हालात

आखिर वे दिल्ली ले आए गुजरात मॉडल: शाहीन बाग से होते हुए समझें पूरी क्रोनोलॉजी

नीचे दी गई तस्वीर उस बैठक की है जो दिल्ली में जारी हिंसा के दौरान हालात को काबू में करने के लिए बुलाई गई थी। इस तस्वीर में दिख रहे गृहमंत्री अमित शाह, दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के चेहरों के मुस्कान साफ करती है कि इन्हें दिल्ली की कितनी चिंता है।

फोटो सोशल मीडिया
फोटो सोशल मीडिया 

नीचे दी गई तस्वीर दिल्ली की है। जी हां राजधानी दिल्ली की, जहां तीन दिन तक उपद्रवियों ने बेरोकटोक हिंसा का तांडव मचाया। अगर आपको दिल्ली की इन घटनाओं से गुजरात 2002 की याद आ रही है, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं।

Published: undefined

दिल्ली हिंसा की क्रोनोलॉजी समझने के लिए शाहीन बाग जाना जरूरी है। सीएए, एनपीआर और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में शुरू हुआ धरना धीरे-धीरे देश भर में फैल गया। कहा भी जाना लगा कि देश भर में हर जगह शाहीन बाग उठ खड़ा हुआ है। इससे सरकार की घिग्घी बंधी हुई थी क्योंकि वह इन्हें हटा नहीं पा रही थी जबकि प्रदर्शनकारी सीएए की वापसी तक के लिए अड़े हुए थे। दिल्ली विधानसभा का पूरा चुनाव इसी मुद्दे पर लड़ा गया और सांप्रदायिक जहर फैलाने की हरसंभव कोशिश की गई, लेकिन बीजेपी को सफलता हाथ नहीं लगी।

अब आगे का घटनाक्रमः

22-23 फरवरी की रात

सीलमपुर मेट्रो स्टेशन के नीचे सड़क पर सीएए, एनपीआर और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ महिलाओं का धरना आरंभ होता है। 23 फरवरी को भीम आर्मी ने इन सबके साथ दलितों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ भारत बंद की घोषणा की थी और यह धरना उसी क्रम में किया गया था।

23 फरवरी की शाम

बीजेपी नेता कपिल मिश्रा उस इलाके में पहुंचते हैं। उनके साथ सीएए-समर्थक भीड़ है। वहां पुलिस के लोग भी हैं। कपिल मिश्रा कहते हैं कि वे लोग धरना दे रहे लोगों को वहां से हटाने के लिए पुलिस को दो दिनों का समय देते हैं और उसके बाद वे लोग पुलिस की भी नहीं सुनेंगे। यह इलाका मिश्रित आबादी वाला है और इससे वहां उत्तेजना फैलने लगती है। कपिल मिश्रा दो दिनों का अल्टीमेटम इसलिए देते हैं क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दो दिवसीय भारत दौरे पर आने वाले हैं। मिश्रा के बगल में सीलमपुर में डीसीपी (उत्तर-पूर्वी) वेद प्रकाश सूर्या भी हैं। वह चुपचाप हैं। बाद में, हिंसा की छिटपुट घटनाएं इलाके में हो रही हैं, पर पुलिस एक तरह से चुपचाप ही है। मिश्रा के भाषण के बाद ही स्पेशल ब्रांच ने रिपोर्ट दे दी थी कि हिंसा व्यापक तौर पर फैल सकती है लेकिन आकाओं ने उस पर कान नहीं दिए।

24 फरवरी

हिंसा इस तरह होने लगती है, मानो सब कुछ प्लांड है यानी योजित और इच्छित भी। सीएए-समर्थक ‘दिल्ली पुलिस जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे हैं। पुलिस की एक टीम मौजूद है, फिर भी जाफराबाद, मौजपुर, करावलनगर, शाहदरा में सीएए समर्थक और विरोधी एक-दूसरे पर पत्थर बरसा रहे हैं। कई दुकानों में आग लगा दी गई, गाड़ियां जलाई जाती रहीं, घरों पर इस तरह पत्थर बरसते रहे कि लोग बाहर न निकल पाएं, सड़कों पर निकले लोगों को यहां-वहां पीटा जाता रहा। मौजपुर मेट्रो स्टेशन पर लोगों से नाम पूछकर, उनके आई कार्ड देखकर भी पीटा गया।

Published: undefined

यह फोटो रॉयटर्स के फोटोग्राफिर दानिश सिद्दीकी ने खींची है, जो सोशल मीडिया पर वायरल हुई है

चांदबाग इलाके में एक व्यक्ति को अकेला पाकर दूसरे समुदाय के लोगों ने घेरकर लाठियों-डंडों से पीटा। वह बुरी तरह से घायल है। यह फोटो वायरल रही। एक अन्य फोटो भी वायरल रही जिसमें जाफराबाद में एक व्यक्ति पिस्टल लेकर फायरिंग करता रहा। उसने हेड कांस्टेबल दीपक दहिया को भी सामने से धमकाया। बाद में उसे गिरफ्तार किया गया।

Published: undefined

यह तस्वीर भी दिल्ली दंगों की है, जिसमें लाल टी-शर्ट पहने युवक पुलिस वाले पर पिस्तौल ताने है। बाद में इसकी पहचान शाहरुख के रूप में हुई

ये सब दिन भर होता रहा। पुलिस की भूमिका अधिकतर मूकदर्शक की रही। सुबह 9 बजे ही हालत यह हो गई कि पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। लेकिन यह भी हुआ कि कई जगह पर पुलिस ने घायलों को अस्पताल ले जाने की जगह उन्हें उनके हाल पर ही छोड़ दिया। स्थिति पर नियंत्रण के लिए अफसर पुलिस मुख्यालय में बैठकें करते रहे। इसी दौरान सूचना मिली कि उपद्रवियों के हमले में हेड कांस्टेबल रतनलाल की मौत हो गई, फिर भी अफसरों ने उपद्रवियों से निबटने के लिए कड़ी कार्रवाई करने का स्पष्ट आदेश देने पर कोई निर्णय नहीं लिया।

