लोकसभा में संविधान पर चर्चा करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा कि संभल के कुछ लोग मुझसे मिलने आए थे, जो मृतकों के परिवार के सदस्य थे। उसमें दो बच्चे थे अदनान और उजैर। एक बच्चा मेरे बच्चे की उम्र का है। दूसरा उससे छोटा 17 साल का था। यह दोनों दर्जी के बेटे थे। दर्जी का एक ही सपना था कि वह अपने बेटों को पढ़ाएगा-लिखाएगा। एक बेटा डॉक्टर और दूसरा बेटा भी अपने जीवन में सफल होगा। उनके पिता जी हर रोज उनको स्कूल को छोड़ते थे। उस दिन भी अपने बच्चों को स्कूल छोड़कर अपने दुकान में चले गए। उन्हें पता नहीं था कि विवाद हो रहा है। उन्होंने भीड़ देखी और घर आने की कोशिश की तो पुलिस ने उन्हें गोली से मार डाला। वह 17 साल का बच्चा अदनान मुझसे कहता है कि मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनकर दिखाऊंगा। अपने पिता का सपना साकार करूंगा। यह सपना और आशा उसके दिल में हमारे संविधान ने डाली है।
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उन्नाव का जिक्र करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा कि मैं रेप पीड़िता के घर गई। वो शायद 20 से 21 साल की होगी। हम सबके बच्चे हैं। हम सोच सकते हैं कि जब हमारी बेटी के साथ बार-बार लात्कार हुआ हो और फिर जब वो अपनी लड़ाई के लिए गई तो उसको जलाकर मार डाल गया होता तो हम पर क्या बीतती? मैं उस बच्ची के पिता से मिली। उसके खेत जलाए गए थे। उसके भाइयों को पीटा गया था।’
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उन्होंने आगे कहा कि ‘रेप पीड़िता के पिता को घर से बाहर घसीटकर मारा गया। उस पिता ने मुझसे कहा कि मेरी बेटी ने मुझसे कहा कि मुझे न्याय चाहिए। मेरी बेटी अपनी केस दर्ज करने के लिए अपने जिले में गई तो उसे मना किया गया। मजबूरी में उसे दूसरे जिले में जाना पड़ा। वो सुबह छह बजे उठकर तैयार होकर अपने केस को लड़ने के लिए ट्रेन से दूसरे जिले में जाती थी। तो मैंने उससे कहा कि बेटी अकेले मत जाओ, छोड़ दो ये लड़ाई। तो बेटी ने जवाब दिया कि नहीं पिता जी मैं जाऊंगी। ये मेरी लड़ाई है और मैं इसे लडूंगी। तो मैं ये कहना चाहती हूं कि ये लड़ने की क्षमता, ये हिम्मत उस लड़की और भारत की करोड़ों नारियों को हमारे संविधान ने दी।
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