हालात

कोरोना संकट में दिल्ली में सबकुछ रामभरोसे, गरीबों की कौन पूछे, मध्य और संपन्न वर्ग भी बेहाल

दिल्ली में बेड की कमी का रोना रो रही केजरीवाल सरकार के दावों पर कांग्रेस नेता अजय माकन का कहना है कि बेड नहीं होने का असली कारण यह है कि ज्य़ादातर बेडों को वीआईपी मरीजों के लिए आरक्षित रखा गया है। सरकारी अस्पतालों में कोविड-19 के लिए रखे बेड में 72 फीसदी खाली हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

दिल्ली में अफरातफरी का माहौल है। कोविड-19 से संक्रमितों के अलावा अन्य मरीजों को भी अस्पताल में भर्ती दिलाने की वीडियो अपीलों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मदद की गुहार लगाते ट्वीट में मुख्यमंत्री और अन्य अधिकारियों को टैग किया जा रहा है। लेकिन वैसे लोगों का क्या जो ट्विटर का इस्तेमाल नहीं करते या जिनकी पहुंच ऊपर तक नहीं है? सबसे पहले कुछ सवाल, जो दिल्ली के हालात को बयां करते हैंः

  • जब मैक्स अस्पताल पिछले चार दिनों से अन्य रोगियों को भर्ती करने से इनकार कर रहा था और दिल्ली सरकार का ऐप यह दिखा रहा था कि अस्पताल में एक भी बेड खाली नहीं है, तो आखिर ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनकी मां का मैक्स अस्पताल में दाखिला कैसे हो गया?
  • जब बिना लक्षण और हल्के लक्षण वाले रोगियों का न तो टेस्ट होना है और न ही उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाना है तो बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा मेदांता अस्पताल में कैसे भर्ती हो गए?
  • क्या यह सच है कि दिल्ली सरकार ने निजी अस्पतालों को इजाजत दी है कि कोविड-19 के संदिग्ध मरीज को भर्ती करने से पहले वे कम-से-कम तीन लाख रुपये रखवा लें?
  • क्या यह सही है कि निजी लैब में चार लोगों के परिवार की जांच कराने पर 25 हजार रुपये का खर्च आ रहा है?

Published: 11 Jun 2020, 6:10 PM IST

ऐसे समय जब इस तरह के सवाल हवा में तैर रहे हैं और संक्रमण तथा मृतकों की संख्या बढ़ती जा रही है, दिल्ली सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदम कतई संतोषजनक नहीं। कभी इधर तो कभी उधर करते रहने के बाद अंततः इसने मॉल, दफ्तर से लेकर शराब की दुकानों को खोलने का फैसला किया और फिर सार्वजनिक परिवहन शुरू कर दिया।

उसके बाद वह अचानक घोषणा करती है कि वायरस को और फैलने से रोकने के लिए वह दिल्ली की सीमाओं को सील करेगी और गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गांव और नोएडा के लोगों को दिल्ली में नहीं घुसने देगी। फिर वह घोषणा करती है कि दिल्ली सरकार द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों में केवल दिल्ली के लोगों को ही दाखिल किया जाएगा।

Published: 11 Jun 2020, 6:10 PM IST

अभी हाल में अमरप्रीत कौर चर्चा में थीं। उनके पिता को तेज बुखार और सीने में इन्फेक्शन था और उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। अमरप्रीत पिता को लेकर गंगाराम, मैक्स, अपोलो, एम्स और सफदरजंग समेत तमाम अस्पतालों की दौड़ लगाती रहीं लेकिन कहीं भी बेड नहीं था और अंततः वे लोग लोकनायक अस्पताल पहुंचे जहां उनके पिता को ‘मृत लाया गया’ घोषित कर दिया गया। हालांकि अमरप्रीत का दावा है कि जब वे अस्पताल पहुंचे तो उनके पिता जिंदा थे, लेकिन उन्हें भर्ती करने और वेन्टिलेटर सपोर्ट देने में हुई देरी के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

दिल्ली सरकार की कोविड-19 हेल्पलाइन की भी हालत बुरी है। आप कोशिश कर-करके हार जाएंगे, मजाल है कि फोन मिल जाए। दूसरी ओर केंद्र सरकार के हेल्पलाइन नंबर को मिलाइए तो रोगियों को दिल्ली के अस्पताल ले जाने की सलाह दे दी जाती है। रोगी केंद्र और राज्य सरकार के बीच सैंडविच बनकर रह जाता है और तमाम ऐसे रोगी हैं जो आपात स्थिति में जरूरी चिकित्सा सेवा नहीं मिलने के कारण दम तोड़ देते हैं।

Published: 11 Jun 2020, 6:10 PM IST

पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन कहते हैं, “यह तो तब है जब दिल्ली में 57,000 बेड हैं। भारत में कोई और शहर अस्पताल में इतने बेड होने का दावा नहीं करता।” माकन बताते हैं कि केंद्र सरकार के संस्थानों में करीब 13,200 बेड हैं, नगर निगम के पास करीब 3,500 और दिल्ली सरकार के 38 अस्पतालों में 11,000 बेड हैं। बाकी बचते हैं 29,000 जिनमें से 50 फीसदी से अधिक बेड निजी अस्पतालों में हैं।

कुप्रबंधन के संकेत अप्रैल के मध्य से ही मिलने लगे थे। दिल्ली सरकार ने कोरोना के मामले में जानकारी देनी बंद कर दी। जब शोर-शराबा हुआ तो उसने टेस्ट के बारे में जानकारी देनी शुरू की, लेकिन वह मृतकों की संख्या को कम करके बताने लगी, जैसे उसे इस बात का इल्म ही नहीं था कि किसी मृत शरीर को छिपाया नहीं जा सकता। मामले की लीपोपोती के लिए दिल्ली ऑडिट कमेटी बनाई, लेकिन इसके बाद भी जून में सरकार कोविड से मरने वालों की जो संख्या बता रही है, वह श्मशान और कब्रगाहों से आ रही संख्या से मेल नहीं खाती।

Published: 11 Jun 2020, 6:10 PM IST

दिल्ली के स्वास्थ्यकर्मियों में भी भारी असंतोष है। कोविड-19 के इलाज को समर्पित लोकनायक अस्पताल की नर्सों को अलग से सैनेटाइज्ड आवास की सुविधा लॉकडाउन शुरू होने के तीन हफ्ते बाद दी गई और वह भी विरोध जताने के बाद, जबकि डॉक्टरों को एक हफ्ते के भीतर ही फाइव स्टार आवासीय सुविधा दे दी गई थी। इसके अलावा राज्य सरकार ने संक्रमित स्वास्थ्यकर्मियों को यह नोटिस थमाकर जैसे बिजली का झटका ही दे दिया कि वे बताएं कि प्रोटेक्टिव गियर पहनने और परस्पर दूरी बनाए रखने के बाद भी वे कैसे संक्रमित हो गए। जब इसपर हंगामा हुआ, तब जाकर सरकार ने यह ऑर्डर वापस लिया।

संक्रमितों की संख्या को बढ़ते देखकर दिल्ली सरकार ने चुपचाप ऑर्डर जारी कर दिया कि गंभीर मामलों में ही संदिग्ध रोगियों की कोविड जांच की जाए। इस ऑर्डर का साफ मतलब है कि बिना लक्षण वाले मराजों की तो कोविड-19 की जांच होगी ही नहीं। यह इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के दिशानिर्देशों के विपरीत है।

Published: 11 Jun 2020, 6:10 PM IST

हालांकि टेस्ट संबंधी फैसले को सही ठहराते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं, “अगर बिना लक्षण वाला हर व्यक्ति टेस्ट कराने लगेगा तो हमारी व्यवस्था बैठ जाएगी। हमारे पास लैब समेत जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर है, लेकिन अगर रोजाना एक हजार व्यक्ति जांच के लिए आने लगें तो हमारी व्यवस्था इसे सह नहीं सकेगी और इसका नतीजा होगा कि ज्यादा गंभीर मरीजों का इलाज नहीं हो सकेगा।”

लेकिन माकन का कहना है कि बेड नहीं हेने का असली कारण यह है कि इन्हें वीआईपी मरीजों के लिए आरक्षित रखा गया है। जून के दूसरे हफ्ते में माकन ने दावा किया कि “दिल्ली सरकार के अस्पतालों में कोविड-19 के लिए रखे गए बेड में से केवल 28 फीसदी ही भरे हैं, बाकी 72 फीसदी खाली हैं।”

***

Published: 11 Jun 2020, 6:10 PM IST

बहरहाल, पूरे देश में स्वास्थ्य संबंधी इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहुत ही बुरी हालत है और कोविड जैसी विपदा में तो अच्छी सुविधाओं वाले शहरों तक ने हाथ खड़े कर दिए हैं। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर के पूर्व प्रोफेसर और वायरोलॉजिस्ट डॉ. टी. जैकब कहते हैं कि पिछले कई दशकों से सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा जर्जर हालत में था और इसमें इस तरह की स्थिति से निपटने की क्षमता नहीं थी। कोविड-19 ने इसकी कमजोरी को और सामने ला दिया। वह कहते हैं कि 135 करोड़ की आबादी वाले देश में सिर्फ 47.5 लाख टेस्ट का यही मतलब है कि हमें 99.7 फीसदी आबादी के बारे में कुछ भी पता नहीं।

इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. संजीव कुमार कहते हैं कि वायरस को फैलने से हम तभी रोक पाएंगे जब आरंभिक चरण में संक्रमितों की पहचानकर उन्हें आइसोलेट कर पाएं। दिल्ली में पहले तो ऐसा ही हो रहा था, लेकिन अब उन्हें पता नहीं कि वहां क्या हो रहा है। वह कहते हैं कि एक आदमी के पॉजिटिव होने का मतलब है कि उससे दो-चार लोग जरूर संक्रमित हुए होंगे। इसलिए लोगों को तत्काल आइसोलेट और क्वारंटाइन करना जरूरी है।

***

Published: 11 Jun 2020, 6:10 PM IST

जब भी कोई सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट आता है तो सबसे ज्यादा खामियाजा गरीबों को भुगतना होता है, लेकिन इस बार तो हालत ऐसी है कि मध्यम वर्ग और अपेक्षाकृत संपन्न लोग भी इसके दंश को महसूस कर रहे हैं। निजी अस्पताल ऐसी बीमारी के मरीजों को भर्ती करने के लिए शुरू में ही लाखों रुपये की मांग कर रहे हैं, जिसका अब तक कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है। रोगियों को अपने और अपने अटेंडेंट के लिए पीपीई के भी पैसे देने पड़ रहे हैं, जिससे उनका खर्च और अधिक हो जा रहा है।

लॉकडाउन को लेकर लोगों के मन में तरह-तरह के संदेह घुमड़ने लगे हैं। प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि हम लोग केवल 21 दिनों में वायरस से जीत जाएंगे लेकिन हुआ इसका उल्टा। न केवल मध्यम वर्ग और अपेक्षाकृत संपन्न लोगों को असुविधा हुई, बल्कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था और गरीबों की तो कमर ही टूट गई।

डॉ. जॉन कहते हैं कि हमें सामाजिक तौर पर अपने व्यवहार को बड़ी सख्ती से सुधारना होगा क्योंकि लॉकडाउन पश्चिमी मॉडल है और पूरब का मॉडल सामाजिक संपर्क को सुरक्षित बनाना है। हमने हर बार पश्चिमी मॉडल की नकल की और यही हमारी भूल रही। और तो और, जिस तरह का लॉकडाउन हमने कर दिया, वैसा तो पश्चिमी देशों ने भी नहीं किया। हमने आंख मूंदकर इसे अमल में ला दिया और यह देखने की जहमत नहीं उठाई कि जर्मनी- जैसे देश क्या कर रहे हैं।

Published: 11 Jun 2020, 6:10 PM IST

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: 11 Jun 2020, 6:10 PM IST