जहां पुलिस एक्टिव हुई, वहां हाल दूसरा था। जाफराबाद में पुलिस सीएए विरोधियों को खदेड़ रही थी, तो उनके ठीक पीछे सीएए समर्थकों की भीड़ थी। वह दुकानों में आग लगा रही थी। दोनों पक्षों के उपद्रवी गोली भी चलाते रहे।

25 फरवरी

ट्रंप दिल्ली में हैं, फिर भी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया में दिल्ली की हिंसा की खबरें छाई हुई हैं। इस वजह से पूरा सरकारी अमला परेशान है। फिर भी हिंसा पर नियंत्रण के उपायों के कोई चिह्न नहीं है बल्कि हिंसा बढ़ती ही जा रही है। उसी के अनुरूप पुलिस फोर्स भी बढ़ रही है लेकिन राजधानी दिल्ली के इस छोटे-से इलाके में स्थिति कंट्रोल नहीं हो पा रही।

स्थिति यह है कि सीएए समर्थकों और विरोधियों की टोलियां धार्मिक नारे लगाते हुए एक-दूसरे को चुनौती तक दे रही हैं। यह तक सुनाई दे रहा है कि आमने-सामने की लड़ाई है... बाहर आओ... कब तक घरों के अंदर रहोगे। घरों की छतों से भी पत्थर फेंके जा रहे, गोलियां चलाई जा रहीं। दोनों पक्षों के बाइकों पर सवार लोग नारे लगा रहे।

पुलिस वालों की मौजूदगी की वजह से सीएए-समर्थक आज ज्यादा आक्रामक हैं। वजह समझी जा सकती है। शाम 5 बजे के बाद भजनपुरा में फ्लैग मार्च का नेतृत्व करने आए विशेष पुलिस आयुक्त (कानून-व्यवस्था) सतीश गोलचा ने मीडिया के सामने यह कहने से संकोच नहीं किया कि, “(चांद बाग के) लोग आक्रामक हैं। इसे मैंने कल रात खुद ही देखा। दूसरी तरफ (भजनपुरा) के लोगों ने आत्मरक्षार्थ हथियार ले रखे हैं। मैं जानता हूं, जब मैं बात करूंगा, तो वे मुझ पर हमला नहीं करेंगे लेकिन दूसरी तरफ के लोगों के बारे में मैं ऐसा नहीं कह सकता। लेकिन मैं यह नहीं कह रहा कि एक पक्ष गलत है।“

Published: undefined

गोलचा की टीम जब भजनपुरा में फ्लैग मार्च कर रही थी, तो उन लोगों ने देखा कि कुछ महिलाएं डंडे लेकर खड़ी हैं। गोलचा की टीम उस ओर बढ़ी, तो महिलाओं ने कहा कि हम लोग तुम्हारा समर्थन कर रहे हैं। इस पर वे यह कहते हुए बढ़ गए, “ठीक है”। चांदबाग की तरफ पहुंचने पर दंगारोधी रैपिड एक्शन फोर्स की टीम ने कई राउंड आंसू गैस के गोले छोड़े। फ्लैग मार्च कर रही टीम थोड़ी देर बाद वापस हो गई। वैसे, गुरु तेगबहादुर (जीटीबी) अस्पताल में पहुंचने वालों में चांद बाग इलाके के लोग ही अधिक थे।

25 फरवरी को दो और खास बातें होती हैंः एक, कई ट्वीट्स ऐसे किए जाते हैं कि ट्रंप के जाने का इंतजार है, इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बताएंगे कि दंगाइयों से कैसे निपटा जाता है। दो, शाह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई लोगों के साथ कई बैठकें करते हैं। इस बैठक को अरविंद फलदायक कहते हैं। दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ तीसरी बैठक के समय ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल सीलमपुर में डीसीपी (उत्तर-पूर्व) के कार्यालय पहुंच जाते हैं। लगभग उसी वक्त केंद्रीय सुरक्षाबल (सीआरपीएफ) की तरफ से घोषणा होती है कि वरिष्ठ आईपीएस अफसर एसएन श्रीवास्तव को दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त (कानून-व्यवस्था) बनाया गया है। वह जम्मू- कश्मीर में सीआरपीएफ के एडीजी भी रहे हैं।

डोभाल 25-26 फरवरी की रात हिंसा प्रभावित इलाके में ही बिताते हैं और कई स्थानों पर जाते हैं। चांद पुरा में इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के एक अफसर का शव एक नाले में पड़ा मिलता है। माना जाता है कि घर लौटते समय उनकी पीट- पीटकर हत्या कर दी गई और शव इस तरह फेंक दिया गया। डोभाल के पहुंचने के बाद केंद्रीय सुरक्षा बल भी कुछ एक्टिव होते हैं और 26 फरवरी की सुबह से हिंसा की घटनाएं बिल्कुल कम हो जाती हैं। जाफराबाद से सीएए विरोधी धरना रात में ही हट जाता है और सीएए समर्थक भी शांत हो जाते हैं।

क्या समझेः

गुजरात दंगे के दौरान भी यही सब हुआ था। जहां अफसर जब तक चाहते थे, हिंसा होती रहती थी। बैठकों में ही समय जाया किया जाता रहता था। जब पुलिस सचमुच सक्रिय होती थी, हिंसा समाप्त हो जाती थी।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined