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तीसरी लहर में कहर ढा सकता है डेल्टा प्लस: क्या हैं लक्षण और क्यों होना चाहिए कोविशील्ड की डोज़ के बीच अंतर पर विचार!

तीसरी लहर के बारे में सोचकर ही रूह कांप जा रही है क्योंकि अब डेल्टा प्लस नाम का वेरिएंट आ चुका है जिसके खिलाफ वैक्सीन उतनी कारगर नहीं और तीसरी लहर में इसी वेरिएंट के कोहराम मचाने की आशंका जताई जा रही है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

कोरोना की दूसरी लहर में चारों ओर से दिल दहला देने वाली खबरों के बीच राहत भरे चंद दिन अभी बीते भी नहीं कि तीसरी लहर का खौफ छा गया है। तीसरी लहर के बारे में सोचकर ही रूह कांप जा रही है क्योंकि अब डेल्टा प्लस नाम का वेरिएंट आ चुका है जिसके खिलाफ वैक्सीन उतनी कारगर नहीं और तीसरी लहर में इसी वेरिएंट के कोहराम मचाने की आशंका जताई जा रही है।

क्या है डेल्टा प्लस

यह डेल्टा वेरिएंट का म्यूटेटेड रूप है। इसका वैज्ञानिक नाम एवाई.1 वेरिएंट है। डेल्टा वेरिएंट की पहली बार पहचान भारत में हुई। इसकी संक्रामकता के बारे में अभी ठीक-ठीक पता नहीं लेकिन आरंभिक अध्ययन के मुताबिक, अल्फा वेरिएंट के मुकाबले यह 50 फीसदी ज्यादा संक्रामक है। इंग्लैंड में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि यह ज्यादातर कम उम्र के लोगों को संक्रमित करता है और 20-29 साल के लोगों को इससे ज्यादा खतरा है।

क्या हैं लक्षण

बुखार, स्वाद और/या सूंघने की शक्ति का खत्म हो जाना तो सामान्य कोरोनावायरस के लक्षण हैं। लेकिन डेल्टा वेरिएंट में कफ सबसे स्पष्ट और आम लक्षण हैं। इसके अलावा इसमें सिर दर्द, गले में खराश और नाक बहने की भी शिकायतें हो सकती हैं। इस वेरिएंट में सूंघने की क्षमता में कमी 10 सबसे आम लक्षणों में शामिल नहीं है।

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दूसरी लहर में बरपाया कहर

इंडियन सार्स-सीओवी-2 जीनोम सिक्वेंसिंग कंसोर्टिया और नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल ने पाया है कि भारत में तबाही मचाने वाली दूसरी लहर के पीछे डेल्टा वेरिएंट था।

वैक्सीन का असर

लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, फाइजर की वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ पांच गुणा कम एंटीबॉडी बनाती है। एंटीबॉडी की संख्या इसलिए अहम है क्योंकि जैसे ही कोई वायरस हमला बोलता है, बोन मैरो के बी-सेल्स इन्हें निष्प्रभावी करने के लिए एंटीबॉडी बनाते हैं। अगर एंटीबॉडी पर्याप्त संख्या में नहीं बनेगी तो सभी हमलावर वायरस खत्म नहीं हो सकेंगे और फिर वे धीरे-धीरे पूरे तंत्र में फैल जाएंगे।

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दो डोज में अंतर

लैंसेट का अध्ययन यह भी कहता है कि दो डोज में अंतर की भी फिर से समीक्षा की जानी चाहिए क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि अल्प अवधि में इससे वैक्सीन की प्रभावकारिता कम हो जाती है। यानी भारत में कोविशील्ड के दो डोज के बीच जो मौजूदा 12-16 हफ्तों का अंतर है, उसे भी घटाया जाना चाहिए।

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