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अहंकारी सत्ता के खिलाफ प्रतिरोध की मिसाल बना किसान आंदोलन, मुजफ्फरनगर महापंचायत से देश और संविधान बचाने का आह्वान

यूपी विधानसभा चुनाव से ऐन पहले हुई किसान महापंचायत इस मायने में भी अहम रही क्योंकि इससे किसान आंदोलन का भविष्य और देश-प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य पर असर पड़ना लाजिमी है। इस महापंचायत ने खुद को अपराजेय समझने वाली बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है।

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मुजफ्फरनगर...पश्चिमी उत्तर प्रदेश का वह जिला जो 1857 की क्रांति का गवाह बना था...आज उसी मुजफ्फरनगर को जाने वाली हर सड़क पर हरे, लाल, पीले झंडे लिए किसानों के झुंड-झुंड के बसों में, ट्रैक्टरों में, कारों में और पैदल जाते हुए नजर आए। मौका था किसान महापंचायत का जो मुजफ्फरनगर के ऐतिहासिक जीआईसी मैदान में बुलाई गई थी। उत्तर प्रदेश ही नहीं, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, बंगाल, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और अन्य राज्यों को लाखों लाख किसान मुजफ्फरनगर की इस किसान महा पंचायत में हिस्सा लेने पहुंचे।

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ध्यान दिला दें कि गवर्नमेंट इंटर कॉलेज का यह मैदान किसान आंदोलन में इस नाते अहम है क्योंकि जब इसी साल जनवरी में किसान नेता राकेश टिकैत ने दिल्ली की दहलीज पर स्थित गाजीपुर बॉर्डर में आंखों में बेबसी के आंसू भरे थे, तो मर्माहत होकर विशाल जन सैलान इसी जीआईसी मैदान पर खुद बखुद उमड़ पड़ा था और फिर देखते-देखते हजारों किसानों के जत्थे गाजीपुर पहुंचने लगे थे।

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मुजफ्फरनगर की रविवार की किसान महापंचायत में यूं तो हर कोई अनुमान लगा रहा है कि 5 लाख किसान थे या दस लाख किसान थे या जाने कितने थे, लेकिन जीआईसी मैदान जाने वाले रास्ते पर कोई 4 किलोमीटर पहले ही लगा दिए गए पुलिस बैरिकेड के बावजूद शहर के हर हिस्से से किसानों के जन जमाव का छोर पकड़ना मुश्किल था। किसानों की भारी संख्या के लिहाज से तो महा पंचायत कामयाब रही है, लेकिन इसके राजनीतिक मायने भी साफ दिखने की संभावना प्रबल होने लगी है। अब यह आने वाला उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कितना कारगर होगा, यह तो चुनावी नतीजे बताएंगे, लेकिन बिगुल फूंक दिया गया है।

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इस महापंचायत में शामिल होने आए अलग-अलग इलाकों के किसानों से बात करने पर यही बात निकलकर सामने आई कि मौजूदा केंद्र और राज्य सरकार ने किसानों की कमर तोड़ दी है और उसे सबक सिखाना है। इसके बदले विकल्प क्या होगा, इस पर फिलहाल हर राज्य के किसानों की राय अलग है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को सबक सिखाना कॉमन कॉल है।

इस महापंचायत में यूं तो हर उम्र के लोग शामिल थे, लेकिन युवाओं की भारी मौजूदगी और उत्साह बड़े सियासी बदलाव का इशारा कर रही है।

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इस पंचायत ने उन अटकलों और कयासों पर भी विराम लगाने का काम किया है जिसमें कहा जा रहा था कि भले ही इस साल जनवरी में आंसू बहाकर भावनात्मक समर्थन हासिल कर राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर के सूरमा भले बन गए हों लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उनके अपने जिले मुजफ्फरनगर में उनका कोई असर नहीं है। इस पंचायत का आह्वान भले ही संयुक्त किसान मोर्चा ने किया था, लेकिन फोकस में राकेश टिकैत ही थे। यहीं कारण है कि जिस समय राकेश टिकैत मंच पर पहुंचे तो पूरी महापंचायत उत्साह से उद्धेलित हो उठी और राकेश टिकैत के जयकारे लगे। राकेश टिकैत ने भी अपने संबोधन में परिपक्वता दिखाते हे आंदोलन को सिर्फ किसानों के मुद्दे से आगे बढ़ाकर देश और संविधान बचाने का ऐलान कर दिया।

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अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले हुई यह किसान महापंचायत इस मायने में भी अहम रही क्योंकि इससे किसान आंदोलन का भविष्य और देश-प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य पर असर पड़ना लाजिमी है।

इस महापंचायत ने अभी तक मोटे तौर पर अपराजेय मानी जाने लगी बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। कारण साफ है कि बीजेपी और उसकी अगुवाई वाली केंद्र और राज्यों की सरकारें भले ही विपक्ष को तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर राजनीतिक जमीन पर पीछे धकेलने का काम करती रही हो, ऐसे ही समय में किसान आंदोलन अहंकारी सत्ता और बदले की भावना से भरी सरकारों के खिलाफ प्रतिरोध की एक मिसाल और मशाल के तौर पर सामने आया है।

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