई का साल खराब न हो जाए।

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हालांकि, सरकार ऑनलाइन शिक्षा का दावा जरूर कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। कुछ निजी स्कूल जरूर मीटिंग एप्स जैसे- जूम, माइक्रोसोफ्ट टीम आदि के जरिये पढ़ा रहे हैं। लेकिन एक सर्वे के अनुसार हर पांच में से दो माता-पिता के पास बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं के सेटअप के लिए जरूरी सामान ही मौजूद नहीं है। देश की एक बड़ी आबादी के पास लैपटॉप तो दूर स्मार्टफोन तक नहीं है और निर्बाध और अच्छी स्पीड के इंटरनेट का भी अभाव है।

इसके अलावा सिर्फ इंटरनेट की सुविधा या मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट की समस्या नहीं है, बल्कि समस्या ये भी है कि इस समय अधिकतर लोग भी घर से बैठकर ऑफिस का काम कर रहे हैं। ऐसे में उनके पास एक ही लैपटॉप या कम्प्यूटर है। ऐसे में दोनों के इस्तेमाल से साफ है कि या तो उनके बच्चे की पढ़ाई का नुकसान होगा या उनके काम का।

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सरकारों को भी इस चिंता के बारे में पता है, इसलिए केंद्रीय बोर्ड सीबीएसई और आईसीएसई ने बची हुई परीक्षाएं रद्द कर दी हैं। यह ऐलान भी आ गया है कि कॉलेजों और पेशेवर कोर्सेज में भी फाइनल परीक्षाएं नहीं होंगीं। लेकिन उन बच्चों की समस्या अभी तक टली नहीं है, जो करियर के अहम पायदान पर खड़े हैं। जिन्हें उसी स्कूल या कॉलेज में अगली क्लास तक का नहीं, बल्कि जिंदगी के अगले मुकाम तक का सफर तय करना है। जो इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, मैनेजमेंट या किसी प्रतियोगिता की तैयारी में जुटे हैं और जो देश-दुनिया के नामी-गिरामी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश करने को जद्दोजहद में लगे हैं।

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भारत में स्कूल जाने वाले करीब 26 करोड़ छात्र हैं। जाहिर है, ऑनलाइन कक्षाओं के जरिए शहरों में स्कूलों के नए सत्र शुरू हो गए हैं, जबकि आर्थिक रूप से कमजोर और गांव-देहातों में रहने वाले छात्र इस मामले में कहीं पीछे छूट रहे हैं। कोई नहीं जानता कि देश कोरोना के खतरे से निकलकर कब सामान्य जि़ंदगी में आएगा, ऐसे में अब सरकार के सामने ये चुनौती है कि वो स्कूल के इन छात्रों को कैसे साथ लेकर चलेगी। क्योंकि जब पढ़ेगा इंडिया, तब ही आगे बढ़ेगा इंडिया।

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