टीवी चैनल इसे दीपावली का तोहफा बता रहे हैं। लेकिन एक अक्तूबर को रबी की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की जो घोषणा की गई है उससे कम से कम किसान संगठन तो किसी भी तरह खुश नहीं हैं। रबी की फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा हमेशा ही दीपावली से पहले होती है लेकिन आमतौर पर इसे अक्तूबर के तीसरे हफ्ते या उसके भी बाद किया जाता है। कभी-कभी तो यह नवंबर में होती है। लेकिन इस बार बिहार चुनाव को देखते हुए इसकी घोषणा पहले ही कर दी गई।
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जो घोषणा हुई है उसमें गेहूं की एमएसपी में पिछले साल के मुकाबले में 160 रुपये, सरसों में 250 रुपये और सूरजमुखी में 600 रुपये की वृद्धि की गई है। संयुक्त किसान मोर्चे के नेता डाॅ. दर्शन पाल का कहना है कि इस तरह की घोषणा आमतौर पर वाहवाही बटोरने के लिए की जाती है। हर तरफ यह कहा जाने लगता है कि किसानों को बहुत बड़ा फायदा दे दिया गया। लेकिन हकीकत में हर बार किसान का घाटा बढ़ जाता है।
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फसल की कीमत कैसे तय हो इसके लिए स्वामीनाथन आयोग ने सी2 प्लस 50 फीसदी का फार्मूला दिया था। देश के ज्यादातर किसान संगठन इसी फार्मूले को लागू करने की सिफारिश करते रहें हैं। नरेंद्र मोदी की सरकार ने कई साल पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि उसने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों का स्वीकार कर लिया है और अब इसी के हिसाब से किसानों को उनकी फसलों की कीमत मिलेगी। इसी के साथ किसानों की आमदनी दुगनी करने का भी वादा था।
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लेकिन हकीकत यह है कि कृषि लागत व मूल्य आयोग अभी भी कीमतों का निर्धारण सी2 के बजाए ए2 प्लस एफएल के हिसाब से कर रहा है। इन दोनों में मुख्य फर्क यह है कि सी2 फसल की लागत पूरे विस्तृत ढंग से तय की जाती है। इसमें बीज और खाद की कीमत, सिंचाई का खर्च, किसान और उसके परिवार के श्रम का मूल्य जोड़ने के अलावा खेती की जमीन का किराया, उसके उपकरणों की कीमत पर ब्याज और डेप्रीसिएशन को भी शामिल किया जाता है जबकि ए2 प्लस एफएल में जमीन का किराया, उपकरणों की कीमत पर ब्याज और डेप्रीसिएशन जैसे मद शामिल नहीं होते जिससे उपज की लागत का आकलन काफी कम हो जाता है। इस बार भी यही किया गया है।
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इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद खेती में जुटे पंजाब के किसान रमनदीप सिंह मान ने यह अनुमान लगाया है कि बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद की गई एमएसपी की घोषणा से किसानों को कितना नुकसान होगा। उनके अनुसार, किसानों को प्रति क्विंटल उपज पर गेहूं में 121 रुपये, जौ में 643 रुपये, चने में 1437 रुपये और मसूर में 864 रुपये का घाटा होगा।
यह स्थिति सचमुच परेशान करने वाली है। उस समय जब एमएसपी में बढ़ोतरी के लिए सरकार की तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं, इस सच को नजरंदाज किया जा रहा है कि इस बार की एमएसपी भी किसानों के आंसुओं और उनके दुख दर्द को बढ़ाने जा रही है।
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