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राफेल विमानों की कीमत पर रक्षा मंत्रालय के वरिष्‍ठ अधिकारी ने जताई थी आपत्ति, सीएजी के पास है सबूत!

रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दर्ज कराई गई आपत्तियों में से एक यह थी कि 36 नए राफेल विमानों की कीमत 126 विमानों की प्रस्तावित खरीद के सौदे से अधिक थी। इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि इस आपत्ति के बाद सौदे को मंजूरी देने में देरी भी हुई थी।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 36 राफेल की कीमत पर रक्षा मंत्रालय के वरिष्‍ठ अधिकारी ने जताई थी आपत्ति

राफेल सौदे में घोटाले की बात से भले ही मोदी सरकार इनकार कर रही हो, लेकिन हर रोज ऐसे सबूत सामने आ रहे हैं, जो उसके खिलाफ हैं। राफेल सौदे को लेकर एक और सबूत सामने आया है जो डील में की गई अनियमितताओं की ओर इशारा कर रहा है।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस के रक्षा मंत्री के बीच सितंबर, 2016 में हस्ताक्षर से करीब एक महीना पहले रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने राफेल विमानों की मानक कीमत को लेकर आपत्ति जताई थी। इस बारे में अधिकारी ने कैबिनेट को एक नोट भी लिखा था। यह अधिकारी उस वक्त रक्षा मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी और एक्यूशन मैनेजर (एयर) और कांट्रैक्ट निगोशिएशन कमेटी में शामिल थे।

रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दर्ज कराए गए प्रमुख आपत्तियों में से एक यह थी कि 36 नए राफेल की कीमत पिछले 126 प्रस्तावित राफेल विमान की मानक कीमत से अधिक थी। खबरों में कहा गया है कि अधिकारी द्वारा आपत्ति दर्ज कराने के बाद सौदे को मंजूरी देने में देरी भी हुई थी। कहा जा रहा है कि सौदे को उस वक्त मंजूरी दी गई जब रक्षा मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी ने आपत्तियों को खारिज कर दिया।

इंडियन एक्सप्रेस की खबर में कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारी द्वारा राफेल सौदे को लेकर दर्ज कराई गई आपत्ति फिलहाल सीएजी के पास है। राफेल सौदे पर आपत्ति जताने के बाद इसकी जांच की जा रही है। बताया जा रहा है कि सीएजी राफेल सौदे से जुड़ी रिपोर्ट संसद के शीतकालीन सत्र में पेश कर सकता है, जिसमें राफेल सौदे को लेकर दर्ज की गई आपत्ति से जुड़ी विस्तृत जानकारी हो सकती है।

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बता दें कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर कांग्रेस लगातार मोदी सरकार पर हमलावर रुख अपनाए हुए है। कांग्रेस का आरोप है कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद की घोषणा के फौरन बाद सरकारी कंपनी एचएएल को इस सबसे बड़े ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ से दरकिनार कर निजी क्षेत्र की एक कंपनी को रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को दे दिया गया, जिसके पास लड़ाकू विमानों के निर्माण या रखरखाव का कोई पूर्व अनुभव नहीं है। इतना ही नहीं फ्रांस में 10 अप्रैल, 2015 को प्रधानमंत्री द्वारा इस सौदे को अंतिम रूप दिए जाने से महज 12 दिन पहले ही रिलायंस डिफेंस लिमिटेड की स्थापना की गई थी।

कांग्रेस का यह भी आरोप है कि यूपीए सरकार के दौरान हुए सौदे के मुताबिक एक विमान की कीमत काफी कम थी, लेकिन मोदी सरकार ने पुराने सौदे को रद्द कर जो नया सौदा किया उसमें राफेल विमानों की कीमत तीन गुना तक बढ़ा दी गई।

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