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दिल्ली हाई कोर्ट ने जंगलों में अतिक्रमण को लेकर नाराजगी जताई, कहा- जंगल दिल्ली के "फेफड़े" हैं

दो करोड़ की आबादी वाला दिल्ली शहर साल भर चरम मौसम का सामना करता है। चिलचिलाती गर्मी से लेकर मूसलाधार बारिश और सर्दी शुरू होने से पहले शहर के लोग जहरीली धुंध का सामना करते हैं।

फोटो: DW
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दिल्ली हाई कोर्ट ने जंगलों में अतिक्रमण को लेकर नाराजगी जताई है। उसने कहा कि जंगल "दिल्ली के हरित फेफड़े" हैं, उन्हें बहाल किया जाना चाहिए। धार्मिक संरचनाओं के नाम पर अतिक्रमण समेत अनधिकृत निर्माणों पर चिंता जाहिर करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि जंगल "दिल्ली के हरित फेफड़े" हैं, प्रदूषण से एकमात्र रक्षक हैं और इसलिए उन्हें "बहाल" किया जाना चाहिए।

हाई कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि शहर में पर्याप्त धार्मिक स्थल हैं और जमीन को जंगलों को बहाल करने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए।

हाई कोर्ट: प्रदूषण से मर रहे लोग

शहर में बढ़ते प्रदूषण को लेकर अदालत ने कहा कि लोग राष्ट्रीय राजधानी में सांस नहीं ले पा रहे हैं और प्रदूषण के कारण मर रहे हैं और किसी को भी वन क्षेत्रों में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती और उन्हें बेदखल किया जाना चाहिए।

एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और मनप्रीत सिंह अरोड़ा की बेंच ने कहा, "जंगलों को बहाल करने दीजिए। आज आपको अधिक जंगल कहां मिलेंगे? इसलिए मौजूदा जंगलों को संरक्षित किया जाना चाहिए। यह दिल्ली के हरे फेफड़े हैं. दिल रखें, इंसान बनें। समझें कि लोग प्रदूषण के कारण मर रहे हैं. यह हमारा एकमात्र रक्षक है. यह हमारा आखिरी गढ़ है।"

क्या है मामला

हाई कोर्ट हिमांशु दामले और एक अन्य व्यक्ति द्वारा दायर चाचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें मांग की गई थी कि प्राचीन स्मारकों, खासकर महरौली में आशिक अल्लाह दरगाह को विध्वंस से बचाया जाए।

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि दरगाह 1317 ईस्वी की है और यह देश की सबसे पुरानी और सबसे महत्वपूर्ण सल्तनत युग की संरचनाओं में से एक है और इसमें 13वीं शताब्दी के सूफी संत बाबा फरीद की चिल्लागाह भी शामिल है।

हालांकि, दरगाह की तस्वीरों को देखते हुए बेंच ने कहा कि ये वहां की संरचना पर लगाई गई नई टाइलें हैं और इसे एक दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया गया है जहां अधिक से अधिक लोग आते हैं।

इसके जवाब में याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि सैकड़ों वर्षों से अगर किसी चीज का इस्तेमाल पूजा स्थल के रूप में किया जाता रहा है तो जाहिर तौर पर उसमें बदलाव होते रहते हैं।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने दावा किया कि वह 800 साल पुराने स्थलों के बारे में बात कर रहे हैं और वे इन जंगलों से भी पुराने हैं। हालांकि, बेंच इससे सहमत नहीं हुई और कहा कि यह बहुत अनुचित है और इस सब को एक तरह का "नारा" दिया जा रहा है।

बेंच ने कहा, "हम वन क्षेत्र को साफ करवा रहे हैं ताकि लोग दिल्ली में सांस ले सकें। यहां बहुत प्रदूषण है। इनमें से कुछ से स्पष्ट है कि ये नई संरचनाएं हैं। यह सब अतिक्रमण है। ये टाइलें 10 साल पहले भी दिल्ली में थीं।" इसमें कहा गया है कि निश्चित रूप से इस प्रकार की टाइलें 16वीं शताब्दी में नहीं थीं।

अदालत ने कहा, "अगर कुछ पवित्र पाया जाता है तो हम उन्हें इसे संरक्षित करने का निर्देश देंगे, लेकिन किसी को भी वहां रहने की इजाजत नहीं दी जाएगी। हर कोई बाहर चला जाएगा नहीं तो पूरा जंगल अशांत हो जाएगा।"

हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में इस ओर भी ध्यान दिलाया कि कैसे अतिक्रमण होता है और समय के साथ उसका विस्तार किया जाता है।

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शहर में बढ़ता प्रदूषण ले रहा जान

दो करोड़ की आबादी वाला दिल्ली शहर साल भर चरम मौसम का सामना करता है। चिलचिलाती गर्मी से लेकर मूसलाधार बारिश और सर्दी शुरू होने से पहले शहर के लोग जहरीली धुंध का सामना करते हैं।

हवा की गुणवत्ता को 0 से 500 के स्केल पर नापा जाता है. 0 से 50 के बीच एयर क्वॉलिटी को अच्छा माना जाता है, जबकि 300 से ऊपर यह बेहद खतरनाक होती है। दिल्ली में हर साल एक्यूआई 300 से ऊपर दर्ज किया जाता है। इससे शहर के लोगों में तरह-तरह की बीमारियां होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वायु प्रदूषण से हर साल दुनिया भर में 42 लाख लोगों की मौत हो जाती है।

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